Wednesday 12 October 2022

नही कोई

तेरे दर पे मेरा है बसर नही कोई
चल रहे हैं मगर है सफर नही कोई

लोग बेजान से मुर्दों की तरह जीते हैं
ये शहर है अगर तो शहर नही कोई

दाग़ हर रोज चहरे पे मेरे लगते हैं
ताब -ए -रुखसार पर है असर नही कोई

खार को गुल कहो ये भी क्या तमाशा है
हमको मालूम है ये शजर नही कोई

वो जिसे अपना कह करके मुस्कुराते हो
इल्म है , है कोई , है मगर नही कोई

Tuesday 11 October 2022

होता है

चोट का बस निशान होता है
दर्द तो बेजुबान होता है
कौन कितना करीब है तेरे
वक्त पे इम्तिहान होता है