Saturday 23 May 2020

विषय - देख असीमित लक्ष्य बड़ा

विषय - देख असीमित लक्ष्य बड़ा

निज खोल नयन तू कलरव कर ले
क्यों भूतल पर निष्प्राण पड़ा
अभी बहुत जीना है तुझको
देख असीमित लक्ष्य बड़ा

कुंठाओं से पार क्षितिज पर
पंख खोल के उड़ना है ?
या इन कीट-पतंगों जैसे
तुझे दीप मे जलना है ?

चयन तुम्हारा नियति तुम्हारी
गति हृदय-स्थल की बोल रही
संकल्पित अनुशासित मन को
ज्वार सिंधु की तोल रही

तू सिंधु ज्वार को आरव कर दे
देख राह मे आज अड़ा
अभी बहुत जीना है तुझको
देख असीमित लक्ष्य बड़ा

दिग-दिगंत के बीच कहो क्यों
साहस का ये काल बुरा
बस इतनी कठिनाई से ही
उच्छ्वासों का हाल बुरा

अभी बहुत है जीवन बाकी
दुर्दिन बदलेगा निश्चय से
नया सवेरा आएगा जब
पंख खोल के उड़ना फिरसे

तू नभ छूने की कोशिश कर ले
क्या सोचे यूँही खड़ा खड़ा
अभी बहुत जीना है तुझको
देख असीमित लक्ष्य बड़ा

कविराज तरुण

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