एक शख़्स ही सारा शहर लगता है
मोहब्बत एक दो दिन की बात नही
उम्र भर का इसमें सफर लगता है
उड़ने का काम परिंदो पे छोड़ दो
यूं तो हर काम में हुनर लगता है
दिल में जगह रखना तो काफी नही
घर बसाने के लिए भी घर लगता है
यही कश्मकश है यही दर्द-ए-पैहम
अपना नही है वो अपना मगर लगता है
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