कभी फुर्सतों में सुनना मेरे प्यार के किस्से
दिल-ए-करार के किस्से , दिल-ए-बहार के किस्से
वो चाँद मुझसे रूबरू था ये बात जमाने को खलती थी
बुरी नज़र अक्सर आकर मेरी खुशियों पर पड़ती थी
अब वो चाँद मुझमे खफा है आँखों से ओझल हो गया है
इन बादलों की साजिश के चलते देखो कहीं खो गया है
अब कैसे तुम्हे सुनाऊँ वो दीदार के किस्से
दिल-ए-करार के किस्से , दिल-ए-बहार के किस्से
कविराज तरुण
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