Thursday, 13 May 2021

गुमान से निकला

अपने खुद के गुमान से निकला
तेरी महफ़िल मकान से निकला

मेरा जाना तो ऐसे जाना है
तीर जैसे कमान से निकला

था चराग़ों सा बंद कमरे में
आज मै आसमान से निकला

जब लिखा था अजाब सहना है
खामखाँ इम्तिहान से निकला

तू भी जिंदा है मै भी जिंदा हूँ
दर्द केवल जुबान से निकला

हीर राँझा फराद शीरी क्यों
तू नये खानदान से निकला

कविराज तरुण

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