Wednesday 31 October 2018

हास्य - फेसबुक

विषय - हास्य
अतुकांत

एक मोहतरमा का फेसबुक पर सन्देश आया
'मै आपसे दोस्ती करना चाहती हूँ'
मन गुलाटी खाने लगा
तीन बार शीशे में शक्ल देखी
पकी दाढ़ी काली लगने लगी
भौं ऊपर तान के आँखों को निहारा
वाह ! क्या कलर चढ़ा है इस बार
झट से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी
और एक्सेप्ट होने का इंतजार शुरू
डीपी भी नई वाली लगा दी एडिटेड
मोहतरमा ने भी शीघ्र रिस्पांस दिया
और फ्रेंड रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लिया
अजी फिर क्या था जनाब
गुड मॉर्निंग से गुड नाईट तक
तरह तरह की साइट पर
हम चुटकुले और शायरी खोजते रहे
कुछ मन के उदगार भी उन्हें भेजते रहे
और किसी काम में मन कहाँ लगता
उसकी तस्वीर बीवी से छुपछुप कर देखते रहे
वक़्त खिसकता रहा बात बढ़ती गई
हमारी दोस्ती धीरे धीरे प्यार में बदल गई
और मिलने की तारीख आ गई आखिरकार
पर हमारी खुशियाँ बीवी को कहाँ थी गवार
बोली कहाँ जा रहे हो बन ठन के हुजूर
हमें आज शॉपिंग पर चलना है जरूर
हमने बहाने बनाये ऑफिस के और निकल पड़े
ऑनलाइन दोस्त से मिलने को थे बेताब बड़े
पर जब पहुँचे तो खुशियाँ धुआँ हो गई
जाके देखा तो बीवी थी बैठी हुई
बोली आओ हुजूर मिल लो हमसे
बड़े बेताब थे
फेसबुक ने आपके जम कर बनाये
हसीं ख़्वाब थे
अब बोलो क्या बोलोगे
अपना राज-ए-दिल कैसे खोलोगे
मै शर्म से पानी पानी हो गया
पाँव पकड़े और फिर रोने लगा
माफ़ कर दो अब कभी ऐसा होगा नही
तुम ही हो मेरी सबकुछ बोलता हूँ सही
फिर फेसबुक का बुखार यों उतरा
कि अब गलती से भी नजर नही आता हूँ
अब तो फोन भी बीवी की आज्ञा से ही उठाता हूँ

कविराज तरुण

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