पर मिलने की जिद करूँ तो मिल लिया करे
तमाम शिकवे शिकायतें अपनी जगह महफूज़ हैं
पर कुछ बातों को पल भर के लिए अनसुना करे
जो काम मुश्किल है वही मेरे हिस्से आता है
इतनी हिम्मत कहाँ मुझमे कि तुमको मना करे
जो मेरे साथ खुश है जिसे मुझपर यकीन भी है
वो मेरे साथ चले वर्ना वो मुझे अलविदा करे
मै अबतक न समझा इबादत में दखल का मकसद
जो अपना है ही नही उसका कोई क्या गिला करे
ये जरूरी नही मेरे हक़ में कोई फैसला करे
पर मिलने की जिद करूँ तो मिल लिया करे
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