Monday 22 October 2018

दर्द की शायरी पार्ट 1

ये चाँद सूरज मेरे घर नही आते
जबतलक ये तेरी खबर नही लाते
मौत गुजरती है आबरू खोकर
एक हम हैं जो गुजर नही पाते

कविराज तरुण

फिर दवा के नाम पर ये खता करी गई
यार जब मिले मुझे तब शराब पी गई
बेवफ़ा नही नही ! और कोई नाम दो
मिल गया उसे कोई और वो चली गई

कविराज तरुण

अब भी मेरे सवाल से तुम
बच रही हो क्या
क्यों आजकल नजर नही आती
बिजी हो क्या

ये मेरा दिल यहाँ वहाँ
लगता नही है क्यों
तुम ये बताओ इस जहाँ मे
आखिरी हो क्या

कविराज तरुण

इस दिल मे जो दर्द है
यकीनन उसकी बदौलत है
ये फनकारी मेरा शौक नही
ये मेरे तन्हाई की तंग सूरत है

क्यों दवा और ये दुआ
काम भी नही करती
ऐसा लगता है मुझे
उसकी ही जरूरत है

कविराज तरुण

फरेबी का ये हुनर कभी
सिखा देना हमें
मुनासिब हो तो एकबारगी
हँसा देना हमें

मिलो जो हमसे पहचानो
जरूरी तो नही
नजर झुका के ये मज़बूरी
बता देना हमें

कविराज तरुण

मेरी आवाज तुम तक पहुँचे तो बता देना
या यूँ करना कि हल्के से मुस्कुरा देना

हवा का तंज बदलेगा यकीनन यहाँ पर
एक काम करना दुपट्टे को ज़रा सा लहरा देना

-० कविराज तरुण ०-

जिंदगी सिर्फ रात का सफर नही होती
इसका अपना इक सबेरा भी है
तुममे तुम्हारा है सबकुछ नही
कहीं पर कुछ तो मेरा भी है

साल महीने हफ्ते दिन लम्हे
जो भी मेरे संग बिताये तुमने
यादों के चिलबन से तुम झाँक लेना
खुशियों का उसमे बसेरा भी है

-० कविराज तरुण ०-

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