Tuesday, 30 April 2013
Saturday, 20 April 2013
दिल्ली शर्मसार है
चीख है पुकार है हर ओर बलात्कार है
शर्मिंदा है देश आज और दिल्ली शर्मसार है
भ्रमित युवा है आजका कलुषित हुए विचार हैं
लुप्त हो गए एक क्षण में सारे संस्कार हैं
ट्रेन में बस में ऑटो में या राह पर
छेड़-छाड़ तानेबाजी या एसिड का प्रहार है
लगता है युवक आज हो गया बीमार है
और इन सबके सामने हमारा लोकतंत्र लाचार है
चीख है पुकार है हर ओर बलात्कार है
शर्मिंदा है देश आज और दिल्ली शर्मसार है
---- कविराज तरुण
हमारा नेता
आज मै नेता का पर्यायवाची खोजने चला ...
लाख कोशिश करी पर कुछ न मिला ...
किसी ने कहा जो न इत का उत का वो नेता
कोई बोला जो गिन गिन कर पैसे लेता वो नेता
जो वापसी में कुछ नहीं देता वो नेता
जिसका आवारा है बेटा वो नेता
जिसका ईमानदारी से है नहीं नाता वो नेता
जो हड्डियां भी आराम से निगल जाता वो नेता
जो बोल बचन में है आगे ... जिसके साये से भूत भागे
जो सफ़ेद को कर दे काला... किसी को चखने न दे निवाला
सच को झूठ में तब्दील करे ... गुनाह कर के जो अपील करे
खिलवाड़ करे क़ानून की कमजोरी का ... पैसा भरा हो जिसके घर में चोरी का
और जो सरेआम बना बैठा हो वोट का विक्रेता |
बस उसे ही समझ लो है हमारा नेता ||
---- कविराज तरुण
Wednesday, 17 April 2013
नेताजी की रैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
वोट मांगने निकल पड़े सब , गड्डी भर भर के थैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
और मुर्ख शागिर्द देखो , बिछे पड़े हैं पैरो में
नेताजी के घर पर होती , गिनती इनकी गैरो में
ये थूके को चाटा करते , अपयश को बांटा करते
नेताजी के दम पर अक्सर , शोषित को डांटा करते
लड़ पड़ते ये भिड़ पड़ते ये , बेमौत कभी भी मरते ये
नेताजी की फेकी रोटी पर , बटर लगाकर पलते ये
अपने घर के सूरज ये , घिरे पड़े हैं असीमित अंधेरो में
नेताजी के घर पर होती , गिनती इनकी गैरो में
नेताजी के कहने पर , दुश्मन पर धावा बोल दिया
जब पुलिस से हो गयी आपा-धापी , तो एक पल में मुंह खोल दिया
नेताजी तो नेताजी हैं , बोले ये दुश्मन का सारा खेल है
पकड़े जाने वाले से मेरा , नहीं कोई भी मेल है
मै तो सभ्य समाज का हूँ , कहीं कोई भी दाग नहीं
जनता की सेवा है लक्ष्य , और कोई अरदास नहीं
बस ये कहकर ही बच जाते हैं , नेताजी अपनी शैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
वोट मांगने निकल पड़े सब , गड्डी भर भर के थैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
---- कविराज तरुण
वोट मांगने निकल पड़े सब , गड्डी भर भर के थैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
और मुर्ख शागिर्द देखो , बिछे पड़े हैं पैरो में
नेताजी के घर पर होती , गिनती इनकी गैरो में
ये थूके को चाटा करते , अपयश को बांटा करते
नेताजी के दम पर अक्सर , शोषित को डांटा करते
लड़ पड़ते ये भिड़ पड़ते ये , बेमौत कभी भी मरते ये
नेताजी की फेकी रोटी पर , बटर लगाकर पलते ये
अपने घर के सूरज ये , घिरे पड़े हैं असीमित अंधेरो में
नेताजी के घर पर होती , गिनती इनकी गैरो में
नेताजी के कहने पर , दुश्मन पर धावा बोल दिया
जब पुलिस से हो गयी आपा-धापी , तो एक पल में मुंह खोल दिया
नेताजी तो नेताजी हैं , बोले ये दुश्मन का सारा खेल है
पकड़े जाने वाले से मेरा , नहीं कोई भी मेल है
मै तो सभ्य समाज का हूँ , कहीं कोई भी दाग नहीं
जनता की सेवा है लक्ष्य , और कोई अरदास नहीं
बस ये कहकर ही बच जाते हैं , नेताजी अपनी शैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
वोट मांगने निकल पड़े सब , गड्डी भर भर के थैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
---- कविराज तरुण
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