Friday 22 January 2016

प्रेमगीत

प्रेमगीत

मै जोगी तेरा मै रोगी तेरा
मै तेरा मनमीत सदा ।
लिखता जाऊँ चित्त पटल पर
तेरे सुन्दर गीत सदा ।
मै हूँ दीवाना मै परवाना
मन में तेरी प्रीत सदा ।
मन दर्पण के हर बिम्ब मात्र में
तेरे चेहरे की आकृति सदा ।

स्वप्न सुधा के साथ तेरे
वो बीते क्षण आज मेरे
तुमको पास बुलाते हैं ।
एक मीठी आस जगाते हैं ।
वर्षा से हर्षित मयूर खग
अरुणोदय से उज्जवल ये जग
तेरे चेहरे की याद दिलाते हैं ।
मुझे आकर्षित कर जाते हैं ।
पुष्प पर अल्हड़ भँवर गान
तितली का सतरंगी विमान
तेरी चंचल छवि दिखाते हैं ।
हमे आनन्दित कर जाते हैं ।
शीतल थाप पवन की लेकर
महकती भाप उपवन की लेकर
हम तेरी बातो में खो जाते हैं ।
और बस मंद मंद मुस्काते हैं ।
ओस में भीगा विपुल पात
उजियारे की ये दिव्य रात
सिरहन सी कर जाते हैं ।
हम उस चंदा से नैन मिलाते हैं ।

मै प्रेमी सावन का प्यासा
तू कजरी का है संगीत सदा ।
इन स्वासों को ठंडक देने वाली
तू पर्वत की मोहक शीत सदा ।
हारा हूँ दुनियां की रश्मो से
पर प्यार तेरा है मेरी जीत सदा ।
मै जोगी तेरा मै रोगी तेरा
मै तेरा मनमीत सदा ।

कविराज तरुण

Tuesday 19 January 2016

मोहब्बत की नही जाती

मोहब्बत की नही जाती

खिफायत के जमाने में मोहब्बत की नहीं जाती ।
वाट्सएप के संदेशो में ख़त सी खुशबू नही आती ।
आशिक़ो का ज़माना नेटवर्क के करम पर है।
सिग्नल जब नही आते तो नींदे भी नही आती ।
चल जाता है सारा काम अब GN और SD से ।
मिलने की नही फुरसत pic भेजी है hd से ।
काम पहली मुलाकात में गुलाबो से नही चलता ।
एप्पल के बिना अब कोई लड़की मिलने नही आती ।
मै तंग हूँ इन डेटिंग ऑनलाइन वालो से ।
ये ऐसा दौर आया है बगावत की नही जाती ।
खिफायत के जमाने में मोहब्बत की नहीं जाती ।
वाट्सएप के संदेशो में ख़त सी खुशबू नही आती ।

कविराज तरुण

Monday 18 January 2016

शर्मिंदा हूँ

शर्मिंदा हूँ इस बात से
तू आज भी मेरा प्यार है ।
तेरी एक ख़ुशी के लिए
कुर्बान गम हज़ार हैं ।
शर्मिंदा हूँ इस बात से
तुझसे ही मेरी बहार है ।
तेरी एक झलक के लिए
नींद आँखों को नागवार हैं ।
शर्मिंदा हूँ इस बात से
तू इस दिल का ज़मीदार है ।
जीने के लिए मरने के लिए
साँसों को तेरा इन्तेज़ार है ।

कविराज तरुण

खंडित इंसान

खंडित इंसान

मुझको मेरा पर्याय दो
ज्ञान नही तो राय दो
खंडित वर्गित बंटा हूँ कबसे
इतिहास का वो अध्याय दो

पहले धर्म की धार चली
जाति चली नर नारि चली
उम्र का फिर व्यवधान मिला
काले गोरे का ज्ञान मिला
जो धनी है उसको मान मिला
खाली को अपमान मिला
जो बंट न सका हैवानो से
उसे क्षेत्रवाद का पैगाम मिला

दे सको तो ऐसा न्याय दो
भाषा से मुक्त संप्रदाय दो
इंसानो का अभिप्राय दो
मुझको मेरा पर्याय दो

कविराज तरुण

Friday 15 January 2016

हो गया है

मन अब कमजोर सा हो गया है
राग रंग एक शोर सा हो गया है
वो भूले मुझे और भूलते ही गये
हाल मेरा गुजरे दौर सा हो गया है ।

किसी कोने में दिल के तू रह गई
जैसे बचपन मे सुनी कहानी कोई
थक गया रात भर मै जाग कर
सूरज बिना भोर का हो गया है ।

मन अब कमजोर सा हो गया है ।।

मेरी बातें तुझे याद आती नही
मेरी फ़रियाद खुदा तक जाती नही
खुद से ख़फ़ा रहूँ मै बेवज़ह
कदमो से ओझल ठौर सा हो गया है ।

चेहरे की रंगत सिलवट मे सिमटी
मेरी हसरते तेरी आहट से लिपटी
जो हो ना सकेगा ऐसी चाहत मे जीवन
सावन के अंधे मोर सा हो गया है ।

मन अब कमजोर सा हो गया है ।।

कविराज तरुण

Saturday 9 January 2016

ज़रा ज़रा सा इश्क़

कुछ खाली खाली सा
कुछ भरा भरा सा है ।
इस मन को इश्क़ का ये
अहसास ज़रा ज़रा सा है ।

तुम शर्मा के देखो
मै घबरा के देखूँ ।
ये लुका छिपी का खेल
लगे कुछ नया नया सा है ।

तेरी बाते मीठी मीठी सी
ये रातें फीकी फीकी सी ।
ये स्वाद मोहब्बत का
कुछ खरा खरा सा है ।

मेरा ना मे हाँ करना
तेरा हाँ में ना करना ।
मेरी आँखें खुद पढ़ ले
इसमें सब धरा धरा सा है ।

कुछ खाली खाली सा
कुछ भरा भरा सा है ।
इस मन को इश्क़ का ये
अहसास ज़रा ज़रा सा है ।

कविराज तरुण

हमारी अधूरी कहानी

न छीना मैंने कुछ न उसने कुछ पाया
दो कदम मोहब्बत के चलने में वो घबराया
मेरे घर में भी बंदिश थी रश्मो के हवालों से
मै भी डर सकता था लोगों के सवालों से
कुछ अपने मेरे भी नाराज बहुत होते
कुछ पल जीवन के यूँही अनबन में खोते
घर छोड़ के जाने को कबसे मै राज़ी था
दूल्हा दुल्हन खुश रहते क्या करना क़ाज़ी का
पर तुमने न जाने क्यों चुप्पी नही तोड़ी
अपनी प्रेमकहानी का एक लफ्ज़ नही बोली
न मुझसे कहा ही कुछ न खुद को समझाया
दो कदम मोहब्बत के चलने में वो घबराया

कविराज तरुण

Friday 8 January 2016

खामोश सज़ा

एक उम्र मोहब्बत की जो तुमसे रज़ा होती ।
फिर मेरी ज़िन्दगी न खामोश सज़ा होती ।।

जो ज़िक्र फकीरो का कभी हमने सुना होता ।
बेशक इन साँसों ने न तुमको चुना होता ।
इस दर्द की स्याही की जो एक छींट पड़ी होती ।
न मै ही ख़फ़ा रहता न तुम ही ख़फ़ा होती ।

एक उम्र मोहब्बत की जो तुमसे रज़ा होती ।
फिर मेरी ज़िन्दगी न खामोश सज़ा होती ।।

मेरे ज़हन के लफ़्ज़ों ने जो तुमको छुआ होता ।
मुमकिन है कि गलती का तुमको अहसास हुआ होता ।
गर प्यार के मालिक ने की कबूल दुआ होती ।
तो मेरी खुशियों की न तासीर धुँआ होती ।

एक उम्र मोहब्बत की जो तुमसे रज़ा होती ।
फिर मेरी ज़िन्दगी न खामोश सज़ा होती ।।

वीराने की दस्तक को पहचान गया होता ।
दहलीज़ पे तेरी मै वापस न गया होता ।
जीने की अपनी फिर एक ख़ास अदा होती ।
महफ़िल में सितारो सी धाक जमा होती ।

एक उम्र मोहब्बत की जो तुमसे रज़ा होती ।
फिर मेरी ज़िन्दगी न खामोश सज़ा होती ।।

कविराज तरुण

Wednesday 6 January 2016

वात पत्र

वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान
तेरी याद का होने लगा इसमे आगमन प्रस्थान
पर अकिंचित मन तेरा है आज भी अंजान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।

झीनी झीनी पुष्प जैसी तेरी स्वरांजली
भीनी भीनी ऋतु मे क्रीडा करती तरु मंजरी
धीमे धीमे तू बनी इन अधरों की मुस्कान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।

सत्य से हूँ मै वंचित स्वप्न का है ज्ञान
इस हृदय के धड़कनों की तूही अब पहचान
वायु जल सर्वत्र फैला तेरा ही सोपान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।

मन मयूरा चल पड़ा प्रेमपग उद्यान
खग भी विस्मित देखते हैं कैसी ये उड़ान
जो कल्पनाओं के परे खोजे आसमान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।

पर नही ये चाह तुझपर आये कोई व्यवधान
हूँ अतः कुछ मौन प्रत्यक्ष तुम मेरे भगवान
बस नयन से नयन की भेंट का है अरमान
वात पत्रों पर लिखा जब मैने सुरीला गान ।

कविराज तरुण