Monday, 22 June 2020

शायरी - बारिश

आज फिर बारिश में सवाल धुल गए
जो चल रहे थे मन में ख़याल धुल गए

देख करके तुमको जो आता था गाल पर
तुम दूर हो गए तो वो गुलाल धुल गए

कविराज तरुण

Sunday, 21 June 2020

शायरी - बदल गया

जिसने कभी गुलाब से सज़दा किया मेरा
वो शख्स दूसरे के साँचे में ढल गया

फिर वक़्त हो या मौसम या हों सफर की बातें
बदला जो एक तू तो सबकुछ बदल गया

कविराज तरुण

ग़ज़ल - दूर नहीं

2122 1212 22/112

काफिया - ऊर 
रदीफ़ - नहीं

शाम इतनी भी दूर दूर नहीं
गम की बातें गमों से चूर नहीं

बस ज़रा दिल मेरा है बेगाना
इसमे तेरा कोई कसूर नहीं

इश्क़ हमको समझ न आया तो
हमने माना हमें शऊर नहीं

बोल दूँ हाल दिल का आज तुझे
इतनी हिम्मत अभी हुजूर नहीं

ये तो किस्मत का खेल सारा है
अपनी किस्मत मे कोई नूर नहीं

कविराज तरुण
#साहित्यसंगमसंस्थान

Friday, 19 June 2020

मुक्तक - शूरवीर

प्रेमपथिक प्रिय पावन के पदकंजन मे रह जाता है
सौंदर्य का मुक्तिबोध कृत्रिम अभिव्यंजन में रह जाता है

शूरवीर को शोभित है संग्राम शत्रु की शैय्या पर
धिक्कार उसे जो घर बैठे आलिंगन में रह जाता है

कविराज तरुण

Thursday, 18 June 2020

निस्तारण

उत्थान पतन के बीच कदाचित अभ्यारण करना पड़ता है
अपनी युद्ध कुशलता का विस्तारण करना पड़ता है

बातों से जो कार्य बने वो निश्चय ही हितकारी है
पर अवसर आने पर रण में निस्तारण करना पड़ता है

कविराज तरुण

ग़ज़ल - मीत

विषय - मीत
विधा - ग़ज़ल

#मीतग़ज़ल #साहित्यसंगमसंस्थान

2122 2122 2122

देखकर तुमको बजे संगीत यारा
तुम बने हो मन मुताबिक मीत यारा

शाम की अंगड़ाइयों से पूछ लेना
हर अदा में आ गई है प्रीत यारा

हारकर दिल खुश हुआ है आज इतना
जैसे हासिल हो गई हो जीत यारा

प्यार का अहसास कितना दिलनशीं है
चल पड़ी शहनाइयों की रीत यारा

लफ्ज़ उसके नाम रुकने लगे हैं
और धड़कन गा रही है गीत यारा

कविराज तरुण
साहित्य संगम संस्थान

Wednesday, 17 June 2020

देश मेरे

गलवान भिड़ंत में शहीद हुए जवानों को विनम्र श्रद्धांजलि 

(देश मेरे)

देश तेरा ये कर्ज भला मै कैसे आज चुकाऊँगा
मिट्टी से तेरी बना हुआ मै मिट्टी मे मिल जाऊँगा

और नही कुछ ख़्वाहिश दिल मे बस तेरा ही नाम रहे
सुबह तेरी मिट्टी मे हो मिट्टी मे ही शाम रहे
और नही कुछ माँगूँ रब से बस तेरी रखवाली हो
आँच ज़रा भी आये तो फिर अपना वार न खाली हो

जान का अपने दाँव लगाकर अपना फर्ज निभाऊँगा
मिट्टी से तेरी बना हुआ मै मिट्टी मे मिल जाऊँगा

लहू का कतरा-कतरा तेरा साँसों पर अधिकार तेरा
रगो-रगो मे शामिल मेरे देश सदा ही प्यार तेरा
शान रहे ऐ देश तेरी फिर चाहे जंग जमीनी हो
फर्क हमे क्या पड़ता है वो पाकी हो या चीनी हो

तुझको आँख दिखाये जो मै उसे नोच खा जाऊँगा
मिट्टी से तेरी बना हुआ मै मिट्टी मे मिल जाऊँगा

जीवन का हर अक्षर मैंने देश तुझी पर वार दिया
साथ दिया जबतक साँसों ने दुश्मन का संहार किया
लगी गोलियाँ तन पर मेरे कोना-कोना छलनी है
देश मेरे तेरी सेवा मुझको वापस फिरसे करनी है

मौत भला क्या कर लेगी मै वापस फिरसे आऊँगा
मिट्टी से तेरी बना हुआ मै मिट्टी मे मिल जाऊँगा
देश तेरा ये कर्ज भला मै कैसे आज चुकाऊँगा
मिट्टी से तेरी बना हुआ मै मिट्टी मे मिल जाऊँगा

कविराज तरुण

Monday, 15 June 2020

मन : लघु लेख

साहित्य और समाज का संबंध:

स्थाई व अस्थाई मानवीय भावनाओं का रेखांकन ही साहित्य है और मानव से ही समाज निर्मित है ।  मानव ही साहित्य और समाज के बीच की कड़ी है । किसी भी समाज का अध्ययन वहाँ के साहित्य को पढ़कर आसानी से किया जा सकता है । साहित्य में न सिर्फ समाज को प्रदर्शित करने की कला होती है अपितु सामाजिक मूल्यों के निर्माण, उसके परिष्करण और विकास मे भी अहम भूमिका रहती है । 

सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन , जनमानस के नवजागरण , नैतिक जनाधिकारों के बचाव में भी साहित्य ने सदैव योगदान दिया । साहित्य ही समाज का निर्माता होता है और समाज ही साहित्य को समृद्ध बनाता है । साहित्य केवल खुशियों और आनन्द का बखान ही नही करता अपितु विरह, वेदना और अभाव को चित्रित भी करता है । इतिहास साक्षी है कि जब-जब समाज बंधन और घुटन मे फँसा, साहित्य ने ही उसे मुक्त किया । कई ऐसी क्रांतियाँ रही हैं जिसमे साहित्य ने स्वयं एक क्रांतिकारी की भूमिका निभाई ताकि एक भयमुक्त, समर्थ और समृद्ध समाज की स्थापना हो सके । यह पंक्ति कहने में कोई गुरेज नही-
साहित्य समाज का दर्पण है, निर्माता है , आलोचक है
साहित्यिक उत्कर्ष सदा ही, सभ्य समाज का द्योतक है

कविराज तरुण

साहित्य और समाज : लघु लेख

साहित्य और समाज का संबंध:

स्थाई व अस्थाई मानवीय भावनाओं का रेखांकन ही साहित्य है और मानव से ही समाज निर्मित है ।  मानव ही साहित्य और समाज के बीच की कड़ी है । किसी भी समाज का अध्ययन वहाँ के साहित्य को पढ़कर आसानी से किया जा सकता है । साहित्य में न सिर्फ समाज को प्रदर्शित करने की कला होती है अपितु सामाजिक मूल्यों के निर्माण, उसके परिष्करण और विकास मे भी अहम भूमिका रहती है । 

सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन , जनमानस के नवजागरण , नैतिक जनाधिकारों के बचाव में भी साहित्य ने सदैव योगदान दिया । साहित्य ही समाज का निर्माता होता है और समाज ही साहित्य को समृद्ध बनाता है । साहित्य केवल खुशियों और आनन्द का बखान ही नही करता अपितु विरह, वेदना और अभाव को चित्रित भी करता है । इतिहास साक्षी है कि जब-जब समाज बंधन और घुटन मे फँसा, साहित्य ने ही उसे मुक्त किया । कई ऐसी क्रांतियाँ रही हैं जिसमे साहित्य ने स्वयं एक क्रांतिकारी की भूमिका निभाई ताकि एक भयमुक्त, समर्थ और समृद्ध समाज की स्थापना हो सके । यह पंक्ति कहने में कोई गुरेज नही-
साहित्य समाज का दर्पण है, निर्माता है , आलोचक है
साहित्यिक उत्कर्ष सदा ही, सभ्य समाज का द्योतक है

कविराज तरुण

Thursday, 11 June 2020

प्यार के किस्से

कभी फुर्सतों में सुनना मेरे प्यार के किस्से
दिल-ए-करार के किस्से , दिल-ए-बहार के किस्से
वो चाँद मुझसे रूबरू था ये बात जमाने को खलती थी
बुरी नज़र अक्सर आकर मेरी खुशियों पर पड़ती थी
अब वो चाँद मुझमे खफा है आँखों से ओझल हो गया है
इन बादलों की साजिश के चलते देखो कहीं खो गया है
अब कैसे तुम्हे सुनाऊँ वो दीदार के किस्से
दिल-ए-करार के किस्से , दिल-ए-बहार के किस्से

कविराज तरुण

Wednesday, 10 June 2020

ग़ज़ल - दिन बहार के

212 1212 1212 1212

क्यों खफा खफा हुए ये दिन बहार के तरुण
देखता नही हमे गुलाब प्यार से तरुण

फूल फूल खिल रहे हैं आस-पास मे तेरे
एक हम ही रह गए हैं दरकिनार से तरुण

बेवफा ने कह दिया है जाने ऐसा क्या मुझे
आँख से निकल पड़ा है आबशार ये तरुण

फिरसे आज रात हमसे चाँदनी खफा हुई
चाँद को नजर लगी है जार-जार से तरुण

मुश्किलों से ही सफर मे हमसफर मिला करे
मिल गया तो थाम लो नजर उतार के तरुण


कविराज तरुण