Sunday 26 April 2020

न्याय दो

सोचा था नही लिखूँगा या लिख नही मै पाऊँगा
पर बात इतनी खास थी कि चुप नही रह पाऊँगा

दो संत आखिर मर गए तो कौन सा भूचाल है
कीमती जानें यहाँ कब ? हरतरफ कंकाल है
खुद को ज्ञानी मै समझकर दूर सारी झंझटों से
सोचता बस ये रहा जो हाल है वो हाल है

पर मेरे अंतस का कोना खोजता मुझको रहा
हर घड़ी आवाज देकर कोसता मुझको रहा
सुनकर उसे मै अनसुना करता रहा था आजतक
पर वो सपनों में भी आकर नोचता मुझको रहा

तो कलम का मौनव्रत अब तोड़ने का वक़्त है
जो बहा है लाठियों से वो न केवल रक्त है
तुम भूल जाने के लिए जो सुन रहे तो मत सुनो
जो चल रहा है देश मे वो न दिखे तो मत सुनो
तुम साम्यवादी हो बड़े घनघोर तो फिर मत सुनो
हो सनातन धर्म मे कमजोर तो फिर मत सुनो


सिर्फ हिन्दू मर गया है बात केवल ये नही है
संत तो भगवान का है रूप केवल ये सही है
चोर का तमगा लगाकर मारने का हक़ किसे है
जब पुलिस थी सामने तो और कोई शक किसे है
बेशर्म होके दानवों ने पीटकर हाय मार डाला
इस सनातन धर्म के विश्वास को ललकार डाला
जिसतरह से वो पुलिस का हाथ थामे चल रहे थे
भीड़ में वो इन दरिंदो की सहमकर डर रहे थे
शर्म आनी चाहिए जब हाथ छोड़ा उस पुलिस ने
कर्म अपना भूलकर जो साथ छोड़ा उस पुलिस ने
इन सभी लोगों को सच का आईना देना पड़ेगा
इस घिनोने कार्य का परिणाम तो सहना पड़ेगा
इतिहास कहता है जहाँ पर संत पर प्रहार हो
इसतरह बेबाक होकर घोर अत्याचार हो
तो वहाँ भगवान का एक जलजला आ जायेगा
चुप रहेंगे बुद्धजीवी तो फिर कहा क्या जायेगा
है अगर ये राजनीति तो सही पर न्याय दो
भूल जाने का नही फिर एक ये अध्याय दो

कविराज तरुण

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