Sunday, 28 July 2024

ग़ज़ल - अगर हैं मंजिले

अगर हैं मंजिलें तो फिर कहीं पर रास्ता होगा
हमारे हक़ में जो भी है कहीं पर तो लिखा होगा

मै मीलों दूर जाने के लिए तैयार कबसे हूँ
अगर तुम साथ होगे तो सफर मे हौसला होगा

मुझे कुछ सोचकर रब ने बनाया है अलग तुमसे 
मै जैसा हूँ, नही बदलो, बदलकर क्या भला होगा

कभी जब साथ बैठेंगे पुराने दिन की कुर्बत में
रही क्या गलतियां अपनी इसी पर मशवरा होगा

मुझे अफ़सोस होता है मगर मै भूल जाता हूँ
अगर सब याद आ जाये तो कैसे फासला होगा

कविराज तरुण 

No comments:

Post a Comment