किस तरह खुद को सँवारें लॉकडाउन में
ये बड़ी मुश्किल तुम्हारे लॉकडाउन में
तुम न निकलो मै न निकलूँ वक़्त ही निकले
तो समय कैसे गुजारें लॉकडाउन में
हाल ये है नींद भी आती नही हमको
चाँद को कबतक निहारें लॉकडाउन में
शायरी लिख लिख मै हारा तुम नही आये
और किसको अब पुकारें लॉकडाउन में
जिसके सर पर छत नही वो क्या करे आखिर
जाए वो अब किस किनारे लॉकडाउन में
घर मे रोटी दाल की अब हो रही किल्लत
बंद हैं जब काम सारे लॉकडाउन में
कर सको तो कुछ करो तुम इन गरीबों का
इनकी हालत को विचारें लॉकडाउन में
जिंदगी रुक सी गई है ये 'तरुण' अब तो
फिर कई खरगोश हारे लॉकडाउन में
कविराज तरुण
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