Monday, 10 June 2013

तेरी आँखों की गहराई में


 जब भी सोचता हूँ तेरे आँखों की गहराई में ...
 वो नीला समंदर जिसमे डूबने को जी चाहता है ...
 आखिर क्या रखा है इस दुनिया पराई में ...
 जब सोचता हूँ मै तेरी आँखों की गहराई में ||

 मजबूर कर रखा है हालात ने कि हम मिल नहीं सकते ...
 एक दूसरे की पनाहों में प्यार के ये फूल खिल नहीं सकते ...
 न तुम कर सकती हो अपनी मोहब्बत पर यकीन ...
 न हम दिखा सकते हैं अपने हाल -ए-दिल कि जमीन ...
 न तुम इन होंठो से कुछ बुदबुदा पाओगी...
 न हमें आने दोगी न खुद करीब आओगी ...
 बस यूँही दूर रहकर तुम्हे याद करूँगा मै तन्हाई में ...
 आखिर क्या रखा है इस दुनिया पराई में ||

 --- कविराज तरुण

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