Monday 15 June 2020

साहित्य और समाज : लघु लेख

साहित्य और समाज का संबंध:

स्थाई व अस्थाई मानवीय भावनाओं का रेखांकन ही साहित्य है और मानव से ही समाज निर्मित है ।  मानव ही साहित्य और समाज के बीच की कड़ी है । किसी भी समाज का अध्ययन वहाँ के साहित्य को पढ़कर आसानी से किया जा सकता है । साहित्य में न सिर्फ समाज को प्रदर्शित करने की कला होती है अपितु सामाजिक मूल्यों के निर्माण, उसके परिष्करण और विकास मे भी अहम भूमिका रहती है । 

सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन , जनमानस के नवजागरण , नैतिक जनाधिकारों के बचाव में भी साहित्य ने सदैव योगदान दिया । साहित्य ही समाज का निर्माता होता है और समाज ही साहित्य को समृद्ध बनाता है । साहित्य केवल खुशियों और आनन्द का बखान ही नही करता अपितु विरह, वेदना और अभाव को चित्रित भी करता है । इतिहास साक्षी है कि जब-जब समाज बंधन और घुटन मे फँसा, साहित्य ने ही उसे मुक्त किया । कई ऐसी क्रांतियाँ रही हैं जिसमे साहित्य ने स्वयं एक क्रांतिकारी की भूमिका निभाई ताकि एक भयमुक्त, समर्थ और समृद्ध समाज की स्थापना हो सके । यह पंक्ति कहने में कोई गुरेज नही-
साहित्य समाज का दर्पण है, निर्माता है , आलोचक है
साहित्यिक उत्कर्ष सदा ही, सभ्य समाज का द्योतक है

कविराज तरुण

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