Saturday 18 April 2020

ग़ज़ल - रात में क्या क्या रहा

ग़ज़ल - रात में क्या क्या रहा

इश्क़ गफलत में रहा कल , हुस्न भी टूटा रहा
आप अब ना पूछिये फिर , रात में क्या क्या रहा

वो सिसक कर चादरों के , दरमियां ही सो गई
मै ज़रा मजबूत था तो , दूर ही बैठा रहा

कुछ तेरे इल्ज़ाम ऐसे , जो नही वाजिब लगे
रो रहे थे तुम तो मै चुप-चाप ही सहता रहा

ये कहानी रोज की है , बात है कल की नही
एक आँसूँ बह गया तो , रातभर बहता रहा

और भी मसले कई थे , इस दरो-दीवार में
मै उसे सुनता रहा वो , जोर से कहता रहा

सिलसिले ये जब रुकेंगे , उम्र भी ढल जाएगी
आमना की चाह में मै , सामना करता रहा

कौन किसको दोष दे जब , बोल दोनों के बुरे
तल्ख़ बातें हो रही तो , तल्ख़ ही लहजा रहा

इश्क़ के हर लफ्ज़ से वो , आज कोसों दूर है
क्यों 'तरुण' तू खामखाँ ही , प्यार में उलझा रहा

कविराज तरुण

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