Monday 31 December 2012

कश्मोकश...


कश्मोकश :

न जाने क्या लिखा है हाथ की लकीरों में 
गिनती तो अपनी होती है बदनाम फकीरों में ||

न तो कर पाते हैं हाल - ए- दिल का बयां
न नज़र आता है उनके अन्दर का समां
कश्मोकश में जिल्ले इलाही है की सितम कौन करे 
यही सोचकर ये फैसला लिया है हम मौन धरे 
पर इन् बंद लफ्जों की कहानी इन् आँखों को सुनानी है 
अब भला कैसे कैद करे इन्हें जंजीरों में 
न जाने क्या लिखा है हाथ की लकीरों में 
गिनती तो अपनी होती है बदनाम फकीरों में ||

वो सुबह कह के गया शाम तेरे नाम सही 
बड़ा तल्लीन था मै हो जाए सब इंतज़ाम सही 
पर वो शाम फिर नहीं आई 
बड़ी बेशर्म है ये तन्हाई 
कम्ज़र्ख खुद भी रोती है हमको भी रुलाती है 
युही सिमट के रह जाएगी मेरी मोहब्बत इन् तस्वीरों में 
न जाने क्या लिखा है हाथ की लकीरों में 
गिनती तो अपनी होती है बदनाम फकीरों में ||

--- कविराज तरुण 

नव वर्ष की शुभकामनाएं


आप सभी को इन् पंक्तियों के माध्यम से नव वर्ष की शुभकामनाएं :

नव वर्ष नव प्रभात नव आशाओं का फिर प्रयास 
शक्ति सामर्थ्य समन्व्यय का रहे तेरे घर संपूर्ण वास 
मिल जाए सारे स्वप्न यथार्थ से 
मिल जाए उन्नति बिना स्वार्थ के 
हो जीवन विस्तृत जैसे सागर धरती और आकाश 
नव वर्ष नव प्रभात नव आशाओं का फिर प्रयास 

--- कविराज तरुण 


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बचपन


बचपन

भीगी  पलकों  से  निहारता  हूँ  बचपन
बिखरे  सपने  संवारता  हूँ  बचपन 
जो गोद भूल  चुकी  है  जवानी
वो  गोद  फिर  से  मांगता  हूँ  बचपन

वक़्त  की  दहलीज  नहीं  इज़ाज़त  देंगी
कई  कसमें  मुझे  आज  रोक  लेंगी
कई  वादे  भी  मुझे  न  जाने  देंगे
कई  रिश्ते  अभी  और  ताने  देंगे
कई  सवाल  खड़े  हो  जायेंगे
सुर्ख  कांटें  कुछ  और बड़े  हो  जायेंगे
कुछ  तो  इस  दुनिया  का  दिलासा  देंगे
कुछ  हमदर्द  मुझे  थोड़ी  सी  आशा  देंगे

पर  मै  सिर्फ  यही  बात  जानता  हूँ  बचपन
तुझे  हर  रोज  प्रभु  से  मांगता  हूँ  बचपन

खुद  को  कई  रोज  अकेला  पाया  है  मैंने
बीते  लम्हों  को  कई  रोज  सजाया  है  मैंने
आज  पहेलियाँ  बन  गयी  है  मेरी  दुनिया
न  रही  सहेलियां  अब  कोई  गुड़िया
न  रहा  छज्जा  न  रही  दीवारें
कौन  अब  अपना  रहा  किसको  पुकारें
बस  तन्हाई  ही  दिखती  है  जहाँ  देखते  हैं  हम
भरी  महफ़िल  में  छाया रहता  है  केवल  गम
मै  इन्  दीवारों  को  छालान्गता  हूँ  बचपन
कोशिशें  कर  के  रोज  हरता  हूँ  बचपन

कई  आवाजे  पुकारती  हैं  मुझको
कई  चेहरे  उभारती  हैं  मुझको
कई  बातें  याद  हैं  कहानी  की  तरह
कई  रातें  साफ़  हैं  पानी  की  तरह
कई  अंदाज़े  गलत  हो  गए  पहेली  के
कई  दरवाजे  बंद  हो  गए  हथेली  के
कई  बार  नहीं  सोचा  मैंने  जिसको
वही  सच  सामने  चला  आया  है  कहूँ  क्या  किसको

इन्  रेखाओं  को  रोज  बिगाड़ता  हूँ  बचपन
वक़्त  की  छलनी से  तुझे  आज  छालता हूँ  बचपन

किस्से  कहानी  में  गुजरे  थे  जो  सितारे
भीगी  चांदनी  में  माँ  ने  थे  जो  कम्बल  डाले
और  अपने  हाथों  से  माँ  ने  जो  थप्पी  दी  थी
और  जाते  वक़्त  प्यार की जो झप्पी  दी  थी
मेरे मुरझाये चेहरे पर माँ  ने  जो  नदियाँ  बहाई  थी
हर  घाव  पर  मेरे  माँ  कैसे  घबरायी  थी
उन्  आँचल  ने  कैसे  मेरे  आंसू  को  थामा  था
मेरे  सपनो  में  गुजरा  माँ  का  जमाना  था

मै  फिर  वही  जमाना  पुकारता  हूँ  बचपन
गुजरे  कल  को  आज  पालता  हूँ  बचपन

मै  नहीं  था  मेरी  परछाई  होगी
न  जाने  कब  मेरी  रिहाई  होगी
कारवाँ  दूर  गया  मै  पीछे  छुटा  हूँ
बंद  चेहरों  से  अक्सर  मै  लुटा  हूँ
पर  नहीं  शिकन  फिरभी  भरोसा  है
बीते  रिश्तों  ने  कुछ  इसतरह  से  रोका  है
कि न  इस  पार  न  उस  पार  मंजिल  है  मेरी
हाथ  थामू  मै  किसका  मुश्किल  है  बड़ी

छुटे  कारवां  को  रोज  ताकता  हूँ  बचपन
वक़्त  कि  चिल्बन  से  झांकता  हूँ  बचपन

कोई  तो  आकर  मुझको  सहारा  देगा
भंवर  से  पार  कोई  मुझको  किनारा  देगा
कोई  बाती  न  कोई  दीपक  मुझे  नज़र  आये
कोई  अब  कैसे  अपने  शहर  जाए
शाख  के  पत्ते  कि  तरह  टूटकर  बिखर  रहे  हैं
पर  हमें  लगता  है  हम  सुधर  रहे  हैं
तभी  तो  आंख  में  सपने  भरे  हुए  हैं
ये  मगर  सच  है  हम  कुछ  डरे  हुए  हैं

बस  इसी  डर  से  कहारता  हूँ  बचपन
पीछे  मुड़कर  पुकारता  हूँ  बचपन
भीगी  पलकों  से  निहारता  हूँ  बचपन
बिखरे  सपने  संवारता  हूँ  बचपन

नज़्म ………

"हरकत  के  दिन  थे  फुर्सत  की  रातें |
खिलौने  के  झगड़े  परियों  की  बातें |
उलझन  नहीं  थी  बंधन  नहीं  थे |
  उम्र  कि  रहगुजर  में  वे  दिन  ही  सही  थे ||"

                                    ---------- कविराज तरुण


Thursday 27 December 2012

In Search of Gravity



IN SEARCH OF GRAVITY

WHAT IS LOVE, WHAT IS REALITY...
I WONDER AT EVERY DOOR,
AT EVERY PATH OF ALL LOCALITY...
BUT BEING NURVOUS
IN SEARCH OF GRAVITY !!!

WHERE I CAN FIND YOUR LOVE...
WHERE I GET BEATING IN MY NERVE...
WHERE IS MY DESTINY...
TELL ME DIRACTLY...
HOW MUCH I WONDER
IN SEARCH OF GRAVITY !!!

CAN I FILL THIS OCEAN WITH MY EMOTION...
AND COVER UP THIS SKY WITH MY PASSION...
IS ANY SOLUTION OF THIS CRAVITY...
WHAT A DEPRESSION ARRISE
IN SEARCH OF GRAVITY

MEN ARE TRAVEL AROUND THE WORLD...
BUT SEEMS NO PEACE NO BLOSSOM NOT A SYMPATHY WORD...
SURROUNDINGS ARE HAZELLED WITH THE DARK...
EVEN WE CANT FIND A BIT OF SPARK...
WE ARE RESPONSIBLE FOR THIS TRADIZY...
I THINK THIS WORLD IS NOT ENOUGH
IN SEARCH OF GRAVITY !!!


-------------- Kaviraj Tarun

Wednesday 26 December 2012

Raat (one of my fav..........)




        रात ……

रात  की  तन्हाई  में  अक्सर  यह  आंख  नम हो  जाती  है !
हर  सुबह  से  फिर  ख़ुशी  पूछती  है  क्यूँ  यह  रात  आती  है !!

कि  जबतक  इश्क  होता  है , रात  मदहोश  रहती  है !
जब  दिल  टूट  जाता  है , रात  मायूस  रहती  है !
वर्ना  रात  तो  बस  रात  बनकर  खामोश  रहती  है !!

वो  चाँद  खुद  को  दूंड़ता है  रात  कि  गहराई  में !
यह  चाँद  भी  खो  गया  है  रात  कि  तन्हाई  में !
कहो  कि  कितने  आंसू को  छिपाया  आजतक  शहनाई  ने !
आधा  जीवन  रात  है  आधा  इस परछाई  में !!

रात  है  वीरान  सफ़र , आंख  से  टपके  अश्रु  सा !
जिसमे  जीवन  तो  नहीं  पर  प्रतीक  है  जीवन  का !
ये  आंसू  कुछ  और  नहीं  पारे  के  कण  ही  तो  हैं !
जो  रात  के  गुजरे  कुछ  क्षण  ही  तो  हैं !
यह  कैसा  इत्तेफाक  है ……….
जहाँ  आंसू हैं  वहां  रात  है !
फिर  सुबह  को  कौन  पैगाम  दे !
आंसू  को  रात  कहकर  हम  तो  एहतराम  दे !!

नज़्म ………
वो  बड़े  लकीरवाले  होंगे  जिन्हें  सुबह  नसीब  होगी !!
अपनी  तो  रात  में  कटी  ज़िन्दगी  रात  ही  सदा  करीब  होगी !!~!!
            ------------ कविराज तरुण

Thursday 20 December 2012

How Much I Love you ... a poem




HOW MUCH I LOVE U

You Cant See My Core Of Heart,
You Cant Measure My All Effort,
Even I Cant Tell You...
How Much I Love You...

Feel This If You Can
Its My Tears Not The Rain
Who Carry Glimpse Of Ur Face
Which Is Only My Life's Base
But Wonderings Cant Get The Proper Sense
You Cant Decide How Much My Feeling Being Dense
But Its Not Your Foul...
Its My Luck Of Cursy Haul...
I Cant Spell Out Beating Of Heart,
You Cant Sort Out Gathering Of Murk,
My Dreams Are Captured By Your Smile...
Your Footsteps Are Seeing On Every Mile...
You Blessed The Blossom...
You Wished The Wisdom...
You Are Only My God My Heaven...
But expression Are Not Enough,
My Situation Is Too Tough,
How I Present My Emotion In Front Of You...
You Can’t Believe How Much I Love You...
In This Situation Who Can Console Me
Who Can Solve All This Problem
N Make A Way Full Of Blossom
A Blossom In Which Me N U Can Wonder
Your Arms On My Shoulder In A Way Of Fondle
Then I Realize God Is One Who Fulfill My Desire
Lets Watch How Much Time My Heart Burn In Fire

......OH GOD! LETS WATCH!......
.........But I Cant Tell You.........
...How Much I Love You...

------------- Kaviraj Tarun

Wednesday 19 December 2012

My Last Date : A Poetry, close to my heart




MY LAST DATE
My last date is starting wid a candle of light;
My eyes being sparkled coz my wish is so bright;
i dont know its just feeling or strength of my sight;
but a hope is still here wid a bit of fright;
My last date is starting wid a candle of light;

What happened wid timing,
hazing of dark;
sky being cloudy,
wid gathering of spark;
n one thing in my hand,
its waiting of car;
JUST WAITING N WAITING N WAITING SO FAR........

My last date is starting wid a candle of light;
My last date is starting wid a candle of light;
Time is playing wid me so hard;
Is someone doing whatever wizard;
I get tired to fumbling of card;
Time is playing wid me so hard;

and soon i realize its being too late;
Tell me plz how till i wait;
Candle go melt n turning of light ;
darkness is telling its being so night;
Then i cut my nerves
to end off my life;
bleeding is started
n vacuum arise;
My eyes get closing
heart beating is tough;
n my soul my emotion
my feeling get rough;
I saw this bleeding
who break my life's jar;
JUST BLEEDING N BLEEDING N BLEEDING SO FAR........

N when i touch beginning
of my last sight;
i look at gate
n she is there right;
she runs towards me
but what can i do;
my eyes then closed
n nothing will do;
OH ! I LOST MY SOUL;;;;;;;;;;;
ITS A GREAT HAUL;;;;;;;;;;;;;
INnnnnnn MYyyyyyyy LASTttttttttttt DATEeeeeeeeeeeeeeee...................

--- Kaviraj Tarun

Sunday 16 December 2012

Friday 14 December 2012

शराब



शराब

अगर बोतलों में शराब न होती... तो गालिब की शोहरत आफताब  होती....
 होता साकी  होती हाला...  होती बच्चन की मधुशाला...
फिर  होती ग़ज़ल पैमाने पे... हाल--दिल का बयां मैखाने में...
फिर नशे की कोई बात नहीं होती... टूटे दिल की कभी कोई रात नहीं होती...
होता किताबो से ओझल देवदास का किस्सा... प्यार रहता कभी  इतिहास का हिस्सा
 होती महफिल  होती सरगम...   होती गज़ले  दोस्त  हमदम...
शुक्र है आज हाथो में मेरे जाम है... कौन कहता है मय ये बदनाम है...
कौन कहता है मय ये बदनाम है...

 --------- कविराज तरुण

Wednesday 12 December 2012

DIVERSITY OF THOUGHTS ...



शीर्षक : सोच

नमस्कार !

कल एक शांत व्यक्ति से मुलाकात हुई | यूँ तो मन की अनगिनत वेगो में स्थिरता का समावेश खो सा गया है पर फिर भी अपने अन्दर के शांत प्रकोष्ठों में धैर्य की वेदना का साकार रूप अपने प्रत्यक्ष पाकर कुछ अच्छा सा लगा | मैंने तत्पर ही उससे पूछ लिया - मित्र इतने शांत कैसे ? फिर क्या था उसके भीतर का अशांत मानव बरबस ही बिलख बिलख के रोने लगा और वो बोल बैठा - हमारी (निश्चय ही उसके प्रियजन से  सम्बंधित ) सोच इतनी विपरीत क्यूँ है , हमें एक दुसरे की बात समझने में इतना समय क्यों लगता है , हम साथ होकर भी इतने अलग क्यूँ हैं ............ऐसे ही कुछ सवाल मेरे समक्ष प्रस्तुत हो गए |
अब मेरी बारी थी अपने जीवन की बारीकियों से जो कुछ सीखा , जो कुछ समझा उसे कर्णपटल पर उतारने की | मै बोला - हमारा ब्रह्माण्ड विविधता की एक ऐसी भेंट है जहाँ दो विचारो का एक ही समानार्थी नहीं मिल सकता , हम अपने जीवन में अनेक विचारो , आदर्शो और परिस्थितियों से प्रेरित होते हैं जो हमारी सोच का आधार तय करते हैं इसलिए इसकी सुन्दरता इसकी अद्वितीय परिवेश से ही है | जितना ये आधार मजबूत होता है उतना ही आसान हमें दूसरो के साथ समन्वय स्थापित करने में आसानी होती है | जरुरी तो ये है की हम दूसरे की सोच को प्रश्नचिन्ह लगाकर नहीं अपितु मूलभूत आवश्यकताओ की कसौटी पर रखकर आकलन करे तभी हम एक दूसरे को समझ सकते हैं | हो सकता है इसके लिए हमें झुकना पड़े पर जब हम आगे चलकर इसके दूरगामी परिणाम पर दृष्टि डालेंगे तो हमें प्यार , संतोष, आदर और शांति की एक वृस्तित सीमा दिखाई देगी जो हमें आनंद की अनुभूति कराएगी |

अपनी इन दो पंक्तियों के साथ बात ख़त्म करता हूँ :
"नज़र से देखो मेरी तो नज़र आएगा ... दूर लगता जो तुम्हे पास चला आएगा |
नज़र का फेर है नज़रिए का फरक ... बात समझोगे तो नजरिया बदल जायेगा || "

--- कविराज तरुण

Tuesday 11 December 2012

SAMVEDNA.......... The feelings


संवेदना -----

संवेदना की वेदना में फिर प्यार खोजने चला
उसके चौखट से लौटती बहार खोजने चला 
मिला न दिल को शुकून तेरी इबादत में 
पर फिर भी तेरी यादों में अपनी हार खोजने चला 
संवेदना की वेदना में फिर प्यार खोजने चला ||

अंतःकरण में विराजित एक पराजित मै ही था 
स्वयं अपनी आत्मा से एक विभाजित मै ही था 
विभक्त टुकरो में छुपी ख़ुशी का उदगार खोजने चला 
तेरे हँसते चेहरे का मै लुप्त आगार खोजने चला 
संवेदना की वेदना में फिर प्यार खोजने चला ||

--- कविराज तरुण 

नारी के चार रूप ....