Saturday 27 October 2018

वो पहली मुहब्बत

122 122 122 122

जो पहली दफ़ा थे तुम पास आये
क्या हालत हुई थी तुम्हे क्या बतायें
करो कितनी कोशिश
मगर जान लो तुम
वो पहली मुहब्बत भुलाई न जाये

ये रफ़्तार दिल की भी बढ़ने लगी थी
हाँ कितनी सुहानी वो अपनी घड़ी थी
कहो चाहे कुछ भी
मगर मान लो तुम
वो पहली मुहब्बत ही सबसे खरी थी

वो बारिश के टीलों पे पैरों की छनछन
मेरे साथ भीगा फुहारों में मधुबन
भिगो चाहे जितना
मगर जान लो तुम
वो पहली मुहब्बत का पहला था सावन

हवाओं में हल्की सी बरसात होगी
जो सहमी हुई सी अगर रात होगी
लगे चाहे जो भी
मगर मान लो तुम
वो पहली मुहब्बत की ही बात होगी

कविराज तरुण

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