ये आंखें इक अरसे से जिनकी मुरीद है
वो आ गए महफिल में खुश आमदीद है
हम सरफिरों को चाँद-सितारे जहाँ मिले
उस रोज है दीवाली उस रोज ईद है
उसको गवाही देनी है जालसाज की
जो जालसाजी करके खुद मुस्तफीद है
इज्जत कमाने निकले हम देखभाल के
किसको पता था ये भी अब जर-खरीद है
इस रूह से मत पूछो के बिक के क्या मिला
वो झूठ कैसे बोले जो चश्मदीद है
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