Saturday, 30 January 2021

3. प्रियतमे

कबसे सोया हुआ हूँ उठा जाओ न
चाय हाथों से अपने पिला जाओ न
#प्रियतमे ! पास मेरे चले आओ तुम
चाँद सा रूप अपना दिखा जाओ न

2. प्रियतमे

बात साँझा करूँ क्या किसी और से
दिल लगाया करूँ क्या किसी और से
#प्रियतमे ! पास मेरे चले आओ तुम
वक़्त ज़ाया करूँ क्या किसी और से

1. प्रियतमे

तुम विटामिन हो मेरे बदन के लिए
गुनगुनी धूप हो सर्द मन के लिए
#प्रियतमे ! पास मेरे चले आओ तुम
प्रेम आतुर मेरा है मिलन के लिए

Friday, 29 January 2021

मुक्तक - सहना पड़ता है

जीवन मे तो दर्द सभी को सहना पड़ता है
पानी बनकर पर्वत से भी बहना पड़ता है
चुप रहकर ही कौन समझ पाया है बातों को
अपने दिल का हाल कभी तो कहना पड़ता है

Thursday, 28 January 2021

ग़ज़ल - मंजूर है

क्या हुआ जो इश्क़ हमसे दूर है
वक़्त का हर फैसला मंजूर है

फासला दो चार दिन से ही हुआ
दर्द लेकिन हर जगह मशहूर है

दिल पे उसके है मेरी ही मलकियत
आँख में जिंदा मेरा ही नूर है

वो सुहागन बन गई है गैर की
मांग में फिरभी मेरा सिंदूर है

कविराज तरुण

Monday, 18 January 2021

गीत - आधा भाव

तेरी मीठी बातें सुनकर , वैरागी को प्यार हुआ
आधा भाव समर्पण का है , आधे पर अधिकार हुआ

किसी डोर से बाँध रहा वो , मेरे चाँद सितारों को 
किसी छोर से साध रहा वो , मन के  इन अँधियारों को 
उसकी आँखों के सूरज में , दिन का ये विस्तार हुआ
आधा भाव समर्पण का है , आधे पर अधिकार हुआ

तुमसे मिलकर विरह तान भी , मधुर गीत बन जाती है
तुमसे मिलकर नागफनी भी , मंद मंद मुस्काती है
ऐसे में तुमको पाकर मै , खुशियों का आगार हुआ
आधा भाव समर्पण का है , आधे पर अधिकार हुआ

नेह लिए तुम आई जबसे , मेरे मन के आँगन में
झूल रहा मन पेंग मार के , जोर जोर से सावन में
नई किरण का नये पहर में , नया नया संचार हुआ
आधा भाव समर्पण का है , आधे पर अधिकार हुआ

गंगाजल सा हृदय तुम्हारा , और फूल सी काया है
रूप गढ़ा ये कूट कूट के , प्रभु की कैसी माया है
सतरंगी सपनों का जैसे , चिर यौवन श्रृंगार हुआ
आधा भाव समर्पण का है , आधे पर अधिकार हुआ

कविराज तरुण

Thursday, 14 January 2021

जैसे जमाना चाहे

रेत में क्यों कोई फूल उगाना चाहे
वैसे ढल जायेंगे जैसे ये जमाना चाहे

बात उम्मीद की सुनने में अच्छी है
अपने हालात भला कौन बताना चाहे

छोड़ के वो तो गया ये तेरा मुकद्दर है
क्या हुआ दिल कहीं और ठिकाना चाहे

हर जुर्म इसी बात पे बढ़ता ही चला जाता है
मै दर्द छुपाना चाहूँ वो जुर्म छुपाना चाहे

रायशुमारी से तेरा कुछ नही होगा
उसको दूंढो जो तेरा बोझ उठाना चाहे

कविराज तरुण

ग़ज़ल - निगहबान था

जिसकी सूरत का दिल ये कदरदान था
वो किसी और के दिल का महमान था

ख्वाब उल्फ़त के यूँही बिखर जायेंगे
बात से बेखबर मै तो अनजान था

उसकी हर मुश्किलों में उलझता रहा
मै इन्ही आदतों से परेशान था

हाथ आया नही फूल मुझको कभी
मै बगीचे का कबसे निगहबान था

वो जिसे मै खुदा ही समझता रहा
वो मुसलसल सा बस एक इंसान था

कविराज तरुण

ग़ज़ल - नमी आपसे

दिल लगाया था हमने कभी आपसे
आज आंखों मे आई नमी आपसे

और कोई कहे तो कहे माफ है
तू भी पागल कहे तो दुखी आपसे

एक दिन तो बुझेगा दिया प्यार का
आँधियों की हुई दोस्ती आपसे

नाम आता है जब भी जुबां पर तेरा
मुझको मिलती नही है खुशी आपसे

कविराज तरुण

Thursday, 7 January 2021

नववर्ष

रश्मियाँ भोर की कल तो आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा सी अमर कर दो
सोच लो ठान लो मन का संज्ञान लो
इस हिमालय से ऊँचा शिखर कर दो

रश्मियाँ भोर की कल तो आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा सी अमर कर दो

प्यार के द्वार पर हिय का दरबार है
आत्म चिंतन से संभव ये उद्गार है
नेत्र की अंजलि में चमक जीत की
बोली भाषा बने यों सहज फूल सी
कि लगे सब तरफ सिर्फ मुस्कान है
ये नया वर्ष आकर्ष मेहमान है

इन विचारों का मन में बसर कर दो
रात स्वप्निल सुधा से अमर कर दो

रश्मियाँ भोर की कल तो आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा सी अमर कर दो

तरुण कुमार सिंह
प्रबंधक
विपणन विभाग
लखनऊ