Tuesday 12 May 2020

ग़ज़ल - आज फिर से

आँखों मे गुमशुदा हैं , जज़्बात आज फिर से
काटे से न कटेगी , ये रात आज फिर से

कैसे मै भूल जाऊँ , नज़दीकियों को तेरी
होने लगी है बाहर , बरसात आज फिर से

पहले पहल मिले थे , तो लफ्ज़ ही सिले थे
अब याद आ रही है , वो बात आज फिर से

वो धुन अभी है ताजा , तुमने जो छेड़ दी थी
आकर मुझे सुना दो , नगमात आज फिर से

चंदा है चाँदनी है , क्या खूब रौशिनी है
कितना संवर रहे हैं , हालात आज फिर से

हर शायरी में तुमको , लिखने लगा 'तरुण' है
हर लफ्ज़ बन रहे हैं , सौगात आज फिर से

कविराज तरुण

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