जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
वोट मांगने निकल पड़े सब , गड्डी भर भर के थैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
और मुर्ख शागिर्द देखो , बिछे पड़े हैं पैरो में
नेताजी के घर पर होती , गिनती इनकी गैरो में
ये थूके को चाटा करते , अपयश को बांटा करते
नेताजी के दम पर अक्सर , शोषित को डांटा करते
लड़ पड़ते ये भिड़ पड़ते ये , बेमौत कभी भी मरते ये
नेताजी की फेकी रोटी पर , बटर लगाकर पलते ये
अपने घर के सूरज ये , घिरे पड़े हैं असीमित अंधेरो में
नेताजी के घर पर होती , गिनती इनकी गैरो में
नेताजी के कहने पर , दुश्मन पर धावा बोल दिया
जब पुलिस से हो गयी आपा-धापी , तो एक पल में मुंह खोल दिया
नेताजी तो नेताजी हैं , बोले ये दुश्मन का सारा खेल है
पकड़े जाने वाले से मेरा , नहीं कोई भी मेल है
मै तो सभ्य समाज का हूँ , कहीं कोई भी दाग नहीं
जनता की सेवा है लक्ष्य , और कोई अरदास नहीं
बस ये कहकर ही बच जाते हैं , नेताजी अपनी शैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
वोट मांगने निकल पड़े सब , गड्डी भर भर के थैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
---- कविराज तरुण
वोट मांगने निकल पड़े सब , गड्डी भर भर के थैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
और मुर्ख शागिर्द देखो , बिछे पड़े हैं पैरो में
नेताजी के घर पर होती , गिनती इनकी गैरो में
ये थूके को चाटा करते , अपयश को बांटा करते
नेताजी के दम पर अक्सर , शोषित को डांटा करते
लड़ पड़ते ये भिड़ पड़ते ये , बेमौत कभी भी मरते ये
नेताजी की फेकी रोटी पर , बटर लगाकर पलते ये
अपने घर के सूरज ये , घिरे पड़े हैं असीमित अंधेरो में
नेताजी के घर पर होती , गिनती इनकी गैरो में
नेताजी के कहने पर , दुश्मन पर धावा बोल दिया
जब पुलिस से हो गयी आपा-धापी , तो एक पल में मुंह खोल दिया
नेताजी तो नेताजी हैं , बोले ये दुश्मन का सारा खेल है
पकड़े जाने वाले से मेरा , नहीं कोई भी मेल है
मै तो सभ्य समाज का हूँ , कहीं कोई भी दाग नहीं
जनता की सेवा है लक्ष्य , और कोई अरदास नहीं
बस ये कहकर ही बच जाते हैं , नेताजी अपनी शैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
वोट मांगने निकल पड़े सब , गड्डी भर भर के थैली में ...
जंग जुबानी तेज़ हो गयी , नेताजी की रैली में ...
---- कविराज तरुण
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