Thursday 23 April 2020

ग़ज़ल - हवा चल रही है

ग़ज़ल - हवा चल रही है

बड़ी तेज फिर से हवा चल रही है
इन्हें क्या पता है शमा जल रही है

कि भटकी हुई हैं मुहब्बत की गलियाँ
यही बात दिल मे मुझे खल रही है

न समझे जमाना तो इसमें नया क्या
ये अपने उसूलों पे ही चल रही है

वो लड़की जिसे ख़्वाब आते थे मेरे
किसी और के घर में वो पल रही है

तुम्हे आज फिर याद आई तरुण की
ये किस्मत मेरी हाथ फिर मल रही है

कविराज तरुण

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