चलो उस ओर पंछी आज नहीं डेरा यहाँ
वक़्त की साजिशो का आज फिर पहरा यहाँ
कोई रश्मो के नाते घर में न आने देगा
कोई रिवाजो के चलते हमें और ताने देगा
कोई झूठी शान में गर्दन घुमा लेगा
कोई अपने मान में सर झुका लेगा
पर न समझेगा हमें न हमारी मोहब्बत को
और तरसते ही रहेंगे हम खुदा की रहमत को
चलो उस ओर पंछी आज नहीं डेरा यहाँ
वक़्त की साजिशो का आज फिर पहरा यहाँ
वक़्त की साजिशो का आज फिर पहरा यहाँ
कोई रश्मो के नाते घर में न आने देगा
कोई रिवाजो के चलते हमें और ताने देगा
कोई झूठी शान में गर्दन घुमा लेगा
कोई अपने मान में सर झुका लेगा
पर न समझेगा हमें न हमारी मोहब्बत को
और तरसते ही रहेंगे हम खुदा की रहमत को
चलो उस ओर पंछी आज नहीं डेरा यहाँ
वक़्त की साजिशो का आज फिर पहरा यहाँ
---- कविराज तरुण
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