लगा के दाग चेहरे पे , लतीफे रोज़ पढ़ते हैं ...
बड़े बेशर्म हैं सत्ता के , ये सारे रखवाले |
अनजाने में जिन्हें हमसब , भला मानुष समझते हैं
ऐसे नर-भुजंग कितने , हमने आज हैं पाले ||
घुटन भी क्यूँ नहीं इनको , कोयले की दलाली में
यहाँ एक रेत गैरो की , गले की फांस बनती है |
जो हम सच बोलते हैं तो , झूठ सब मानते 'तरुण'
और इनकी जुबानी अब्शब्द भी , अरदास बनती है ||
कभी चाचा कभी ताऊ , कभी भाई - भतीजा वाद
कभी दामाद की मौजें , कभी साले का विवाद |
कहानी है वही कबसे , चेहरे हर पल बदलते हैं
रिश्तेदारों के प्रमोशन की , सिफारिशे रोज़ करते हैं ||
फाइलें रोज़ आती हैं , इनके कारनामो की
प्रतिस्पर्धा सी लगी हो जैसे , काला धन कमाने की |
खुलासे करके थक गयी हैं , सारी कमेटियां अब तो
समय की मांग है इनको , अर्श से फर्श दिखाने की ||
बंद कमरों में ये अक्सर , साजिशें खूब रचते हैं ...
सफ़ेद कपड़ो में छिपाते हैं , मैल अन्दर के ये काले |
लगा के दाग चेहरे पे , लतीफे रोज़ पढ़ते हैं ...
बड़े बेशर्म हैं सत्ता के , ये सारे रखवाले ||
--- कविराज तरुण
बड़े बेशर्म हैं सत्ता के , ये सारे रखवाले |
अनजाने में जिन्हें हमसब , भला मानुष समझते हैं
ऐसे नर-भुजंग कितने , हमने आज हैं पाले ||
घुटन भी क्यूँ नहीं इनको , कोयले की दलाली में
यहाँ एक रेत गैरो की , गले की फांस बनती है |
जो हम सच बोलते हैं तो , झूठ सब मानते 'तरुण'
और इनकी जुबानी अब्शब्द भी , अरदास बनती है ||
कभी चाचा कभी ताऊ , कभी भाई - भतीजा वाद
कभी दामाद की मौजें , कभी साले का विवाद |
कहानी है वही कबसे , चेहरे हर पल बदलते हैं
रिश्तेदारों के प्रमोशन की , सिफारिशे रोज़ करते हैं ||
फाइलें रोज़ आती हैं , इनके कारनामो की
प्रतिस्पर्धा सी लगी हो जैसे , काला धन कमाने की |
खुलासे करके थक गयी हैं , सारी कमेटियां अब तो
समय की मांग है इनको , अर्श से फर्श दिखाने की ||
बंद कमरों में ये अक्सर , साजिशें खूब रचते हैं ...
सफ़ेद कपड़ो में छिपाते हैं , मैल अन्दर के ये काले |
लगा के दाग चेहरे पे , लतीफे रोज़ पढ़ते हैं ...
बड़े बेशर्म हैं सत्ता के , ये सारे रखवाले ||
--- कविराज तरुण
real face of the indian politics.... hope it will not flooded with charges of corruption in future... young, innovative and honest blood is todays requirement in politics... JAI HIND !!!
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