[1/11, 20:10] कविराज तरुण:
दर्द का इल्जाम तुमपर आज फिरसे आ गया
जिसकी किस्मत में लिखा जो वो उसी को पा गया
मै नही कहता मुकम्मल है हमारा इश्क़ ये
सामने तुम आये जब भी तो ये कोहरा छा गया
[1/11, 20:44] कविराज तरुण:
जो सलीखेवार थे उनको सलीखा अब कहाँ
मुफ़लिसी है इश्क़ में कोई खलीफा अब कहाँ
कितनी कोशिश तुम करो पर मुश्किलों में जीत है
सच्चे आशिक़ को मिले जो वो वजीफा अब कहाँ
[1/11, 20:50] कविराज तरुण:
कागजी है नाँव फिर भी इक सफर की आस है
बैठ जाने दो उसे जो आज दिल के पास है
जिंदगी का क्या कहें कल शाम मेरी हो न हो
जो मिला है पल यहाँ मेरे लिए वो खास है
ये माना जिंदगी में दुश्वारियाँ बहुत हैं
पर कह दो मुश्किलों से तैयारियाँ बहुत हैं
अरे एक पारी खत्म हुई तो क्या हुआ
आने को अभी तो पारियाँ बहुत हैं
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इश्क़ की बातें मुझे सच्ची नही लगती
क्या करें सीरत तेरी अच्छी नही लगती
बे-ख्याली में कभी आना मेरे साहिब
नींद आँखों में अभी कच्ची नही लगती
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हर एक चीज़ दुनिया से बाँट ली मैंने
बस माँ का प्यार मुझसे बाँटा नही गया
वो हर सामान मेरा अक्सर तोड़ देती है
मै एक बाप हूँ मुझसे उसे डाँटा नही गया
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सामने से रुख हवा का मोड़ देती है
चैन सुख जाने वो क्या क्या छोड़ देती है
मै गमो से घिर न जाऊँ वो करे सजदा
रोज अपनी उम्र मुझमे जोड़ देती है
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ख्वाब अपनी हसरतों के भूल जाता है
कविराज तरुण
शौक के चलते बदनाम हो गये
खास थे मगर हम आम हो गये
यूँ तो पंक्षी बता देते थे हमारा पता
तुम गुम क्या हुए हम गुमनाम हो गये
कविराज तरुण
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08.04.20
दाग दामन पे था दर्द सीने से उठा
तेरा ख़याल आज फिर पीने से उठा
तूने जब ये कहा कि मुझपर भरोसा नही
सच कहूँ यार भरोसा जीने से उठा
कविराज तरुण
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11.04.20
खतरा तो नही है पर एहतियात जरूरी है
घर से निकलो तो फिर कागजात जरूरी है
ये इश्क़ घनी धूप में भला कैसे किया जाये
जज़्बात का तो ठीक मगर बरसात जरूरी है
कविराज तरुण
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12.04.20
वो जो बोलता है सबकुछ तो सच नही है
पर मेरी नजर में वो गुनहगार अबतक नही है
हो सकता है मजबूरी या कोई और वजह हो
या मेरी गलतफहमी ने पाई अभी हद नही है
कविराज तरुण
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कुछ गलतफहमी भी रहने दो
नही क्लियर करो सबकुछ
बहुत कुछ कर लिया तुमने
नही डिअर करो अबकुछ
कविराज तरुण
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03.05.2020
बाग से उखाड़कर गुलाब ले गए
तुम गए तो जिंदगी के ख्वाब ले गए
इसतरह बताओ कौन रूठता भला
तुम हमारे प्यार का हिसाब ले गए
कविराज तरुण
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06.05.2020
मेज पर रखी मेरी उस डायरी में तुम
उस रजिस्टर पर हुई सब हाजरी में तुम
जब भी लिखता हूँ तुम्हे ही सोचकर लिखता
आज भी महफूज़ हो हर शायरी में तुम
कविराज तरुण
लड़खड़ाया हूँ मगर फिर भी खड़ा हूँ मै
देश तेरे वास्ते फिर से लड़ा हूँ मै
जो ये कहते थे सुनो जिद छोड़ दो अपनी
आज उनके सामने जिद पे अड़ा हूँ मै
कविराज तरुण
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12.05.2020
आँखों मे गुमशुदा हैं
जज़्बात आज फिर से
काटे से न कटेगी
ये रात आज फिर से
कैसे मै भूल जाऊँ
नज़दीकियों को तेरी
होने लगी है बाहर
बरसात आज फिर से
कविराज तरुण
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15.05.2020
हर बात पे हैरां हो जाती हो
हँसती हो पर घबराती हो
चहरे पर जो नूर खिला है
कह दो कहाँ से वो लाती हो
कविराज तरुण
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२३.०५.२०२० १८:४४
हारी हुई बाजी के दाँव दूंढने चलो
आओ आज फिरसे मेरा गाँव दूंढने चलो
बहुमंजिला इमारतों से धूप आ रही बड़ी
आओ ज़रा पीपल की छाँव दूंढने चलो
कविराज तरुण
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२४.०५.२०२० २३:३६
रात मे अक्सर कई सवाल पूछे जाते हैं
चाहने वालों के हाल-चाल पूछे जाते हैं
ठीक नही है तेरा यूँ खामोश हो जाना
अपने बिस्तर मे चुपचाप ही सो जाना
जो भी हो मगर दिल के मलाल पूछे जाते हैं
रात मे अक्सर कई सवाल पूछे जाते हैं
कविराज तरुण
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२५.०५.२०२०। ११:२९
वो अक्सर मेरे प्यार को इग्नोर करती है
ज़रा ज़रा सी बात पर ही शोर करती है
मै रूठूँगा नही शायद इसका इल्म है उसे
तभी वो लड़ाईयां बड़ी घनघोर करती है
कविराज तरुण
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२५.०५.२०२०। २२:४५
करना ये अपनी बात ज़रा इत्मिनान से
बैठे हैं लोग-बाग तेरे खानदान से
इनकी दुआ मे साफ झलक मतलबी दिखे
खतरा तुम्हे तो आज भी है पासबान से
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तेरे बताये रस्ते पर ही
तुझसे मिलने जाता हूँ
लेकिन तुम न मिलती हो तो
खाली वापस आता हूँ
मुझे पता है तुम मुझसे अब
मिलने से कतराती हो
जाने ऐसा पत्थर दिल तुम
उठा कहाँ से लाती हो
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जो भी मेरी मुश्किल थी सब तुमसे मिलकर दूर हुई
देखो बंधन की बेड़ी ये कैसे चकनाचूर हुई
अलसायी आँखों से बादल बरसे तेरे नाम के
और मेरे लफ़्ज़ों की फितरत पलभर में मशहूर हुई
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[5/25, 23:40] कविराज तरुण: सच मे तुमको पाकर अब मै तुमको खोने से डरता हूँ
कुछ भी कह लो मुझको तेरे चुप होने से डरता हूँ
खुद की फिक्र नही है मुझको लापरवाह हूँ मनमौजी हूँ
पर तेरे सोने से पहले खुद सोने से डरता हूँ
[5/25, 23:48] कविराज तरुण: काले साये अक्सर मेरे साथ चला करते थे
घनी धूप में वो भी मुझसे दूर हो रहे हैं
अपनों की बस्ती में अब जाने से डर लगता है
और सभी कहते हैं हम मशहूर हो रहे हैं
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मुझको तेरी आँखों ने प्यारा सा अहसास दिया
मुझसे मिलकर चार हुईं और दिल को मेरे पास दिया
अब मै इन आँखों को कैसे रोने दूँ तन्हाई मे
जिसने मेरे जीवन को मकसद इतना खास दिया
कविराज तरुण
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