Wednesday 28 August 2024

कहाँ से आयेंगे

कौन कितने कब कहाँ से आयेंगे 
अपने नजदीकी मक़ाँ से आयेंगे 

वो तो दुश्मन हैं फ़रिश्ते थोड़ी हैं 
जोकि उड़ के आसमां से आयेंगे 

अहतियातन खुद को मजबूत रखना
तीर नश्तर के जबाँ से आयेंगे 

वक़्त बदला ना तरीका बदला है 
पीठ में खंजर छुपा के आयेंगे

दोस्त समझा तो बुराई क्या इसमें 
फैसले अब इम्तिहाँ से आयेंगे 

दिल लुटाने से नही फुर्सत जिनको 
अपना सबकुछ गवाँ के आयेंगे

कविराज तरुण 

Monday 19 August 2024

दोस्ती

दोस्ती 

रश्मोरिवाज हमको सिखाती है दोस्ती
इंसान को इंसान बनाती है दोस्ती

अच्छा हो या बुरा हो कि अपना या गैर हो
इन सब से बड़ा मेल कराती है दोस्ती

रिश्ते भी जहां छोड़ चले अपने साथ को 
उस मोड़ पर भी साथ निभाती है दोस्ती

पापा भी कभी कॉल करें मेरे वास्ते 
तो झूठ भी सच बोल बचाती है दोस्ती

मम्मी के लिए दोस्त मेरे लाजवाब हैं 
मेरी माँ को सबकी माँ बनाती है दोस्ती 

यारों को पता है कि मेरा दिल कहाँ फ़िदा
इस बात पे भी शर्त लगाती है दोस्ती

वैसे तो मजे लूटने में छोड़ते नही 
नाराज अगर हों तो मनाती है दोस्ती

जब राह में हों मुश्किलें तो टोर्च की तरह 
दे रोशिनी वो राह दिखाती है दोस्ती

लड़ना जो पड़े भीड़ से तो दोस्त के लिए 
कुछ सोचे बिना हाथ उठाती है दोस्ती

गमख्वार बने ढाल बने गम के सामने 
तन्हाइयों में जश्न मनाती है दोस्ती

आँखों की नमी पोंछ के गालों के दरमियाँ 
हलचल सी मचा जोर हँसाती है दोस्ती

ये बात सभी मानते जब यार साथ हों 
तो हार में भी जीत दिलाती है दोस्ती



कविराज तरुण

Saturday 10 August 2024

जीवन क्या है?

कविता - जीवन क्या है?

जीवन क्या है? हार-जीत की, मिली-जुली सी एक कहानी 
गगरी ऐसी! जिसमें सुख-दुख, दोनों आकर भरते पानी 

कभी अचंभित करने वाली, घटनाओं का आना-जाना 
कभी बिना रस फीका-फीका, इच्छाओं का ताना-बाना

कभी सफलता खुद आकर, चलने वाले का पाँव पखारे 
कभी विफलता 'धैर्य धरो तुम' कहकर तेरा नाम पुकारे

यही सफलता और विफलता हमें बनाये ध्यानी-ज्ञानी
जीवन क्या है? हार-जीत की, मिली-जुली सी एक कहानी 

बाल्य अवस्था में जीवन का रहता हरदम प्रश्न अधूरा 
बढ़ते-बढ़ते करते हम सब, इन प्रश्नों का आशय पूरा 

वृद्ध हुए तो लगता ऐसे, जैसे जीवन बहकावा है 
मिथ्या सारा जीव जगत है, झूठी सारी माया है 

बातों की अनबूझ पहेली, लेकर आये नई जवानी
इसी बीच अनबूझ पहेली, लेकर आये नई जवानी

कभी-कभी तो चकाचौंध में, लगा रहे लोगों का मेला 
कभी-कभी सब लोग अपरिचित, मन भीतर से रहे अकेला 

कभी -कभी उत्थान-पतन का कारण, अपनों की चतुराई 
कभी -कभी अपनों से ज्यादा, हमको प्यारी प्रीत पराई

इसी प्रीत की बातों में मन, खोजें कोई बात पुरानी
जीवन क्या है? हार-जीत की, मिली-जुली सी एक कहानी 
गगरी ऐसी! जिसमें सुख-दुख, दोनों आकर भरते पानी 

कविराज तरुण