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जो पहली दफ़ा थे तुम पास आये
क्या हालत हुई थी तुम्हे क्या बतायें
करो कितनी कोशिश
मगर जान लो तुम
वो पहली मुहब्बत भुलाई न जाये
ये रफ़्तार दिल की भी बढ़ने लगी थी
हाँ कितनी सुहानी वो अपनी घड़ी थी
कहो चाहे कुछ भी
मगर मान लो तुम
वो पहली मुहब्बत ही सबसे खरी थी
वो बारिश के टीलों पे पैरों की छनछन
मेरे साथ भीगा फुहारों में मधुबन
भिगो चाहे जितना
मगर जान लो तुम
वो पहली मुहब्बत का पहला था सावन
हवाओं में हल्की सी बरसात होगी
जो सहमी हुई सी अगर रात होगी
लगे चाहे जो भी
मगर मान लो तुम
वो पहली मुहब्बत की ही बात होगी
कविराज तरुण
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