अपने नजदीकी मक़ाँ से आयेंगे
वो तो दुश्मन हैं फ़रिश्ते थोड़ी हैं
जोकि उड़ के आसमां से आयेंगे
अहतियातन खुद को मजबूत रखना
तीर नश्तर के जबाँ से आयेंगे
वक़्त बदला ना तरीका बदला है
पीठ में खंजर छुपा के आयेंगे
दोस्त समझा तो बुराई क्या इसमें
फैसले अब इम्तिहाँ से आयेंगे
दिल लुटाने से नही फुर्सत जिनको
अपना सबकुछ गवाँ के आयेंगे
कविराज तरुण
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