Saturday, 17 December 2022

जमीं पे उतर के आओ

बड़े घरों में ओ रहने वाले, ज़रा सा रहमोकरम दिखाओ
बहुत दिनों तक रहे फलक पे, कभी जमीं पर उतर के आओ
तुम्हे मुहब्बत के इस सफर में, तमाम राहें दिखाई देंगी
के एक दरिया तुम्हे मिलेगा, है पार जाना तो डूब जाओ
कभी समंदर हुई थी आँखें, कभी बहारे चमन हुआ था
कहूं भला क्या मै आज तुमसे, कोई कहानी तुम्ही सुनाओ
तुम्हे मुबारक है शाम शबनम, गुले बहारा तुम्हे मुबारक
हमारे हिस्से में रात काली, ये चांद थाली चलो छुपाओ
जो साथ आये वो दूर हैं अब, यही तो उल्फत मे हो रहा है
बदल सको जो रिवाज़-ए-उल्फत, हमारी महफिल मे पेश आओ

कविराज तरुण

Sunday, 27 November 2022

निकल रहा है

कहीं पे जुगनू टहल रहा है
कहीं पे सूरज निकल रहा है

इसी गुमां में बढ़े कदम ये
ज़माना पीछे ही चल रहा है

हटा रहे क्यों ये धूल जाला
इसी से दिल ये बहल रहा है

तुम्हे लगेगा तुम्ही शहंशा
तुम्ही से हर कोई जल रहा है

मगर पता क्या किसे हक़ीक़त 
के ऊंट करवट बदल रहा है

कविराज तरुण

Saturday, 26 November 2022

आने वाला कल होगा

माना थोड़ा वक्त लगेगा पर संकट का हल होगा
आज नही है तेरा तो क्या आने वाला कल होगा

रात में जुगनू चांद सितारे माना कि इतराते हैं
भोर उदय जब होता सूरज ये सारे छुप जाते हैं
पर्वत को सन्नाटे में ही बरबस रहना पड़ता है
आंधी धूप थपेड़ों को भी डटकर सहना पड़ता है

तू जितना सह जायेगा तू उतना और प्रबल होगा
आज नही है तेरा तो क्या आने वाला कल होगा

चींटी इक इक दाना लेकर मीलों लंबा चलती है
हर कठिनाई से लड़कर वो जीवनयापन करती है
पतझड़ में पेड़ों की डाली बिन पाती रह जाती है
पर मौसम आने पर वो ही फूलों से भर जाती है

सही समय आने पर तेरा हर इक काम सफल होगा
आज नही है तेरा तो क्या आने वाला कल होगा

कर्म सिवा कुछ हाथ नही तब चिंता का मोल भला क्या
सत्य नही धारण जिसमे उस व्यक्ति का बोल भला क्या
तुझे पता है तेरी ताकत मात्र यही आवश्यक है 
जीवनपथ पर दौड़ अनवरत सोच यही तू धावक है

जैसी तेरी करन होगी वैसा आगे फल होगा
आज नही है तेरा तो क्या आने वाला कल होगा

Wednesday, 2 November 2022

गजल - हो जायेगा

दो शब्द मीठे बोलने से क्या बुरा हो जायेगा
पर दो दिलों के दरमियां कम फासला हो जायेगा

क्यों नफरतों का बीज फैला है जहां में हरतरफ
ये बीज आगे पेड़ बनकर फिर खड़ा हो जायेगा

ये आग वाला खेल माना दे रहा है मौज भी
पर एकदिन इस आग से ही हादसा हो जायेगा

इस प्यार में जो शक्ति है वो है नही अलगाव में
हां देखिए इस शक्ति से कितना भला हो जायेगा

है कौन किसका सोचने की क्या जरूरत है 'तरुण'
जो ना हुआ अबतक किसी का वो तेरा हो जायेगा

Wednesday, 12 October 2022

नही कोई

तेरे दर पे मेरा है बसर नही कोई
चल रहे हैं मगर है सफर नही कोई

लोग बेजान से मुर्दों की तरह जीते हैं
ये शहर है अगर तो शहर नही कोई

दाग़ हर रोज चहरे पे मेरे लगते हैं
ताब -ए -रुखसार पर है असर नही कोई

खार को गुल कहो ये भी क्या तमाशा है
हमको मालूम है ये शजर नही कोई

वो जिसे अपना कह करके मुस्कुराते हो
इल्म है , है कोई , है मगर नही कोई

Tuesday, 11 October 2022

होता है

चोट का बस निशान होता है
दर्द तो बेजुबान होता है
कौन कितना करीब है तेरे
वक्त पे इम्तिहान होता है

Wednesday, 14 September 2022

दोहावली 1-10

-//१//-
जीवन है उपहार ये , रखो अपना ध्यान
धरती पर अवतार को , तरसे हैं भगवान

-//२//-
जिसकी जैसी भावना , उसका वैसा रूप
कोई लागे छांव सा , कोई लागे धूप

-//३//-

जितनी होंगी मुश्किलें , उतना होगा काम
बाधाओं से जीतकर , आते हैं परिणाम

-//४//-

बाहर किसको दूंढता , अंदर हैं जब प्रान
दूजे को क्या देखना , अपने को पहचान

-//५//-

छोटी छोटी बात को , मत देना तुम तूल
अच्छी बातें छोड़कर , जाओ सबकुछ भूल

-//६//-

काम का ही मान है , काम का ही मोल
बाकी सब बकवास है , चाहे जितना बोल

-//७//-

बेमतलब की बात पर, करो नही अलगाव
छोटी सी इक चोट भी, बन जाती है घाव

-//८//-

राखो अपने आप को, सोने सा तुम साफ
जो बुरा तुमको कहे, कर दो उसको माफ

-//९//-

अपना मन यों साफ हो, नही किसी से बैर
ना कोई है आपका, ना ही कोई गैर

-//१०//-

मन की अपने कीजिए , कैसा है संकोच
अपनी हर इक चोट है , अपनी है हर मोच

हिंदी भाषा

हिंदी भाषा शक्ति है , हिंदी है अभिमान
हिंदी हरदम बोलिए , काहे का व्यवधान
हिंदी से ही हिंद है , हिंदी है गतिमान
हिंदी भाषा जोड़ती , सारा हिन्दुस्तान

Saturday, 10 September 2022

कविता - दो पैसे लाने का चक्कर

कविता - दो पैसे लाने का चक्कर

अपनी मर्जी से कब कोई, दूर शहर को जाता है
दो पैसे लाने का चक्कर , चक्कर खूब लगाता है
जब पिज्जा खाने की हसरत, मजबूरी बन जाती है
तब मां के हाथों की रोटी, उसको बड़ा सताती है
सोच सोचकर घर का खाना, भूखे ही सो जाता है
दो पैसे लाने का चक्कर, चक्कर खूब लगाता है

सपनों का मोहक आकर्षण, बातें चांद सितारों की
बेमानी हो जाती है जब, टोली अपने यारों की
सुध बुध खोने वाली चाहत, नेहप्रिया की बाहों में
धीरे धीरे थक जाती है, शामें ढलकर राहों में
तब उसको मखमल का बिस्तर, नींद कहां दे पाता है
दो पैसे लाने का चक्कर, चक्कर खूब लगाता है

रिश्तों की गर्माहट से जब, गंध जलन की आती है
सहकर्मी की मेल भावना, प्रायोजित रह जाती है
जब मीठी बातों का बादल, सच्चाई से टकराये
टूटा मन तब बारिश बनकर, इन आंखों में भर जाये 
झूठ कपट का मारा सावन, रोता ही रह जाता है
दो पैसे लाने का चक्कर, चक्कर खूब लगाता है

जब बूढ़ी मां, आ जाओ तुम, कह कह के थक जाती है
दीवारों की पपड़ी झड़कर, उम्र उसे बतलाती है
जब वो बूढ़ा बाप डपटकर, चुप होने को कहता है
बेटे की ना फिक्र करो तुम, वो लंदन में रहता है
फिर अपने कमरे में जाकर, वो आंसू पी जाता है
दो पैसे लाने का चक्कर, चक्कर खूब लगाता है

ढ़ेरों रुपया होने पर भी, खर्च नही कर पाते हैं
छुट्टी के दिन घर में बैठे, बैठे ही रह जाते हैं
मां से क्या ही बात करें वो, भावुक इतना होती है
'अच्छा' सुनकर रोती है वो, 'गड़बड़' सुनकर रोती है
जाने इतना प्यार कहां से, इस बेटे पर आता है
दो पैसे लाने का चक्कर, चक्कर खूब लगाता है

कविराज तरुण
7007789629

Monday, 18 July 2022

ये दिल हसरतों के सिवा और क्या है

ये दिल हसरतों के सिवा और क्या है
लुटा और क्या है बचा और क्या है
नही और कोई दुआ काम आये
तूही बता दे दवा और क्या है 

Monday, 27 June 2022

युद्ध जब तांडव कराता

चित्र आधारित कविता - युद्ध जब तांडव रचाता 

युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता
रक्त के बीजाणु लेकर, नेत्र से क्रन्दन कराता

है अहम् के नाम पर जब, युद्ध तो फिर अंत क्या है
न्याय की सत्ता पुकारे, विश्व तेरा पंथ क्या है
त्रस्त हैं सबलोग इससे, युद्ध ये किसको सुहाता
युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता

हे! नये जग के पुरोधा, शक्ति अपनी थाम लो तुम
हो रही धरती अकिंचन, धैर्य से अब काम लो तुम
क्षेत्र के विस्तार में क्यों, तू रचे संहार गाथा
युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता

मर रहें लाखों सिपाही, मर रहें सब आमजन हैं
ये मनुजता के मरण का, काल शर्पित आगमन है
मन व्यथित हो सोचता है, काश! कोई रोक पाता
युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता

चोट की चादर लपेटे, लोग कितना रो रहे हैं
मृत्यु तेरा भय समेटे, सब तमस में खो रहे हैं
मान जा दमराज किलविश, क्यों प्रलय को यूँ बुलाता
युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता

तरुण कुमार सिंह
प्रबंधक
यूको बैंक, लखनऊ 
कर्मचारी संख्या - 57228

Friday, 3 June 2022

ग़ज़ल कहाँ से रास्ता होगा

मुझे मालूम है दिल का कहाँ से रास्ता होगा
ज़रा नज़रेँ मिला लो तुम वहीँ से दाखिला होगा

अगर तुम हो सके तो देख लो फिर आज सीने मे
तिरा ही नाम इसके हरतरफ सच में लिखा होगा

ये दुनिया प्यार की दुश्मन इसे दिल से नही मतलब
लगेगा जब सही सबकुछ तभी कुछ अटपटा होगा

कहानी हीर राँझा की सबक देती यही हमको
के सच्चा प्यार होगा तो हमेशा फलसफा होगा

किसी के लाख कहने पर रुका कब है 'तरुण' आशिक
ये दुनिया जबतलक होगी मुहब्बत का सिला होगा

Friday, 8 April 2022

होता है

22   22   22   22   22   2

दिल का लगना बेहद मुश्किल होता है
किस्मत से ही मौका हासिल होता है

जितनी भी कोशिश करके तुम पिघला लो
पत्थर दिल तो बस पत्थर दिल होता है

फिरते हैं आवारा सड़कों पर आशिक
ये किस्सा हर महफिल महफिल होता है

उससे कह पाता तो कबका कह देता
दिक्कत है हर आशिक बुझदिल होता है

जिसको अपने राज़ बताकर रखते हैं
अक्सर वो ही अपना कातिल होता है

कविराज तरुण

Sunday, 13 March 2022

गजल - संवर जाए मेरी

तुमको पा लें तो ये उम्र गुजर जाए मेरी
दिन संभल जाए ये रात संवर जाए मेरी

अपने होंठों पे तराजू लिए फिरता हूं
बात निकले तो तेरे दिल में उतर जाए मेरी

वो जो रौशन है जिसे लोग चांद कहते हैं
तेरे होते हुए क्यों उस पे नजर जाए मेरी

इसी फिराक में राहों पे तेरी बैठा हूं
तू जो देखे तो तबियत सुधर जाए मेरी

और ये इंस्टा एफबी के होने का तभी मतलब है
के जब प्रोफाइल तेरी फोटो से भर जाए मेरी

कविराज तरुण

Friday, 4 March 2022

आत्मचिंतन

घोर तिमिर जो छाया है तुम उसका तो संहार करो
आग नही बन सकते हो तो दीपक सा व्यवहार करो

अभी समय है कर्मयुद्ध का अभी समय है तपने का
अभी समय है पूर्ण करो तुम हर इक हिस्सा सपने का
मिले कष्ट जो तुम्हे राह में तुम उनको स्वीकार करो
आग नही बन सकते हो तो दीपक सा व्यवहार करो

किसे पता है कल क्या होगा वर्तमान है साथ अभी
तुझे कोशिशों से भरना है अपना खाली हाथ अभी
समय की रेखा पर चलकर तुम सारी बाधा पार करो
आग नही बन सकते हो तो दीपक सा व्यवहार करो

घोर अंधेरा तो आयेगा डरने की है बात नही
सूर्य उदय तो होगा फिर से रही हमेशा रात नही
अपने मन की किरणों से तुम थोड़ा सा उजियार करो
आग नही बन सकते हो तो दीपक सा व्यवहार करो

जीत सदा ही मिले सत्य को झूठ सदा ही हारा है
निर्भय जीवन जीने का बस मात्र यही इक चारा है
इसी सत्य को जीवन का तुम अब अपने आधार करो
आग नही बन सकते हो तो दीपक सा व्यवहार करो