१
धीरे धीरे सबकुछ सहना सीख गया हूं
तन्हा तन्हा घर पे रहना सीख गया हूं
तुमने तो कुछ कहने लायक कब छोड़ा था
अपना गम मै खुद से कहना सीख गया हूं
२
सही नही है मगर गलत भी लगा नही वो
कहीं नही है मगर अभी तक जुदा नही वो
अभी तो खुशबू भरी हुई है बदन मे मेरे
गया है लेकिन लगे यही के गया नही वो
३
इन रस्तों को मंजिल कहके कितने दिन इतराओगे
मै अपने रस्ते जाऊंगा तुम अपने रस्ते जाओगे
आते जाते मिलना तो फिर नज़रे तिरछी कर लेना
उलझे अबकी नजरो मे तो फिर वापस ना आओगे
No comments:
Post a Comment