अपने खुद के गुमान से निकला
तेरी महफ़िल मकान से निकला
मेरा जाना तो ऐसे जाना है
तीर जैसे कमान से निकला
था चराग़ों सा बंद कमरे में
आज मै आसमान से निकला
जब लिखा था अजाब सहना है
खामखाँ इम्तिहान से निकला
तू भी जिंदा है मै भी जिंदा हूँ
दर्द केवल जुबान से निकला
हीर राँझा फराद शीरी क्यों
तू नये खानदान से निकला
कविराज तरुण
No comments:
Post a Comment