मेरे अविनाशी मन का हर भाव तुम्हे जब प्रेषित हो
मेरे चित्तपटल पर तेरा नाम स्वयं आलेखित हो
तब तुम मिलने आओगी क्या मुझसे मिलने आओगी
तोड़ सभी ये बंधन तुम क्या मेरा साथ निभाओगी
अरुणांचल को छोड़ अरुण जब रूप चाँद का धर लेगा
दिन का उजियारा जब दीपक अपनी लौ में भर लेगा
जब अम्बर के तारे गिनते गिनते मै सो जाऊँगा
जब स्वप्नों की अमरबेल पर तुमको पास बुलाऊँगा
तब तुम मिलने आओगी क्या मुझसे मिलने आओगी
तोड़ सभी ये बंधन तुम क्या मेरा साथ निभाओगी
अधरालय की त्रिज्या से बात तुम्हारी की जायेगी
नयनों की हर कोन दिशा चित्र तुम्हारे दर्शायेगी
जब पुष्पों की गंध हृदय के भीतर आच्छादित होगी
ऋतुओं की जब भाव-भंगिमा तुमपर आधारित होगी
तब तुम मिलने आओगी क्या मुझसे मिलने आओगी
तोड़ सभी ये बंधन तुम क्या मेरा साथ निभाओगी
यदि मै सात वचन देने का वचन तुम्हारे नाम करूँ
अग्नि धरा जल जीवन अम्बर पवन तुम्हारे नाम करूँ
यदि मै नाम करूँ सब अपना जो भी मैंने पाया है
तुमसे कह दूँ तुम ही सच हो बाकी सब तो माया है
तब तुम मिलने आओगी क्या मुझसे मिलने आओगी
तोड़ सभी ये बंधन तुम क्या मेरा साथ निभाओगी
कविराज तरुण
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