Saturday, 1 June 2013

MAHANAGRI


यांत्रिक जीवन का औपचारिक प्रभात ::

यांत्रिक जीवन का औपचारिक प्रभात ,
अक्सर ज्ञानेन्द्रियों को चिंतित कर देता है  |
अर्थवादी महानगरी में स्वार्थवादी सोच का आगमन ,
अन्तः करण को हर रोज विचलित कर देता है ||
एक वो भी समय था...
जब पडोसी का बेटा प्रथम आता था ...
तो सारे मोहल्ले को पता चल जाता था ...
किसकी नौकरी लगी कौन परदेश गया ...
किसकी चिट्ठी आई किसे सन्देश गया ...
ढूधवाले की गैया बियाई या नहीं ...
पडोसी की बारात आई या नहीं ...
कौन सी 'डिश' बनाने में किसे है महारत ...
किसका बच्चा करता है सबसे ज्यादा शरारत ...
कौन घर घर जाकर चौपाल लगाता है ...
किसका शौहर अक्सर देर से आता है ...
कौन बीती रात हो गया बीमार है ...
किसने छत पर सुखाने को डाला अचार है ...
परन्तु आज का समय बदला कुछ ऐसा ,
जाने अनजाने ही हमें व्यथित कर देता है |
एक अनुभव संकुचित मन में उपजे परायेपन का ,
असुरक्षित भावनाओ का वेग त्वरित कर देता है ||
यांत्रिक जीवन का औपचारिक प्रभात ,
अक्सर ज्ञानेन्द्रियों को चिंतित कर देता है  |
अर्थवादी महानगरी में स्वार्थवादी सोच का आगमन ,
अन्तः करण को हर रोज विचलित कर देता है ||

--- कविराज तरुण

1 comment:

  1. सुन्दर! जो बीत गई सो बात गई.

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