लफ्ज़ हम दोनों के गैरों को सुनाई न दे
इसतरह महफूज़ हो जाये मुहब्बत मेरी
तू अगर चाहे तो भी मुझको जुदाई न दे
ये बड़ा वाजिब है आँखों मे तेरी कैद रहूँ
ये जरूरी है कि तू मुझको रिहाई न दे
दर्द जो देने हैं तू दे दे मुझे मंजूर है
शर्त बस ये है कि फिर उसकी दवाई न दे
आज मै जो हूँ दुआओं का तेरे हाथ है
खामखाँ इस बात पर मुझको बधाई न दे
कविराज तरुण
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