मै तेरे मधुबन में आके , बाहर जाना भूल गया
ऐसा मुझको स्वाद चढ़ा है , पीना खाना भूल गया
राधा को प्रभु गिरिधर नागर , सीता को प्रभु राम मिले
मैंने देखा जबसे तुमको , मुझको चारों धाम मिले
प्रेम हृदय मे संचित करके , दर्द पुराना भूल गया
मै तेरे मधुबन में आके , बाहर जाना भूल गया
तू शीतल है तू निर्मल है , तू कोमल बनफूल सखे
मै भँवरा हूँ रज का प्यासा , दे दो अपनी धूल सखे
ऐसा मधुरस तुमने बाँटा , पंख चलाना भूल गया
मै तेरे मधुबन में आके , बाहर जाना भूल गया
वृक्ष लता के नख से सिर तक , आकर्षण का द्वार मिला
मै विस्मित हूँ पाकर तुमको , जीवन को अब प्यार मिला
अनुरागी हो प्रीत-कमल से , ठौर ठिकाना भूल गया
मै तेरे मधुबन में आके , बाहर जाना भूल गया
कविराज तरुण
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