Tuesday 29 December 2015

हुआ क्या है

उनको चाहा तो जाना खुदा क्या है ।
और वो कहते हैं तुझको हुआ क्या है ।।

ज़र्रे ज़र्रे मे खनक उनके पायल की
ज़ुल्फ़ जैसे झलक हो बादल की
फूल के खिलते यौवन सी उनकी हँसी
दिल का बहकना हो गया लाज़िमी

उनकी खुशियों ने सिखाया दुआ क्या है ।
और वो कहते हैं तुझको हुआ क्या है ।।

बंद पलकों मे काजल छिपा लेने वाले
अपने होंठो से कभी कुछ न कहने वाले
जान के अंजान बनते हो फिदरत तुम्हारी
हूँ ख़्यालो मे गुम है ये सीरत हमारी

अब्र सा ऐहसास है हमने छुआ क्या है ।
और वो कहते हैं तुझको हुआ क्या है ।।

कविराज तरुण

Saturday 12 December 2015

दहेज़

दुनिया भी गज़ब का बाज़ार है ।
यहाँ हर कोई बिकने को तैयार है ।
जो खरीद नही सकते स्कूटर भी जेब से ...
अपने लड़के के लिए दहेज़ में उन्होंने मांगी कार है ।
दुनिया भी गज़ब का बाज़ार है ।
अपनी इसी किस्मत को रोती हैं बेटियाँ ...
उनका दहेज़ जमा करने के लिए बाप ने छोड़ी है रोटियाँ ...
माँ ने भी सपनो से कबसे किया है किनारा ...
बेटी की शादी के लिए अपना गहना उतारा ...
और भाई भी धन जुटाने में कितना लाचार है ।
ये दुनिया भी गज़ब का बाज़ार है ।
ये प्रलोभन है या लालच या मन की तृष्णा ...
रुक्मणी को बिना दहेज़ नही मिलेगा कृष्णा ...
दूषित समाज मे आज कितना दूषित विचार है ।
दहेजलोभी है जो वो सच मे बीमार है ।
दुनिया भी गज़ब का बाज़ार है ।

कविराज तरुण

Friday 4 December 2015

दर्द की शायरी

उम्र दो चार दिन की मोहलत मुझे दे दे ,
अभी कुछ आँसुओं का क़र्ज़ मुझको चुकाना है ।

इस मुशगुली मे वक़्त कुछ कम ही रहा ,
अपनों को हँसाना है ग़ैरों को रुलाना है ।

नही तेरे सितम का कोई भी शानी नज़र आया ।
ये कतरा आँख मे भरकर समंदर को हराना है ।

मेरे हमदर्द कहते हैं ज़ख्म भर जायेगा सब मेरा ,
इश्क़ में बेवफाई का चलन सदियों पुराना है ।

कविराज तरुण