Friday, 24 July 2020

ग़ज़ल - प्यार कीजिये उसे

#साहित्यसंगमसंस्थान
#ग़ज़ल - प्यार

212121212121212

प्यार से मिले कोई तो प्यार कीजिये उसे
एकबार प्यार से पुकार लीजिये उसे

जाने कैसी उलझनों मे जी रहा है वो अभी
गौर से कभी कभी निहार लीजिये उसे

तेरा क्या है मेरा क्या है कौन लेके जायेगा
अपने हक की चीज भी उधार दीजिये उसे

बार बार कोसने से होगा तेरा क्या भला
नेकभाव से कभी विचार लीजिये उसे

प्यार से बड़ी कोई भी मापनी बनी नही
आप प्यार मे 'तरुण' उतार लीजिये उसे

कविराज तरुण

Tuesday, 21 July 2020

आत्मनिर्भर भारत

आत्मनिर्भर भारत

ये एक दौर है तुम इसे बीत जाने दो
बुरा वक्त तो आता है और निकल जाता है
जिसने दूसरों को हँसने के मौके दिए
एक न एक दिन वो जरूर मुस्कुराता है

तुम्हे किस बात की फिक्र है
तुम्हे किस चीज़ पर ऐतराज है
ऐसा कौन है जो कभी हारा नही
ऐसा कौन जो हुआ बे-सहारा नही

पर खुद को तो संभालना पड़ता है
अपने आप को निखारना पड़ता है
मुसीबतों से घबराकर आखिर क्या होगा
इन्हीं हाथों से मुकद्दर सँवारना पड़ता है

पाँचो उँगलियाँ बराबर नही होतीं
हर मौसम एक जैसे नही होते
सही मौके की तलाश में चलते रहो तो
मंजिल की ओर बढ़ता रास्ता नजर आता है

ये एक दौर है तुम इसे बीत जाने दो
बुरा वक्त तो आता है और निकल जाता है
जिसने दूसरों को हँसने के मौके दिए
एक न एक दिन वो जरूर मुस्कुराता है

डर तो लगता है इसमे कोई नई बात नही
सूरज कल दस्तक देगा हमेशा ये रात नही
बस एक उम्मीद का दिया जलाना जरूरी है
जो हो गया सो हो गया उसे भुलाना जरूरी है

अपनी ताकत पहचानो और जमकर प्रयास करो
काबिल नही हो अगर तो भी अभ्यास करो
ऐसा कुछ भी नही जो तुम कर नही पाओगे
इन्ही कदमों से एकदिन फलक छू के आओगे

बस 'आत्मनिर्भर' होने का अहसास जरूरी है
अपने हौसलों पर ज़रा सा विश्वास जरूरी है
फिर देखना तस्वीर बदल जायेगी देश की जहान की
तुम्हारे हाथों मे छुपी है तकदीर हिंदुस्तान की

ये एक दौर है तुम इसे बीत जाने दो
बुरा वक्त तो आता है और निकल जाता है
जिसने दूसरों को हँसने के मौके दिए
एक न एक दिन वो जरूर मुस्कुराता है

तरुण कुमार सिंह
(कविराज तरुण)
7007789629
प्रबंधक - यूको बैंक

Friday, 17 July 2020

ग़ज़ल - मिला कीजिये

#साहित्यसंगमसंस्थान

जब भी मौका मिले तो मिला कीजिये
दर्द-ए-दिल की यही इक दवा कीजिये

प्यार में और कुछ तो जरूरी नही
पर जरूरी है इसमें वफ़ा कीजिये

दिलनशीं फूल सा तेरा ये रूप है
मेरी आँखों मे आके रहा कीजिये

चाँद का हो रहा चाँदनी से मिलन
आप भी हो सके तो मिला कीजिये

इश्क़ में जो हुआ वो तो बढ़िया हुआ
इस 'तरुण' के लिए सब दुआ कीजिये

कविराज तरुण

ग़ज़ल - फैसला कीजिये

#ग़ज़ल
#साहित्यसंगमसंस्थान

212 212 212 212

हर बुरी चीज से फासला कीजिये
मशविरा सिर्फ ये मत बुरा कीजिये

चाहिए उस खुदा की जो रहमत तुम्हे
उसके बंदों का खुलकर भला कीजिये

वक़्त के साथ चलने से होगा ही क्या
वक़्त के बाद का हौसला कीजिये

कोशिशों के बिना कुछ भी मिलता नही
कुछ अलग कीजिये कुछ नया कीजिये

एकदिन तो सभी को है जाना 'तरुण'
राह का आप ही फैसला कीजिये

कविराज तरुण
#साहित्यसंगमसंस्थान

Thursday, 16 July 2020

गीत - सावन

#विषय - सावन

जाने कब ये सावन आया , जाने कब बरसात हुई
सुंदर सपनों की कोशिश में , मेरी बीती रात हुई

जो भी मैंने सोचा था वो , नही अभी तक पूर्ण हुआ
मेरे सपनों का शीशा ये , रगड़-रगड़ कर चूर्ण हुआ

मन को बहलाने वाली भी , नही अभी तक बात हुई
जाने कब ये सावन आया , जाने कब बरसात हुई

प्रेमपथिक की मुश्किल इतनी , कलयुग के इस बंधन में
प्रेमसुधा का आशय सीमित , नश्वर वाले इस तन में

मन के भीतर के भावों को , नही कोई भी जाने अब
केवल झूठी दुनिया को ही , हर कोई पहचाने अब

पृष्ठों पर पीड़ा अंकन की , देखो अब शुरुआत हुई
जाने कब ये सावन आया , जाने कब बरसात हुई

कविराज तरुण
#साहित्यसंगमसंस्थान

Friday, 10 July 2020

ग़ज़ल - वार कर

#साहित्यसंगमसंस्थान
#दैनिककार्यक्रम : १०.०७.२०२०

एक शेर मिसरा के वास्ते-

मंजिलों की शर्त है बस मुश्किलों को पार कर
और मेरी जिद हदों के पार सीमा यार कर

#ग़ज़ल 

काफ़िया- आर
रदीफ़- कर
वज्न- 2122 2122 2122 212

दानवों का अंत करके देश का उद्धार कर
हर बुराई का बराबर भाव से संहार कर

जो किसी की जिंदगी का मोल करता है नही
धर्म कहता है कि खुलकर तू उसी पर वार कर

रौब अपना झाड़कर बे-खौफ घूमें सिरफिरें
तो जरूरी है तेरा तू अपनी सीमा पार कर

कामयाबी के नशे में जुल्म जब बेहद बढ़े
तब यकीनन पार्थ उसकी जोर से फटकार कर

न्याय की तहरीर में सबकुछ नही मिलता 'तरुण'
तू कभी तो न्याय की खातिर कोई यलगार कर

कविराज तरुण
साहित्य संगम संस्थान

Monday, 6 July 2020

गीतिका - सम्मान ज्ञान का

दिनाँक : ०७.०७.२०२०
दिवस : मंगलवार
#विषय : #सम्मान_ज्ञान_का
#साहित्यसंगमसंस्थान
#विधा : #छंदगीतिका
(14,12 पर यति, दो-दो चरण संतुकात, अंत मे लघु-गुरु)

हमसब करें सुंदर पहल
ज्ञान के सम्मान की
लेखनी हो सारगर्भित
वर्तनी में चासनी

कर्म का हो बोध अगणित
तर्कसंगत बात हो
धर्म का दीपक लिए ही
जगमगाती रात हो

कल्पना के पार जाओ
विश्व के निर्माण में
देवता के दिव्य दर्शन
हों सभी के प्राण में

सोच सुरभित पुष्प सी हो
भाव मधुकर सा बने
सत्य का स्वरूप निर्मित
हो सभी के सामने

प्रेम संचित हो हृदय मे
सद्गुणों का वास हो
सम्मान हो साहित्य का
हर सृजन में आस हो

साहित्य की इस राह पर
साथ में आओ चलें
बात मन की पूर्ण मन से
हम सभी आओ करें

कविराज तरुण
#साहित्यसंगमसंस्थान

Thursday, 2 July 2020

ग़ज़ल - इश्क़वालों का किरदार

ग़ज़ल
2122 2122 212
काफ़िया - आर
रदीफ़- है

इश्क़वालों का गज़ब किरदार है
एक है पर दूसरे से प्यार है

चायवाली टोपरी पर बैठकर
फिर मसौदा इक नया तैयार है

गफलतों में हैं छुपी चिंगारियाँ
हर युवा क्यों इश्क़ में बीमार है

जिसको बनना था बड़ा इंसान वो
अपनी छोटी सोच से लाचार है

कर्ज में डूबी हैं घर की हसरतें
कर्ज में डूबा सकल व्यापार है

बाप ने भेजा था पढ़ने गाँव से
और बेटा रच रहा श्रृंगार है

रोकना मुमकिन नही चुप हो 'तरुण'
आशिकी तो कुदरती अधिकार है

कविराज तरुण