Saturday, 14 January 2023

बन संवर के आए हैं

उसके शहर में कुछ दिन ठहर के आए हैं
गौर से देखो हम बन- संवर के आए हैं

अब तो दरिया से ये प्यास बुझेगी नही
हम समंदर के अंदर उतर के आए हैं

उन लोगों से पूछो उसे पाने का मतलब
जो बस उसके लिए आह भर के आए हैं

जिंदगी एक गश्त है और हम हैं मुसाफिर
बस यही सोचकर हम गश्त कर के आए हैं

इतना आसान नही है इश्क का ये सफर
हम आग के दरिया से गुजर के आए हैं

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