Thursday, 20 December 2018

ग़ज़ल - कुछ भी नही

*ग़ज़ल - कुछ भी नही*
2122 2122 2122 212

छोड़कर तेरी गली अब आसरा कुछ भी नही
मौत से इस जिंदगी का फासला कुछ भी नही

खामखाँ ही आँख में सपने सजाये बारहां
ये कहाँ मालूम था होगा भला कुछ भी नही

वो बड़ा खुदगर्ज जिसपे दिल हुआ ये आशना
धड़कनें अपनी बनाकर दे गया कुछ भी नही

हम कसीदे प्यार के पढ़ते रहे ये उम्रभर
वो शिकायत ये करें हमने किया कुछ भी नही

डूबना था हाय किस्मत रोकता मै क्या भला
कागजी सी नाँव पर था काफिला कुछ भी नही

चाँद तारे आसमाँ क्या क्या नही छूटा तरुण
एक तेरे छूटने से है बचा कुछ भी नही

कविराज तरुण

Sunday, 16 December 2018

गीत - तुम्हे देने आया

मै मधुबन के गीतों का अधिकार तुम्हे देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

अंतस के अभ्यास जगत में चित्रों की अलमारी है
सपनों ने कोशिश तो की पर तू सपनों पर भारी है

मधुर मधुर अनुभूति हृदय में मंद मंद मुस्कान खिली
निद्रा में वशीभूत नयन के दर्पण को पहचान मिली

स्वप्नलोक का अपना ये संसार तुम्हे देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

संरक्षित है बातें तेरी हिय के कोने कोने तक
आरक्षित स्थान प्रिये धड़कन के खंडित होने तक

तू उपवन का अंचल तेरी पुष्प सरीखी काया है
मुझमे अंकित भाव विटप की तू आह्लादित छाया है

मै शब्दों के पुष्पों का भंडार तुम्हे देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

प्रणय प्रेम की बेला में अनुरोध यही तुमसे प्रियवर
वैदेही का रूप धरो तुम और बनूँ मै भी रघुबर

साथ चलूँ जन्मों जन्मों तक नेह सूत्र के बंधन में
रिक्त रहे अवशेष नही कुछ भर दो मधुरस जीवन में

अपने प्रीत की प्रतिमा को विस्तार यहाँ देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

मै मधुबन के गीतों का अधिकार तुम्हे देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

कविराज तरुण

Friday, 14 December 2018

गीत - पहली दफा

फोन पर पहली दफा जब सर्दियों में , आपने दिल खोलकर के बात की थी
सो गया था चाँद भी उस चाँदनी में , और हमने जागकर ये रात की थी

चुस्कियाँ थी चाय की मेरी तरफ से , और कॉफी हाथ में तेरे सजी थी
जानती क्या ठंड में सहमी रजाई , गर्म प्याली से बड़ी जलने लगी थी

मेघ कोसों दूर मौसम था सुहाना , बारिशों का था नही कोई ठिकाना
एक तुम भीगे वहाँ पर और इक हम , बादलों ने इसतरह बरसात की थी

मै अँधेरे में दिया चाहत का लेकर , आपका श्रृंगार मन में गढ़ रहा था
जो लिखा था आपकी आवाज ने तब , मूक रहकर ही उसे मै पढ़ रहा था

सुन रहा था आसमाँ लेकर सितारे , जुगनुओं की भीड़ दोनों को पुकारे
पर हमें क्या ध्यान ऐसे खो गये थे , खूबसूरत प्यार की शुरुआत की थी

कविराज तरुण

Monday, 10 December 2018

गीत - मै अल्हड सा सावन हूँ

मै अल्हड़ सा सावन हूँ और तू गंगा की धारा है
यूँ लगता है पाकर तुमको तू ही तो जग सारा है

क्या चमकेंगे हीरे मोती क्या चमकेगा कोई रतन
तू चंदा की नवल चाँदनी में लिपटा अंगारा है

खुद से प्यार किया था मैंने अबतक अपने जीवन में
तुमसे मिलकर भान पड़ा है तू जड़ है तू चेतन में
मुझमे तेरा अंश छुपा है दिल की धड़कन कहती है
अब मुझको खुद से भी ज्यादा तू इतना क्यों प्यारा है

मै अल्हड़ सा सावन हूँ और तू गंगा की धारा है
यूँ लगता है पाकर तुमको तू ही तो जग सारा है

अबतक थी जो घोर उदासी उसका अंत निकट आया
तेरे बिन वैरागी मै तू , मेरे मन की माया है
धूप घनी थी जीवन में , राह कठिन थी पास मेरे
मन को मेरे चैन मिला तू , शीतल ठंडी छाया है

रंगों में खिलता ये यौवन , फूलों से भी नाजुक तुम
आसमान की वृहद दिशा में , तू स्वर्णिम सा तारा है

मै अल्हड़ सा सावन हूँ और तू गंगा की धारा है
यूँ लगता है पाकर तुमको तू ही तो जग सारा है

कविराज तरुण

Friday, 7 December 2018

पायल

पायल की झंकार तुम्हारी याद दिलाती है
रुनझुन रुनझुन ध्वनि कानों में जब भी आती है

याद तुम्हे क्या है वो दिन जब चाँदी की पायल दी थी
घंटों उसकी सुंदरता की तुमने तब बातें की थी

कभी नचाती हाथ में अपने कभी बाँधती मुठ्ठी में
सारेगामा का स्वर बजता तेरी हर एक चुटकी में

मेरे हाथ से प्रियतम तुमने पहनी थी पायल कैसे
यही सोचता रहता हूँ भीतर घर में बैठे बैठे

आज भी पायल लाया हूँ ये तुम्हे बुलाती है
पायल की झंकार तुम्हारी याद दिलाती है

कविराज तरुण

Thursday, 6 December 2018

ग़ज़ल - कर गए

जोश भरकर इन रगो में खून ताजा कर गये
जिंदगी अपनी लुटाकर हमसे वादा कर गये

मौत बोलो क्या करेगी सोच मर सकती नही
लौटकर आऊँगा फिर से ये इरादा कर गये

लाल वो माँ भारती के वीरता की ज्योति थे
इस अँधेरे कुंड में भी वो उजाला कर गये

देश को जो तोड़ने की बात करता है सुनो
प्राण के बलिदान से वो जोड़ सारा कर गये

उन शहीदों को नमन जो जान देते हैं तरुण
कर्म से जो माँ का आँचल ही सितारा कर गये

कविराज तरुण

Monday, 3 December 2018

बोलता ही रहा

212 212 212 212 212 212 212 212

प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने बोलता ही रहा
जो मुझे छोड़कर चैन से सो रहा , मै उसे स्वप्न में खोजता ही रहा

कर सके ही कहाँ हाल-ए-दिल का बयां , दोस्तों वो नही अब मेरे हमनवां
राज थे यूँ कई उल्फ़तों मे दबे , मै उठा और दिल डोलता ही रहा

*प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने .. ला लला ला लला*

कोशिशें दुश्मनों ने करी थी बहुत , हार का स्वाद वो पर चखा ना सके
उसने ऐसा रचा खेल ये प्रेम का , जीत थी द्वार पर छोड़ता ही रहा

जब भी कोई ख़ुशी पूँछती थी पता , बस यही गम रहा बस यही थी खता
भेजता मै रहा जिस गली तू चली , और तू प्यार को तोलता ही रहा

*प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने .. ला लला ला लला*

है यही भेद बस चाहतों में सनम , है यही खेद बस राहतों में सनम
तुम घटाती रही मेरी हर याद को , मै तुम्हारा असर जोड़ता ही रहा

प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने बोलता ही रहा
जो मुझे छोड़कर चैन से सो रहा , मै उसे स्वप्न में खोजता ही रहा

कविराज तरुण

दूसरा नही होता

इश्क़ ये दूसरा नही होता
दूर वो है जुदा नही होता
            जाने क्या कुछ रही खता मेरी
            यार अब वो ख़फ़ा नही होता
शाम मिलती है बनके गैरों सी
और अब कुछ बुरा नही होता
            रोज चादर में छुपके रोता हूँ
            दर्द लेकिन फ़ना नही होता
एक मुद्दत लगी मनाने में
प्यार का ये सिला नही होता
            रूठना फिर से तो नही आना
            सोचता हूँ मना नही होता
क्यों तरुण यूँ उदास रहता हूँ
शख्स आखिर खुदा नही होता

कविराज तरुण

Tuesday, 20 November 2018

ग़ज़ल - कुछ भी नही

ग़ज़ल - कुछ भी नही

2122 2122 2122 212

छोड़कर तेरी गली अब आसरा कुछ भी नही
मौत से इस जिंदगी का फासला कुछ भी नही

खामखाँ ही आँख में सपने सजाये बारहा
ये कहाँ मालूम था होगा भला कुछ भी नही

वो बड़ा खुदगर्ज था जो दिल हुआ ये गमजदा
धड़कनें अपनी बनाकर दे गया कुछ भी नही

हम कसीदे प्यार के पढ़ते रहे ये उम्रभर
वो शिकायत ये करें हमने किया कुछ भी नही

डूबना था हाय किस्मत रोकता मै क्या भला
कागजी सी नाँव पर था काफिला कुछ भी नही

चाँद तारे आसमाँ क्या क्या नही छूटा तरुण
एक तेरे छूटने से है बचा कुछ भी नही

कविराज तरुण

Monday, 12 November 2018

दर्द भरी शायरी पार्ट 2

बहते पानी मे तेरी यादें बहा आया
ऐसा लगता है मै गंगा नहा आया

Wednesday, 31 October 2018

कुछ कविताएं

[10/9, 19:39] कविराज तरुण: विषय- हास्य
विधा- घनाक्षरी

बीवी मेरी आजकल
    फेसबुक चला रही
        एंगल बदल नये
            फोटो भी खिंचा रही

ईयरफोन कान में
    हाथ में एप्पल लिए
        एक हाथ से ही देखो
            रोटी वो बना रही

डीपी करे अपलोड
    रोज रोज रात में ही
        उठते ही भोर भोर
            लाइक करा रही

सखियाँ तो झूठ मूठ
    पुल बाँधे तारीफों के
        करीना भी फेल हुई
            माधुरी लजा रही

सुन सुन यही सब
    पेड़ चढ़ी मैडम जी
        बोलीं सुनो हे पति जी
            टीवी पर आऊँगी

मेरी स्माइल ग़दर
    मेरा स्टाइल ग़दर
        चलचित्र पे धमाके
            रोज ही कराऊँगी

सलमान साथ होगा
    ऋतिक भी पास होगा
        शाहरुख़ के साथ मै
            गीत नया गाऊँगी

परदे की क्वीन बनूँ
    नागिन की बीन बनूँ
        रैप में कभी कभी तो
            सुर मै लगाऊँगी

सुन मेरे होश उड़े
    भूत क्या चढ़ा है इन्हें
        घर बार छोड़ सब
            धुन क्या बजा रही

मैडम जी बात सुनो
    सब मायामोह है ये
        जाने कैसे कैसे स्वप्न
            आप ये सजा रही

फेसबुक का ही सारा
    लगता कसूर सब
        देखो तेरी सखियाँ भी
            कैसे मुस्कुरा रही

छोड़ दो भरम प्रिये
    हाथ तेरे जोड़ता हूँ
        स्वर्ग जैसे घर को क्यों
            नरक बना रही

कविराज तरुण
[10/9, 19:39] कविराज तरुण: अपनी पति (म्यूजिक टीचर) से तंग पत्नी की व्यथा-

कान्हा बने गोपियों के
बाँसुरी बजाओ नही
प्रीत में मगन होके
ऐसे गीत गाओ नही

सत्य है जो प्रेम तेरा
हमसे निभाओ रीत
अनेकता में एकता
पाठ सिखलाओ नही

देशप्रेम , भक्ति , सीख
ऑप्शन धरे हुये हैं
प्यार प्यार प्यार प्यार
ये ही दोहराओ नही

कुंडली सी मारे रहो
घर में पधारे रहो
गीत ये सिखाने कहीं
बाहर तो जाओ नही

अरिजीत के चचा हो
या कहो कि कौन हो जी
प्यार की ही धुन साधो
घर मे तो मौन हो जी

भज के भजन करो
मेरी ओर मन करो
कहीं और ताको नही
नर हो कि ड्रोन हो जी

पति बोला हाथ जोड़
शक न करो सनम
तुम्ही मेरी प्रेरणा हो
तुम्ही मेरा जोन हो जी

गीत मेरा काम धाम
ये ही मेरी जीविका है
रिंगटोन हो कोई भी
तुम्ही मेरा फोन हो जी

कविराज तरुण
[10/19, 16:03] कविराज तरुण: हमको मन के रावण को ,
आज अभी हरना होगा
जीवन की आपाधापी में ,
सत्य राह पर चलना होगा

कठिन नही है अच्छा बनना ,
बुरे कर्म से दूर रहो बस
तिमिर रेख पगडण्डी पर ,
दीप प्रज्ज्वलित करना होगा

चाह अगर स्वर्णबेल सा ,
जीवन चमके सकल धरा पर
तपन सोखते हुए चराचर ,
अगन ताप में गलना होगा

मारो मन के रावण को यूँ ,
कुछ शेष नही अवशेष रहे
सहज भाव समभाव सभी से ,
राम तुम्हे भी बनना होगा

कविराज तरुण

हास्य - फेसबुक

विषय - हास्य
अतुकांत

एक मोहतरमा का फेसबुक पर सन्देश आया
'मै आपसे दोस्ती करना चाहती हूँ'
मन गुलाटी खाने लगा
तीन बार शीशे में शक्ल देखी
पकी दाढ़ी काली लगने लगी
भौं ऊपर तान के आँखों को निहारा
वाह ! क्या कलर चढ़ा है इस बार
झट से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी
और एक्सेप्ट होने का इंतजार शुरू
डीपी भी नई वाली लगा दी एडिटेड
मोहतरमा ने भी शीघ्र रिस्पांस दिया
और फ्रेंड रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लिया
अजी फिर क्या था जनाब
गुड मॉर्निंग से गुड नाईट तक
तरह तरह की साइट पर
हम चुटकुले और शायरी खोजते रहे
कुछ मन के उदगार भी उन्हें भेजते रहे
और किसी काम में मन कहाँ लगता
उसकी तस्वीर बीवी से छुपछुप कर देखते रहे
वक़्त खिसकता रहा बात बढ़ती गई
हमारी दोस्ती धीरे धीरे प्यार में बदल गई
और मिलने की तारीख आ गई आखिरकार
पर हमारी खुशियाँ बीवी को कहाँ थी गवार
बोली कहाँ जा रहे हो बन ठन के हुजूर
हमें आज शॉपिंग पर चलना है जरूर
हमने बहाने बनाये ऑफिस के और निकल पड़े
ऑनलाइन दोस्त से मिलने को थे बेताब बड़े
पर जब पहुँचे तो खुशियाँ धुआँ हो गई
जाके देखा तो बीवी थी बैठी हुई
बोली आओ हुजूर मिल लो हमसे
बड़े बेताब थे
फेसबुक ने आपके जम कर बनाये
हसीं ख़्वाब थे
अब बोलो क्या बोलोगे
अपना राज-ए-दिल कैसे खोलोगे
मै शर्म से पानी पानी हो गया
पाँव पकड़े और फिर रोने लगा
माफ़ कर दो अब कभी ऐसा होगा नही
तुम ही हो मेरी सबकुछ बोलता हूँ सही
फिर फेसबुक का बुखार यों उतरा
कि अब गलती से भी नजर नही आता हूँ
अब तो फोन भी बीवी की आज्ञा से ही उठाता हूँ

कविराज तरुण

मारने के बाद

मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
कहूँ क्या उनसे जो गुजरा साल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

मौत से आखिरी हाजिरजवाबी तक
हमने जिनकी राह मे पलकें बिछाई थी
वो मेरी चिता के सामने कह रही हैं
आज तेरे प्यार को मै समझ पाई थी
आज ले ली हमने रुखसत तो उन्हें इकरार हुआ
जब हम ही न रहे उन्हें हमसे प्यार हुआ

फिर बड़ी मासूमियत मे वो खुदा से सवाल पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

मेरी नज़रों को तेरी तलाश रहती थी
इन साँसों को तेरी खुशबू की आस रहती थी
पर तू तो मेरे खत को भी बकवास कहती थी
मेरी चाहतों को सिर्फ एक प्यास कहती थी

और आज प्यासे जब खड़े वो मेरे सामने तो चाहतों भरा वो ताल पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

जिनके इनकार ने मुझे बेहद रुसवा किया
मेरे इस दिल को मुझसे ही तनहा किया
गम का ऐसा ज़हर मुझे दे दिया
जिसको पीकर मै एक पल न जिंदा रहा

अब वो कैसे हुआ मेरा इन्तेकाल पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

वरमाला तो तू मुझको दे न सकी
दो फूल चिता पर दे देना
अगणित आंसू का क़र्ज़ चढ़ाया है
तुम एक अश्रु से धो देना

अब कैसे थमेगी ये आंसुओं की बाढ़ पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

अब वो कहते हैं तेरे बिन न जिंदा रहेंगे
इस विरह की अगन मे कबतक जलेंगे
बहुत हो चुका जुदाई का आलम
इस मिलन के लिए आज हम भी मरेंगे

इसतरह वो जीवन मरण का जंजाल पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

Saturday, 27 October 2018

वो पहली मुहब्बत

122 122 122 122

जो पहली दफ़ा थे तुम पास आये
क्या हालत हुई थी तुम्हे क्या बतायें
करो कितनी कोशिश
मगर जान लो तुम
वो पहली मुहब्बत भुलाई न जाये

ये रफ़्तार दिल की भी बढ़ने लगी थी
हाँ कितनी सुहानी वो अपनी घड़ी थी
कहो चाहे कुछ भी
मगर मान लो तुम
वो पहली मुहब्बत ही सबसे खरी थी

वो बारिश के टीलों पे पैरों की छनछन
मेरे साथ भीगा फुहारों में मधुबन
भिगो चाहे जितना
मगर जान लो तुम
वो पहली मुहब्बत का पहला था सावन

हवाओं में हल्की सी बरसात होगी
जो सहमी हुई सी अगर रात होगी
लगे चाहे जो भी
मगर मान लो तुम
वो पहली मुहब्बत की ही बात होगी

कविराज तरुण

Monday, 22 October 2018

दर्द की शायरी पार्ट 1

ये चाँद सूरज मेरे घर नही आते
जबतलक ये तेरी खबर नही लाते
मौत गुजरती है आबरू खोकर
एक हम हैं जो गुजर नही पाते

कविराज तरुण

फिर दवा के नाम पर ये खता करी गई
यार जब मिले मुझे तब शराब पी गई
बेवफ़ा नही नही ! और कोई नाम दो
मिल गया उसे कोई और वो चली गई

कविराज तरुण

अब भी मेरे सवाल से तुम
बच रही हो क्या
क्यों आजकल नजर नही आती
बिजी हो क्या

ये मेरा दिल यहाँ वहाँ
लगता नही है क्यों
तुम ये बताओ इस जहाँ मे
आखिरी हो क्या

कविराज तरुण

इस दिल मे जो दर्द है
यकीनन उसकी बदौलत है
ये फनकारी मेरा शौक नही
ये मेरे तन्हाई की तंग सूरत है

क्यों दवा और ये दुआ
काम भी नही करती
ऐसा लगता है मुझे
उसकी ही जरूरत है

कविराज तरुण

फरेबी का ये हुनर कभी
सिखा देना हमें
मुनासिब हो तो एकबारगी
हँसा देना हमें

मिलो जो हमसे पहचानो
जरूरी तो नही
नजर झुका के ये मज़बूरी
बता देना हमें

कविराज तरुण

मेरी आवाज तुम तक पहुँचे तो बता देना
या यूँ करना कि हल्के से मुस्कुरा देना

हवा का तंज बदलेगा यकीनन यहाँ पर
एक काम करना दुपट्टे को ज़रा सा लहरा देना

-० कविराज तरुण ०-

जिंदगी सिर्फ रात का सफर नही होती
इसका अपना इक सबेरा भी है
तुममे तुम्हारा है सबकुछ नही
कहीं पर कुछ तो मेरा भी है

साल महीने हफ्ते दिन लम्हे
जो भी मेरे संग बिताये तुमने
यादों के चिलबन से तुम झाँक लेना
खुशियों का उसमे बसेरा भी है

-० कविराज तरुण ०-

Friday, 5 October 2018

मतला और शेर - मंजिल

अर्ज़ है

वक़्त आयेगा तेरा थोड़ा तो इंतज़ार करो
मंजिलों से ना सही पर सफर से प्यार करो

ये मेरे बस का नही छोड़ो न ये बात सनम
कोशिशें करते रहो खुदपर तो इतबार करो

कविराज तरुण । 9451348935

Friday, 21 September 2018

सुप्रभात दो शेरों के साथ 1

*सुप्रभात दो शेरों के साथ*
*________🌹1🌹________*

*देखते देखते क्या से क्या हो गया*
*तू मेरा हो गया मै तेरा हो गया*
🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷
*नींद सूरज ने खोली सुबह जब मेरी*
*ख़्वाब के दरमियाँ हादसा हो गया*

*____________________*
*🌼🌼कविराज तरुण🌼🌼*

ग़ज़ल - चलने लगा

ग़ज़ल

वो मिले और फिर दिल भी मिलने लगा
खामखाँ बारबां उनपे मरने लगा

हाल बेहाल सा चाल मदहोश सी
इक नशा सा मुझे आज चढ़ने लगा

इश्क़ है ख़्वाब है बात है या नही
हाँ इसी सोच मे दिन गुजरने लगा

वो जहाँ वो जिधर पाँव रखते चले
मै गली वो पकड़ के ही चलने लगा

बस तेरी ही ख़बर बस तेरी ही फिकर
मै मुसाफ़िर हुआ और भटकने लगा

काश वो देख लें प्यार से ऐ 'तरुण'
मै सुबह जब उठा तो सँवरने लगा

कविराज तरुण

ग़ज़ल - रह गया

मै उसे देखकर देखता रह गया
बाण नैनों का फिर फेंकता रह गया

वो भी नजरें झुका मुस्कुराने लगी
और मै ये हँसी सोखता रह गया

पास आकर कहा उसने कुछ कान में
साँस की आँच मै सेंकता रह गया

कुछ जवाबी बनूँ तो कहूँ मै भी कुछ
लफ्ज़ की मापनी तोलता रह गया

वो गई सामने रोकना था 'तरुण'
दिल ही दिल में उसे रोकता रह गया

कविराज तरुण

Thursday, 20 September 2018

ग़ज़ल - तुझको पाया है

मैंने खुद को खोया है तो तुझको पाया है
सारी दुनिया तज के मैंने इश्क़ कमाया है

अब तेरे बिन जीना कितना भारी भारी सा
लगता है सीने पर जैसे बोझ उठाया है

टूटा कोना कोना मन का पलभर मे ऐसे
खुशियों को खुद अर्थी देकर श्राद मनाया है

बेबस हैं आंखें नींदों मे ख़्वाब नही आते
चाँद सितारों को अम्बर ने रोज बुलाया है

खो के तुझको जाना कितना इश्क़ 'तरुण' तुमको
धड़कन ने अब दिल से सब अधिकार गँवाया है

कविराज तरुण

Monday, 10 September 2018

कुंडलियां - माखन


कुंडलियां

माखन देखो खा रहे , मेरे नंदकिशोर ।
फूटी है सब गागरी , बैठे माखनचोर ।।
बैठे माखनचोर, मनोहर मुख लिपटाया।
सुंदर शोभित श्याम, सलोनी सुंदर काया ।।
कहे तरुण कविराज,किसी को मत दो चाखन ।
खाओ मन भर आज , श्याम मटकी का माखन ।।

कविराज तरुण

Friday, 17 August 2018

अटल जी

पूज्यनीय अटल जी को समर्पित शब्द श्रद्धांजलि-  कविराज तरुण

ये मृत्यु तुम्हे क्या मारेगी
    तुम देवलोक के प्राणी हो ।
जड़-चेतन का भेद बताते
    तुम अटल भाव की वाणी हो ।।

जीवन का सारांश यही है
    तुमसा कोई संत नही है ।
किया कूच धरती से माना
    नया सफर है अंत नही है ।।

अजातशत्रु हो आप सदा ही
    हृदय जीत कर चले धाम को ।
मन मस्तक में स्मृति विशेष में
    याद रहोगे जीव आम को ।।

राजनीति की हो मर्यादा
    तुम धर्मराज के स्वामी हो ।
बीते कल के दीप नही हो
    तुम सूर्यताप आगामी हो ।।

गली दधीचि की अस्थि जहाँ पे
    जहाँ सिंधु का पानी बहता ।
जहाँ हिमालय शीश उठा के
    अटल इरादों की छवि कहता ।।

उस भारत से देह त्याग के
    परमब्रह्म में लीन हो गये ।
माँ रोयी है बेटा खोके
    वैभव सारे दीन हो गये ।।

तुमने तो ये कहा मृत्यु से
    फिरसे तुम वापस आओगे ।
मौन दिशा से ज्योति जलाके
    ये धुंध तिमिर हटवाओगे ।।

हमसब तेरे प्रेमभाव को
    समावेश करते हैं मन में ।
मृत्यु तुम्हारा क्या कर लेगी
    आज बसे तुम हर जीवन में ।।

*कविराज तरुण 'सक्षम'*
*9451348935*

Wednesday, 15 August 2018

क्यों इसकदर मायूस है तू

*सुप्रभात लिए एक आस एक प्रश्न*

क्यों इसकदर मायूस है तू
दहलीज पर क्यों गुमसुम खड़ी है

शिकन संकोच की अनगिनत रेखाएँ
आखिर क्यों तेरे माथे जड़ी हैं

क्यों ये नियम ये रश्में तेरे हवाले
क्यों हाथों में तेरे उदासी के छाले

तेरे रास्तों में क्यों बंदिश बड़ी है
दहलीज पर क्यों गुमसुम खड़ी है

तोड़ दे सब भरम छीन ले माँग मत
कोई रोकेगा कैसे जो तेरा है हक़

तू स्वयंप्रभा है तू उज्ज्वला है
तू आदि-शक्ति तू निर्भया है

तू पूर्ण है तुझको है किसकी जरूरत
तू शुद्ध है पतित पावन तुम्हारी है सीरत

फिर क्यों निराशा की तिमिर शेष है
परमब्रह्म का जीवित तू अवशेष है

पोंछ ले अब ये आँसूँ घर से बाहर निकल
आकाश है तू ये धरती अग्नि वायु जल

सब तुझमे समाहित
सब तुझसे प्रवाहित

तोड़ दे तू उसे जो बंधी हथकड़ी है
दहलीज पर क्यों तू गुमसुम खड़ी है

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

*कविराज तरुण' 'सक्षम' । 9451348935*

Monday, 13 August 2018

ग़ज़ल 100 किधर गई

212 1212 212 1212

ऐ नदी नहर तेरी कश्तियां बिखर गईं ।
हम जवां तो गए मस्तियां किधर गईं ।।

दिन उदास हो गया चाँद भी तो खो गया ।
भागते रहे सभी हाय क्या ये हो गया ।।

शाम की ख़बर नही रात मे भी घर नही ।
लोग दिख रहे मगर ये मेरा शहर नही ।।

उम्र इसतरह मेरी जीते जी गुजर गई ।
हम जवां तो हो गए मस्तियां किधर गई ।।

बिन पतंग आसमाँ आज फिरसे रो रहा ।
भोर का उजास भी बादलों में खो रहा ।।

छत पे गिट्टियां नही खेल छूटने लगे ।
खुद-ब-खुद ही बाग़ से फूल टूटने लगे ।।

और शाख से सभी पत्तियां भी झर गई ।
हम जवां तो हो गए मस्तियां किधर गई ।।

देखता हिसाब हूँ झूठ की किताब में ।
क्या मजा मिले भला बोतलों शराब में ।।

यार सारे मतलबी साथ में फरेब भी ।
बेफिजूल खर्च में झर रही है जेब भी ।।

मूसकों की भीड़ से नोट भी क़तर गई ।
हम जवां तो हो गए मस्तियां किधर गई ।।

कविराज तरुण

Saturday, 11 August 2018

ग़ज़ल 99 बड़ी बेबसी थी

122 122 122 122

बड़ी बेबसी थी बड़ी बेकली थी ।
मुहाने ख़ुशी के वो देखो चली थी ।।

वो चलने लगी पाँव अपने उठाकर ।
सजी सामने आज सारी गली थी ।।

थी तैयार वो संग काँटो पे चलने ।
बड़े नाज से जो अभी तक पली थी ।।

मगर कुछ हुआ मान के मकबरे में ।
ये दुश्मन ज़माना मची खलबली थी ।।

बना फिर वहाँ इस मुहब्बत का मलबा ।
रिवाजों के चलते वो धूं धूं जली थी ।।

कविराज तरुण

Thursday, 9 August 2018

वंदेमातरम्

वंदेमातरम्

रक्त नसों में बहता कहता वंदे माँ भारती
मन का दीप जलाकर करता तेरी मै आरती
तूही आचमन ..तू आगमन
तूही जीवनम ..तू प्राणसम
वंदे वंदे वंदे वंदे ..वंदे रे मातरम्

ध्यान तेरा ही मस्तक में है साँस चली तुझसे
दिन का सूर्य तुम्ही से निकला साँझ ढली तुझमे
तेरी मिट्टी बनकर सोना हमको पाल रही हैं
मेरी दिशायें सारी तेरा पल्लू थाम रही हैं
तूही मोहनम ..तू माधवम
तूही जीवनम ..तू प्राणसम
वंदे वंदे वंदे वंदे ..वंदे रे मातरम्

कौन भला तुझसे बढ़कर है कौन विकल्प है तेरा
जीवन तेरे नाम किया है ये संकल्प है मेरा
शीश चढ़ा दूँ कदमो में पर कर्ज नही उतरेगा
जी करता मै करता रहूँ माँ बस तेरी ही सेवा
तूही साधनम ..तू भावनम
तूही जीवनम ..तू प्राणसम
वंदे वंदे वंदे वंदे ..वंदे रे मातरम्

कविराज तरुण