Wednesday 17 July 2024

ग़ज़ल - सिलसिले

ग़ज़ल - सिलसिले
©कविराज तरुण 

बड़े हुजूम से निकले तुम्हारे काफ़िले हैं 
बहुत से लोग ऐसे हैं जो तुमसे जा मिले हैं

तुम्हारे जुल्म के चर्चे सुनाई दे रहें हैं 
मगर मै कुछ नही कहता भले शिकवे-गिले हैं

मुझे तो बात बस ये ही तसल्ली दे रही है 
हमारे नाम से रौशन तुम्हारी महफिले हैं

जमीं पे कुछ नही निकला हमारे क्यों अभी तक 
उधर तो पत्थरों में भी तुम्हारे गुल खिले हैं

किसी से क्या बताऊँ हाल क्या है अब हमारा 
कहानी फिर वही है और फिर वो सिलसिले हैं

बहुत से लोग ऐसे हैं जो तुमसे जा मिले हैं

No comments:

Post a Comment