ॐ सुप्रभात
एक सवेरा ऐसा भी हो ,
प्रेम जहाँ पर संचित हो
एक सवेरा ऐसा भी हो ,
छाप प्रेम की अंकित हो
अतिदूर तमस का घेरा हो ,
ऐसा एक सवेरा हो
जो मेरा हो वो सब तेरा ,
जो तेरा सब मेरा हो
स्वार्थ कपट की बातों के बिन ,
मुक्त दिखे हर छोर दिशा
मन के भीतर गहराई में ,
लुप्त दिखे घनघोर निशा
जहाँ नेक व्यवहार लिये सब ,
इक-दूजे के साथ रहें
जो सबके मन को हर्षित हो ,
बस वैसी ही बात कहें
ना अंतस हो भारी भारी ,
ना आँखें हों जलधारी
दीप जले केवल आँखों मे ,
स्नेहभाव के हितकारी
नफरत की कोई पौध नही ,
घर मे बोई जाती हो
माधुर्य लिए वाणी वाणी ,
मधुरस मे घुल जाती हो
धन का कोई मोल नही हो ,
मन का कोना कोना हो
मन हीरा हो मन मोती हो ,
मन चाँदी मन सोना हो
शक्ति स्वरूपा माँ लक्ष्मी का ,
हम सबको उपहार मिले
एक सवेरा ऐसा भी हो ,
जहाँ प्यार ही प्यार मिले
कविराज तरुण
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