जहाँ से तुम गुजरते हो वहीँ पर बैठ जाते हैं
अगर दाना मिले छत पर कबूतर बैठ जाते हैं
तुम्हारे घर के बाहर पत्थरों का ढेर कहता है
मै इकलौता नहीं ऐसा अधिकतर बैठ जाते हैं
अजब सी बात लहरों ने बताई है मुझे तेरी
किनारे तुम जो आती हो समंदर बैठ जाते हैं
मै बिल्कुल साफ शब्दों में उन्हें दिल की बताता हूँ
मगर वो फ़ालतू बातें बनाकर बैठ जाते हैं
मुझे तो तैरकर ही ये सफर अब पार करना है
मै काठी हूँ सुना पानी में पत्थर बैठ जाते हैं
कविराज तरुण
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