Saturday 30 March 2013

बचपन और जवानी

बचपन और जवानी 

सावन के झूले देखे , बारिश का पानी देखा |
पतझड़ के पत्ते देखे , किस्से कहानी देखा ||
हवा की नरमी देखी , ऋतुएं सुहानी देखा |
बचपन के सवालो में निरउत्तर जवानी देखा ||
गीली मिटटी के बर्तन पर सूरज की किरणे देखी...
उलझे धागों में लिपटी पत्थर की गिट्टी देखी ...
उड़ती पतंगों संग हिलती मांझा और सद्दी देखी ...
बिस्तर के नीचे से ताश की गड्डी देखी ...
ऊँगली के इशारों पर नाचता कंचा देखा ...
मोहल्ले के नुक्कड़ पर चाकू तमंचा देखा ...
लट्टू घुमाते बूढ़े और बच्चे देखे ...
नमक से खाते आम कई कच्चे देखे ...
लैला दीवानी का मजनू दीवाना देखा |
प्यार की कसमे देखी , राजा हिन्दुस्तानी देखा ||
सावन के झूले देखे , बारिश का पानी देखा |
पतझड़ के पत्ते देखे , किस्से कहानी देखा ||

पर न देखा हमने शुकून फिर दोबारा ...
माँ के आँचल में छिपता गमो का पिटारा ...
न चकोर का चांदनी से मेल मिलाप ...
न कोयल का भोर में सुनाई देता आलाप ...
मुंह मोड़ते रिश्तो की कई सारी बातें देखी |
आंसुओ में सिमटी कई तनहा रातें देखी ||
बड़े क्या हुए उलझनों की सौगातें देखी |
रेत पर गायब होती कई मुलाकातें देखी ||
न स्वच्छ ह्रदय ही देखे , न रगों में रवानी देखा |
न मदद करते हाथो की कोई निशानी देखा ||
फिर न सावन के झूले देखे , न बारिश का पानी देखा |
न पतझड़ के पत्ते देखे , न किस्से कहानी देखा ||


----- कविराज तरुण

Tuesday 26 March 2013

रंग का त्यौहार होली

रंग, जो चमन के मुस्कुराते फूल में होते हैं |
रंग, जो हवा के हर मूल में होते हैं |
रंग, जो जड़ो में चेतन में धूल में होते हैं |
रंग, जो चुभते किसी शूल में होते हैं |
उन रंगों की कहानी है भोली ...
आखिर रंग का त्यौहार है होली ||


रंग, जो कहे वतन के खून की कहानी |
रंग, जो हमें बताये बात कोई पुरानी |
रंग, जो अंतर कहे कि खून या पानी |
रंग, जो सादगी की पहचान हैं निशानी |
उन रंगों की कहानी है भोली ...
आखिर रंग का त्यौहार है होली ||


रंग, जो उजड़ते चमन को महका दे |
रंग, जो खिलें और खिल के सबको बहका दे |
रंग, जो जल के भीतर भी ज्वाल देहका दे |
रंग, जो अंध में भी ज्योति दिखला दे |
उन रंगों की कहानी है भोली ...
आखिर रंग का त्यौहार है होली ||


रंग, जो लाये सुन्दरता में नया निखार |
रंग, जो याद दिलाये विजय का सार |
रंग, जो कह दे कि ये है अमिट बहार |
रंग, जो दूर कर दे मुख से विकार |
उन रंगों की कहानी है भोली ...
आखिर रंग का त्यौहार है होली ||


रंग, जो संतोष की पहचान है निशानी |
रंग, जो हर पल बताये हम क्या है नहीं शानी |
रंग, जिसकी बात हमने सहस्र है मानी |
रंग, जो चाहे तो कर दे ऋतु बड़ी सुहानी |
उन रंगों की कहानी है भोली ...
आखिर रंग का त्यौहार है होली ||


---- कविराज तरुण

Tuesday 19 March 2013

धर्म की राजनीति

*** दोस्तों इस कविता का उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओ को आहत करना कदापि नहीं है |
धार्मिक अवसादो के पुलिंदे नज़र आते हैं ...
जब कभी हम किसी नेता के घर जाते हैं |
न विकास की बातें न देश की चिंता ...
धर्म की राजनीति में आखिर ये उतर आते हैं ||

एक आईना तराशा, कि नेक सूरत दिखेगी  ...
हर जगह प्रेम की बस मूरत दिखेगी  ...
गले मिलते हिन्दू ओ मुसलमान दिखेंगे ...
ज़न्नत के फूल इस सरजमीं पर खिलेंगे ...
रंग होली के उर्दू जुबानी मिलेंगे ...
ईद की सेवई से हिंदी के थाल सजेंगे ...
पर इन हुक्म-मरानो को ये मंजूर कहाँ है ?
गन्दी राजनीति में प्रेम का दस्तूर कहाँ है ?
ये तो अपनी बात से ही अक्सर मुकर जाते हैं...
हमको तोड़ते हैं मरोड़ते हैं और साबुत निगल जाते हैं |

धार्मिक अवसादो के पुलिंदे नज़र आते हैं ...
जब कभी हम किसी नेता के घर जाते हैं |
न विकास की बातें न देश की चिंता ...
धर्म की राजनीति में आखिर ये उतर आते हैं ||

  --- कविराज तरुण

Monday 11 March 2013

Be Safe...

Guys ! don't break road safety rule....Please Be Safe :

याद रखे घर में आपका परिवार आपकी सलामती के लिए हर घड़ी प्रार्थना करता है ...










तेज़ गति आपकी कुशलता का नहीं अपितु आपकी अधीरता का प्रमाण है ...

Wednesday 6 March 2013

कुमुद वाटिका



शीर्षक - कुमुद वाटिका

मेरी कुमुद वाटिका से, अभी न तुम प्रस्थान करो...
आओ बैठो तनिक प्रिये , थोड़ा सा विश्राम करो ...

ये बाग़ बगीचे और गुलाब , तेरे दर्शन के अभिलाषी हैं
बारिश की ये शीतल बूंदे , तेरे स्पर्श मात्र की प्यासी हैं 
मधुवेग पवन के भीतर का, कहता है मेरे कानो में
रोको जाने मत दो तुमको, दो प्रेम पुष्प अरमानो में

इस सांझ की अनुपम बेला का , प्रिये ज़रा सम्मान करो ...
मेरी कुमुद वाटिका से, अभी न तुम प्रस्थान करो...

समय को थोड़ा पीछे लाकर, तुमको आवाज़ लगाता हूँ 
वो घंटे बैठे रहना संग संग , सब स्मृति में दोहराता हूँ 
वो प्यार की बातें सुन्दर सपने , जब तुम थे बस मेरे अपने 
माला तेरे नाम की लेकर , लगता था दिनभर मै जपने

फिरसे आज उन्ही सपनो को , आओ पुनः निर्माण करो ...
मेरी कुमुद वाटिका से, अभी न तुम प्रस्थान करो...

जो हुआ दु: स्वप्न समझकर भूलो, नयी सुबह कल आनी है 
जीवन की इस आपा धापी में , जो बीत गया बेमानी है 
अम्बर की सौगंध रूपसी , भविष्य हमारा उज्जवल है 
तुम भी तो संकल्प करो , ये विश्वास प्रेम का संबल है

बस इसी प्रेम के निकट समर्पित, अपने चारों धाम करो ...
मेरी कुमुद वाटिका से, अभी न तुम प्रस्थान करो...
आओ बैठो तनिक प्रिये , थोड़ा सा विश्राम करो ...

कविराज तरुण 'सक्षम'

Friday 1 March 2013

WAKE-UP CALL



WAKE-UP CALL

“NO FAKE STATEMENT,
NO BLIND LOVE;
I JUST WANNA BE,
VIRGIN COVE;; "

THERE IS KNOB BETWEEN LOVE N FALL!
I WANNA RISE IN CASE AT ALL!
SO GIVE ME FREEDOM JUST LIKE DOVE!
“NO FAKE STATEMENT,
NO BLIND LOVE;
I JUST WANNA BE,
VIRGIN COVE;; "

HEY SHIT ARE SCATTERED IN UR MIND!
UR EYES R ROVING EVERY TIME!
WHY R U HERE ON THIS EARTH!
PROVISION SHUD BE THERE ON UR BIRTH!
SHOOT THEM ALL WID THE SLUG!
COZ I THINK YOU R A BLOODY SCUG!
SO...
“NO FAKE STATEMENT,
NO BLIND LOVE;
I JUST WANNA BE,
VIRGIN COVE;; "

RESORT RESOURCE RESOUND HALL!
I M PUTTING FIRST BRICK FOR WALL!
YOU CAN SHARE RATHER MY WORK!
BUT I M SINGLE TILL LAST JERK!
AND TRY MY BEST FOR YOUR WAKE-UP!
“NO FAKE STATEMENT,
NO BLIND LOVE;
I JUST WANNA BE,
VIRGIN COVE;; "