फिर तुम्हारी याद में ये आसमाँ रोने को है
रात भी होने को है ये चाँद भी सोने को है
फिर न कहना इश्क़ के दो चार किस्से मै कहूँ
एक किस्से में बहुत कुछ आज भी खोने को है
बेकरारी और उल्फत दूर से सब ठीक पर
पास इसके जो गया वो ग़मज़दा होने को है
मै फरिश्ता हूँ नही इक आम ही इंसान हूँ
झेल कर ये मुश्किलें
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