ग़ज़ल
2122 2122 212
काफ़िया - आर
रदीफ़- है
इश्क़वालों का गज़ब किरदार है
एक है पर दूसरे से प्यार है
चायवाली टोपरी पर बैठकर
फिर मसौदा इक नया तैयार है
गफलतों में हैं छुपी चिंगारियाँ
हर युवा क्यों इश्क़ में बीमार है
जिसको बनना था बड़ा इंसान वो
अपनी छोटी सोच से लाचार है
कर्ज में डूबी हैं घर की हसरतें
कर्ज में डूबा सकल व्यापार है
बाप ने भेजा था पढ़ने गाँव से
और बेटा रच रहा श्रृंगार है
रोकना मुमकिन नही चुप हो 'तरुण'
आशिकी तो कुदरती अधिकार है
कविराज तरुण
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