Tuesday 28 January 2020

ग़ज़ल - नही जानी

मिले हैं मुफ्त में शायद तभी कीमत नही जानी
ये सूरत जान ली तुमने मगर सीरत नही जानी

फलक पर चाँद का टुकड़ा सितारों से अलग क्यों है
लिखा क्या कुछ नही सबने मगर हालत नही जानी

वो पत्थर इसलिए हमसे कभी कुछ कह नही पाया
किसी ने इक दफा रुककर कभी हसरत नही जानी

तुम्हे है नाज जिस जिस पर उन्ही से है तुम्हे ख़तरा
छुपे चेहरों के भीतर की अभी हरकत नही जानी

ये कश्ती पार हो जाती अगर तूफां नही आता
'तरुण' ये कहने वालों ने मेरी हिम्मत नही जानी

कविराज तरुण

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