Wednesday 27 September 2017

चौपाई - उजियाला

जल थल अम्बर जीवन माना ।
भीतर से हिय तब पहचाना ।।

भाव खिले मन कुटिर छवाई ।
बोध तत्व की मिली बधाई ।।

रिपु दल बढ़कर आगे आये ।
दूर हुए सब भ्रम के साये ।।

सहज अलौकिक जीवनधारा ।
प्रभु कृपा सहित जब उजियाला ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Tuesday 26 September 2017

बेबस माँ

विषय - बेबस माँ

खाना परोसा है थाल सजाये हैं
उसने अपने दिल सब हाल छुपाये हैं
बेटा तो अब लौटकर आयेगा नही
उसकी तस्वीर को छप्पन भोग लगाये हैं ।

बेबस है बहुत लाचार भी है
आंसुओं से भीगी दीवार भी है
शाम आती है और आकर चली जाती है
कुछ रोज से वो बहुत बीमार भी है ।

टूटी ख़्वाहिश के बादल बरसने आये हैं
जिसे समझा अपना वो निकले पराये हैं
बह जायेगा घरोंदा कुछ आयेगा न हाथ
चूल्हे की आँच में जज़्बात जलाये हैं ।

बस की सीटी लगती बेकार भी है
झूठी दिलासा का रोज प्रहार भी है
जो गया वो वापस आयेगा नही
फिर भी दहलीज को उसका इंतज़ार भी है ।

बेसुध आँखों में लिपटे गमो के साये हैं
खाना परोसा है थाल सजाये हैं
उसने अपने दिल सब हाल छुपाये हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

चौपाई - ईमानदारी

चौपाई

१९.०९.२०१७
विषय - ईमानदारी

नेक राह पर चल रे पगले ।
भाग्य उदय हो जाये अगले ।।

तृष्णा लालच ये सब माया ।
छोड़ सको तो छोड़ो भाया ।।

कर्म साध्य तो धर्म सही है ।
नेकी बिन पुरुषार्थ नही है ।।

क्यों दूजे का हक है खाना ।
अपनी नीयत अपना दाना ।।

सर वो ऊँचा तान सकेगा ।
नेकी का जो पाठ पढ़ेगा ।।

मत भूलो सच ने जग जीता ।
प्रेमकुटिर मे जीवन बीता ।।

रामलला की हो संताने ।
कपटी रावण की क्यों माने ।।

जो मिला प्रभू से मान धरो ।
निश्छल होकर के काम करो ।।

चहुँओर खिले तब उजियाला ।
नेकभाव जब दीपक डाला ।।

सज्जन का है जग हितकारी ।
ईमान बिना क्या नर-नारी ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

चौपाई - पुकारूँ रे

चौपाई - पुकारूँ रे

मन का अंतर अंतर तेरा ।
छाया मुझपर माँ का घेरा ।।

हो मै आसक्त निहारूँ मै।
माँ तुझको आज पुकारूँ मै।।

माँ तुझको आज पुकारूँ मै ।।

हूँ दीन हीन माँ दुखियारा ।
तेरा बालक तेरा प्यारा ।।

छल दोष कपट सब काम किये ।
पापों के सन्मुख शाम किये ।।

कैसे अब भूल सुधारूँ मै ।
माँ तुझको आज पुकारूँ मै ।।

माँ तुझको आज पुकारूँ मै ।।

अब निश्छल है कोना कोना ।
माँ तुम हो क्या रोना धोना ।।

अवगुण मेरे नाश करोगे ।
सद्गुण से आकाश रोगे ।।

मै शरण तुहारी आया हूँ ।
माँ तुमको शीश नवाया हूँ ।।

निज अंचल आज पखारूँ रे ।
माँ तुझको आज पुकारूँ रे ।।

माँ तुझको आज पुकारूँ रे ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 41 फ़साना है

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लगे तुमको बहाना है ।
जो' समझो तो फ़साना है ।।

गुले गुलज़ार की चाहत ।
सजोये आबदाना है ।।

खलिश किसको नही मिलती ।
रिवाज़ो में ज़माना है ।।

चलो देखो कुहासे मे ।
अगर इसपार आना है ।।

मुहब्बत बुलबुला जल का ।
इसे तो फूट जाना है ।।

करो कोशिश कभी तुम भी ।
जवानी इक तराना है ।।

नही सुरताल से मतलब ।
अदा से गुनगुनाना है ।।

मिले दुश्वारियां सच है ।
मज़ा फिरभी पुराना है ।।

'तरुण' घायल बहुत ये दिल ।
मगर किस्सा बनाना है ।।

कविराज तरुण सक्षम

Tuesday 19 September 2017

ग़ज़ल 40 - वफ़ा कीजिये

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हाल-ए-दिल देखिये फिर वफ़ा कीजिये ।
यूँ न शर्मा के' आहें भरा कीजिये ।।

रोज ग़फ़लत मे' नजरें मिलाते रहे ।
अब निगाहों मे' आके रहा कीजिये ।।

रोग ये इसकदर जान पर आ गई ।
जब दवा ना मिले तो दुआ कीजिये ।।

आशिक़ी को उमर की जरूरत नही ।
हाथ मे हाथ लेकर चला कीजिये ।।

दिल्लगी की कदर कुछ करो भी 'तरुण' ।
उल्फ़ते जिंदगी को दफ़ा कीजिये ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 39 - कलम के सिपाही

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कलम के सिपाही यही मानते हैं ।
सियाही मिलाकर ही' सच छानते हैं ।।

नही बैर कोई ज़माने रिवाजी ।
सही क्या गलत क्या वही ठानते हैं ।।

सुराही से' कह दो रहे और प्यासी ।
ये' बारिश के' मोती जमीं सानते हैं ।।

रकम से खरीदो न कुछ होगा' हासिल ।
लिखावट ये' झूठी नही जानते हैं ।।

फरेबी हो' फितरत कहीं और जाओ ।
न-सल की अ-सल को ये' पहचानते हैं ।।

तरन्नुम की' आहट तरुण कम न होगी ।
न जाने कि क्या क्या कवी फानते हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Monday 18 September 2017

ग़ज़ल 38 - वो ही जाने

122 122 122 122

छुपा क्या दिखा क्या समंदर ही जाने ।
लहर ने किया क्या ये' पत्थर ही जाने ।।

ये' बारिश की' बूँदे जवां हो गये हम ।
बिना बूँद क्या हाल बंजर ही जाने ।।

नही और कोई खलिश अब बची है ।
अदा बेवफाई की' रहबर ही जाने ।।

अमानत मिली या जमानत मिली है ।
निगाहों के' आंसू ये' अंदर ही जाने ।।

लहू को खबर खुद की' मिलती नही है ।
किया क़त्ल कैसे ये' खंजर ही जाने ।।

चलो बात छेड़े तरुण आज ऐसी ।
न उसको पता हो न अकबर ही जाने ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Saturday 16 September 2017

ग़ज़ल 37 - शैतान बैठे हैं

एक प्रयास

1222 1222 1222 1222

कभी इज्जत कभी दौलत कभी ईमान बेचे हैं ।
गुफा से दूर ही रहना बड़े शैतान बैठे हैं ।।

लगाते हुस्न का डेरा खुदा की आड़ मे बेशक ।
दबे कुचले समझ लेते यहीं भगवान रहते हैं ।।

जरूरत क्या है' जाने की भला कुछ भी नही होता ।
हवस अपनी दिखाते और इसको ध्यान कहते हैं ।।

बड़ी 'आशा' करी 'निर्मल' 'रहीमी' और 'राधे माँ' ।
तुम्हारी बात मे अक्सर गुलाबी ज्ञान बहते हैं ।।

'तरुण' सब देख के जाना बुराई छिप नही सकती ।
खलिश इतनी मुझे शह क्यों इन्हें इंसान देते हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Friday 15 September 2017

चौपाई - कलयुग

चौपाई पर एक प्रयास

काला कौवा बड़ा सयाना ।
चुग डाला है सारा दाना ।।
कोयल देखे और लजाये ।
कलयुग घर के भीतर आये ।।

पाई जोड़ी कौड़ी कौड़ी ।
तब जीवन की गाड़ी दौड़ी ।।
भ्रष्ट मजे से लूट रहा है ।
सीधे का बस रक्त बहा है ।।

बोलो हल्ला कौन मचाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।।
खाली गगरी खाली थाली ।
बिन लक्ष्मी अब कहाँ दिवाली ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 36 - मेरे यार तू

212 212 212 212
ग़ज़ल - मेरे यार तू

हो रहा है दिवाना मेरे यार तू ।
दिल्लगी का फ़साना मेरे यार तू ।।

गैर-ए-उल्फ़त मे' शिरकत करूँ क्यों भला ।
हाल-ए-दिल का ठिकाना मेरे यार तू ।।

फूल भी बाग़ भी चाँद भी रात भी ।
साथ में ये ज़माना मेरे यार तू ।।

अब हदों में बसर और मुमकिन नही ।
मंजिलों का तराना मेरे यार तू ।।

चल सितारों के' उसपार चलते तरुण ।
जिंदगी का बहाना मेरे यार तू ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Thursday 14 September 2017

ग़ज़ल 35 काश तुम होते

ग़ज़ल -काश तुम होते

ख़्वाबों से हक़ीक़त काश तुम होते ।
हाथों की लिखावट काश तुम होते ।।

जुल्फों की पनाहों मे जी' लेते हम ।
कदमो की भी' आहट काश तुम होते ।।

परछाई समेटे रात क्यों आती ।
बाँहों की ये' आदत काश तुम होते ।।

घर दीवार सबकुछ चाह छोड़ी है ।
इस दिल की बगावत काश तुम होते ।।

नफ़रत की इनायत से 'तरुण' बेबस ।
फिर मेरी मुहब्बत काश तुम होते ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

गाना- तू मेरे मन की बीट

गाना- तू मेरे मन की बीट

शाम सबेरे (eco)
दिल में मेरे (eco)
करता तुझे रिपीट...
(music)
कांगो जैसे (eco)
बजती है तू (eco)
मेरे मन की बीट...

शाम सबेरे दिल में मेरे
करता तुझे रिपीट
कांगो जैसे बजती है
तू मेरे मन की बीट
मै करता तुझे रिपीट
तू मेरे मन की बीट

ये बादल हल्के हल्के , मै चल दूँ तू चल दे ।
माय हर्ट इज इन यो वेटिंग , आजा न कुछ कर दे ।

वेदर कूलिंग कूलिंग डिअर
बढ़ने लगी है हीट
(बढ़ने लगी है हीट)
कैंडी जैसी आँखों वाली
तेरी बातें कितनी स्वीट
(बातें कितनी स्वीट)

तू मेरे मन की बीट(2)
(music)

शाम सबेरे दिल में मेरे
करता तुझे रिपीट
कांगो जैसे बजती है
तू मेरे मन की बीट
मै करता तुझे रिपीट
तू मेरे मन की बीट

सुन ले सितारा वारा तोड़ लाऊँगा ।
आसमा बेचारा सारा ओढ़ आऊंगा ।
कदमो मे बिछा विछा के जन्नत ये ।
रोमियो से आगे अब जाऊंगा मै ।

तेरे लिए ही दिनरात जगूँ ।
फोटो से तेरी मै बात करूँ ।
अरमानो के हीटर से
प्यार का बढ़ा है मीटर ये

फॉलो fb पर करता हूँ
ट्विटर पर मै ट्वीट
पहचाने हैं मुझको सब
जब जाऊँ तेरी स्ट्रीट
(जाऊँ तेरी स्ट्रीट)

तू मेरे मन की बीट(2)
(music)

शाम सबेरे दिल में मेरे
करता तुझे रिपीट
कांगो जैसे बजती है
तू मेरे मन की बीट
मै करता तुझे रिपीट
तू मेरे मन की बीट

रस्ता कबसे देख रहा
करना है तुझको ग्रीट
(करना है तुझको ग्रीट)

कांगो जैसी बजती है
तू मेरे मन की बीट
शाम सबेरे दिल में मेरे
करता तुझे रिपीट
कांगो जैसे बजती है
तू मेरे मन की बीट
मै करता तुझे रिपीट
तू मेरे मन की बीट

कविराज तरुण
9451348935

Tuesday 12 September 2017

ग़ज़ल 34 - हो गया

ग़ज़ल - हो गया

212 212 212 212

इश्क में मै तिरे क्या से' क्या हो गया ।
जब से' देखा तुझे मै फ़िदा हो गया ।।

शाम भी रात भी नाम भी बात भी ।
कुछ न मेरा रहा सब तिरा हो गया ।।

मै पलटता रहूँ सर्द मे करवटें ।
हाल मेरा सनम वक़्त सा हो गया ।।

रोशिनी दूर जाओ कि आना नही ।
नूर मुझपर किसी चाँद का हो गया ।।

कागज़ी है नही हर्फ़ की रागिनी ।
वो तरुण हाल-ए-दिल की सदा हो गया ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

*कहानी - ४ / सुगंध*

*कहानी - ४ / सुगंध*

आज फिर भोर हुई , चाय की चुस्की के साथ अखबार में अपना भविष्य तलाशने लगा । तभी हवा की हल्की बयार आई । एक महीन सी मीठी सुगंध ,अलग सी कशिश लिए और कुछ जानी पहचानी सी । बरबस ही मन व्याकुल हो उठा , कौतुहल हुआ और मेरी लालसा मुझे बगीची तक ले आई । मेरे घर की छोटी सी बगीची के एकदम कोने में रखे गमले में आज एक फूल खिला था ..गुलाब का फूल । अचरज था ये पेड़ तो मैंने नहीं लगाया । तिरस्कृत गमले की सूखी मिट्टी मे भी जीवन की संभावना साकार रूप ले ले तो उस परमशक्ति की महिमा पर कोरा यकीन होना स्वाभाविक है । अचरज इसलिए भी था क्योंकि फूल गुलाब का था , गुलाब जिसे देखकर उसका चेहरा याद आता है । उसे भी तो गुलाब पसंद थे । वो कहती थी अगर भगवान मुझे कहें कि इंसान के बदले तुम्हे क्या बनाऊँ तो मै गुलाब बनती । उसकी तरह सुन्दर , अपनी पंखुड़ियों के आँचल में लिपटकर , ओस की बूँद से नहाकर ,अपनी महक से भौरों को दीवाना बनाती । पगली थी वो । कहती कि तुम ओस की बूँद बन जाना । ओस की बूँद ! वो तो हल्की सी गर्मी में जल जाती है , हवा चली तो उड़ जाती है । मुझे अलग नहीं होना तुमसे , मै तो भौरा बनूँगा और हमेशा तुम्हारे करीब आकर तुम्हारी सुगंध से अपनी अंतरात्मा को तृप्त करूँगा ।
आँखे बंद थी और मै अपनी उस दुनिया के मध्य जहाँ गुलाब की सुगंध में संपूर्ण वातावरण था और उस गुलाब से भी सुन्दर मेरी प्रेयसी । सहसा आँख खुली , किसी ने आवाज दी शायद । देखा तो मै बिस्तर पर लेटा था । उठकर भागा पर बगीची में न तो गुलाब का फूल मिला न ही उसकी *सुगंध* ।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Monday 11 September 2017

ग़ज़ल 33 - सनम

बहर - 212 212 212 212
ग़ज़ल - सनम

212 212 212 212

चाँद के पार मंजिल वफ़ा की सनम ।
क्यों मुखालत करे है सजा की सनम ।।

मशवरे काम आते नही प्यार में ।
खुद से' कर तू मिलावट अदा की सनम ।।

शायरी दिलकशी या ग़ज़ल की तरह ।
हुस्न को भी जरूरत हया की सनम ।।

तिल हो' रुख़सार पे आँख हो जाम सी ।
और इक शाम हो बस दुआ की सनम ।।

साँस मिलती अगर यार दीदार से ।
हो जरूरत किसे अब हवा की सनम ।।

कह रहा ये तरुण बात भी मान लो ।
जख्मी' दिल को तमन्ना दवा की सनम ।।

कविराज तरुण सक्षम

Friday 8 September 2017

ग़ज़ल 32 - मुहब्बत है

ग़ज़ल 32 - मुहब्बत है

221 1222 221 1222

कीमत न लगा दिल की , अरमान-ए-मुहब्बत है ।
बाहों में' अजब राहत , अफसान-ए-मुहब्बत है ।।

मंदिर के' लिये फेरे , मस्जिद का' नमाजी भी ।
इतना ही' खुदा जाना , रमजान-ए-मुहब्बत है ।।

तफ़्तीश-ए-जवानी में , जिस्मो की' नुमाइश है ।
मन साफ़ नज़र वाज़िब , उनवान-ए-मुहब्बत है ।।

कुदरत की' फरस्ती मे , रौनक यही' है साहिब ।
खुशियों की' खियाबां मे , महमान-ए-मुहब्बत है ।।

ज़ाहिर है' हक़ीक़त है , बेज़ान मुसीबत है ।
जिसका न तरुण कोई , तूफ़ान-ए-मुहब्बत है ।।

उनवान - प्रस्तावना
खियाबां - फूलों की बगिया

कविराज तरुण 'सक्षम'

Monday 4 September 2017

खो गया बचपन

बस्तों किताबों के बोझ तले
रो गया बचपन
इस टू बीएचके फ्लैट में कहीं
खो गया बचपन

सिर पर हाथ माँ फिराये भी कैसे
टच स्क्रीन वाला फोन
हो गया बचपन
जिसपर एक अलग पैटर्न लॉक लगा है
क्या क्या है अंदर अब किसको पता है
चाँद तारों से जगमग आसमां के परे
टू जी थ्री जी की दुनिया मे
सो गया बचपन

हम डाँट खाया करते थे बाहर जाने पर
अब डाँटा करते हैं प्लेस्टेशन लगाने पर
खो-खो कबड्डी गेन्दताड़ी कहाँ अब
सात इंच के गोरिल्ला ग्लास के पीछे
लूडो शतरंज जाने क्या क्या
बो गया बचपन

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 31 बचपन खो गया

ग़ज़ल - बचपन खो गया
बहर - २२१ १२२२ २१२ १२२२

है कागज़ की कश्ती , बारिश का' भी पानी है ।
बचपन तिरी' यादों की , बस इतनी' निशानी है ।।

ये ढ़ेर जो' मिट्टी का , अब हमने' बना डाला ।
गुमनाम हुई इसमें , परियों की' कहानी है ।।

वो पेड़ तिरी डाली , झूमे थे' बहारों मे ।
काले से' अँधेरे मे , सिसकी ये' जवानी है ।।

गुड्डे गुड़िया से अब, हम खेल नही पाते ।
किस मोड़ रुकी आके, सपनो की' रवानी है ।।

हर रात यही सोचे , सूरज कल निकलेगा ।
ओझल इन आँखों से , वो सुबहे' सुहानी है ।।

झगड़े अब बचपन के , वो हमसे' नही होते ।
इकबार ख़फ़ा हो तो , सुननी न मनानी है ।।

पहले सब अपना था , दीवार नही कोई ।
पैसों की' लिखावट में , तक़दीर गँवानी है ।।

उलझन सुलझाने को , थे यार तरुण मेरे ।
हर चोट पे' रो पड़ते , वो बात पुरानी है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Saturday 2 September 2017

ग़ज़ल 30- आजा रहबर मिरे

*आजा रहबर मेरे* कविराज तरुण 
212 212 212 212 212 212 212 212

आजा' रहबर मिरे , ख़्वाब के दरमियाँ ,
ये तो' अपनी मुहब्बत की' शुरुआत है ।
फेरी' तुमने जो' हैं , सरसरी सी निगह ,
दिल से' होने लगी दिल की' कुछ बात है ।

रा-स-तों से मिटे , खुद-ब-खुद फ़ासले ,
हम कदम को मिटाकर युं चलने लगे ।
शाम इक जाम सी हो गई है हसीं ,
मुस्कुराने लगे दिल के' हालात हैं ।।

पास में बैठकर, लफ्ज़ दो बोल दो ,
अपनी' आँखों से' पयबंद मय घोल दो ।
हो तुझी में फ़ना , कुछ न तेरे बिना ,
इन लबो पर लबो की ही' नगमात है ।।

दिल मुलाजिम तिरा, हो गया आजकल ,
इक इशारे पे' गुल रोज खिलने लगे ।
रूह की अस्ल में , तुझको' शामिल किया ,
बस मे' अपने नही आज जज़्बात हैं ।।

कह रहा ये तरुण , हमसफ़र तुम मिरे ,
देख लेंगे ज़माना फिकर क्यों करे ।
मै हूँ' तुम हो जहाँ , बस वही आसमां ,
साथ है ये फलक साथ दिनरात है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'