Wednesday, 25 October 2023

खुश आमदीद है

221 222 2 22 1212

ये आंखें इक अरसे से जिनकी मुरीद है
वो आ गए महफिल में खुश आमदीद है

हम सरफिरों को चाँद-सितारे जहाँ मिले
उस रोज है दीवाली उस रोज ईद है

उसको गवाही देनी है जालसाज की
जो जालसाजी करके खुद मुस्तफीद है

इज्जत कमाने निकले हम देखभाल के
किसको पता था ये भी अब जर-खरीद है

इस रूह से मत पूछो के बिक के क्या मिला
वो झूठ कैसे बोले जो चश्मदीद है

No comments:

Post a Comment