Wednesday 2 January 2013

एक शपथ : समाज की सोच बदलो

"हमने लोगो को इस दुष्कर्म के बारे में बात करते बहुत सुना , सड़क से संसद तक हंगामा ही हंगामा पर क्या हम अपनी सोच बदलने के लिए तैयार हैं|

एक सख्त क़ानून तो जरूर बनना चाहिए पर उसे भी जरुरी है समाज में फैली उस सोच को बदलने की जो नारी को केवल भोग की वस्तु समझता है |

आओ हम सब इस नए साल पर शपथ ले कि हम इस सोच को बदलेंगे..."


कुछ पंक्तियाँ इसी परिपेक्ष्य में समर्पित कर रहा हूँ :


एक शपथ : समाज की सोच बदलो 

 दिल में एक घाव देकर चला गया बारह 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 
 ये सफेदपोश हमें युंही नचाएंगे 
   लाख धरने करे हम पर ये न शर्मायेंगे 
 और युही मिल न सकेगा सच को किनारा 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 

 वो बिलख बिलख कर अपनी दास्ताँ बताती रही 
   संसद से सड़क तक उसकी आवाज़ आती रही 
 पर आया न कोई कानून इस वैशी बीमारी का
   सरकार करती है नाटक अपनी लाचारी का 
 वो कहती है आसमान से बनकर सितारा 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 

 जब उठी है आवाज़ तो रुके न इसबार देखो 
   कितनी बहने कर रही हैं हम सभी से पुकार देखो 
 एक सम्मान एक न्याय की ये भी अभिलाषी हैं 
   न पुरुष है राजा और न नारी कोई दासी है 
 कम से कम व्यापक तो करो अपनी सोच का पिटारा 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 

 जब हर घर में नारी का सम्मान होगा 
   तब इन् अपराधो से निपटना आसान होगा 
 और ऐसी हरकत का मृत्युदंड जब इन्साफ होगा 
   तभी माँ के मस्तक से ये दाग साफ़ होगा 
 नए साल पर "तरुण" ये शपथ लो दोबारा 
   कबतक लेते रहेंगे हम झूठे वादों से सहारा 

 --------- कविराज तरुण 

3 comments:

  1. seriously we need to change our thinking ... to see the change be the change

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  2. ya ryt bro....... tabhi to kah rha hu naye saal ki shuruaat is shapath ke sath karo ki na to kisi nari ka apmaan karenge aur na hi hone denge...

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  3. Very true indeed. Thought provoking take, head on.

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