Friday 17 November 2017

बचपन और जवानी संशोधित

बचपन और जवानी (संशोधित)

सावन के झूले बारिश का पानी
पतझड़ के पत्ते, किस्‍से-कहानी

ओस की बूंदों पर किरणों का नाच
भारी पतंगों पर मांझे का कांच

उंगली के इशारों पर नाच रहा कंचा
गली के नुक्कड़ पर चाक़ू-तमंचा

बतरस के लट्टू में नाच रहे बच्चे
नमक से खा डाले आम कई कच्चे

नरमी पुरवाई की, ऋतुऍं सुहानी
बचपन सवालों का उत्‍तर जवानी

बे-परवाही में खूब जिया जीवन
आवारापन में ही मस्‍त रहा यौवन

चंदा की चांदनी में छत पर उजास
मिलने पर भारी है मिलने की आस

लैलाओं की गलियों मजनू के मेले
भीड़ में रहकर भी सब हैं अकेले

कौन है चंदा कौन है चकोर
समझ नहीं पाए और हो गई भोर

सुनहरे सपनों की ऊँची उड़ान
ऑंखों में हरदम नीला आसमान

लेकिन जब धरती पर नजरें झुकाईं
पर्वतों के बीच दिखी गहरी सी खाई

माँ के आँचल में दुखों का पहाड़
ऑंखों के पानी से गल रहा हाड़

वोटों के बैंक या ताशों की गड्डी
बच्‍चों के गालों पर उभर आई हड्डी

रिश्‍तों और नातों में आई खटास
ऐसे निभाते ज्‍यों ढोते हों लाश

कितनी घिनौनी है सच की कहानी
झूठा है बचपन और झूठी जवानी

Monday 6 November 2017

ग़ज़ल 60 बेजुबाँ

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महफिलों में रहा बेजुबाँ की तरह ।
बादलों से ढके आसमाँ की तरह ।।

कोई' तस्वीर तेरी दिखाता नही ।
जिंदगी हो गई अब धुआँ की तरह ।।

कहकशे खूब लगते थे' हर बात पे ।
आज बातें हुई खामखाँ की तरह ।।

सुन के आता रहा चीख़ दीवार पर ।
दिल हुआ खंडहर के मकाँ की तरह ।।

उन निगाहों ने' रुसवा किया यूँ *तरुण* ।
ख़ुश्क सा फिर हुआ मै खिजाँ की तरह ।।

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

Saturday 4 November 2017

ग़ज़ल 59 इश्क़ की दौलत


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जो भी' दिल की' दौलत है इश्क़ की बदौलत है ।
आ ज़रा निगाहों में इसमे' बस मुहब्बत है ।।

खामखाँ करे बातें अपने आप से ही हम ।
नूर सा हसीं चहरा फूल सी नज़ाकत है ।।

है ख़फ़ा ख़ुदा मुझसे तुझको जो खुदा माना ।
इश्क़ है मिरा मज़हब इश्क़ ही इबादत है ।।

बेदिली न दिल समझे बेरुखी न हो पाये ।
हर अदा नवाजी है आशिक़ी इनायत है ।।

नाम तेरा' ले लेकर जी रहा *तरुण* ऐसे ।
साँस मुझको' लेने की अब कहाँ जरूरत है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Wednesday 1 November 2017

ग़ज़ल 58 बेतुकी मुहब्बत

212 1222 212 1222

बेतुकी मुहब्बत का आज ये जमाना है ।
खामखाँ हसीनो से क्यों नज़र मिलाना है ।।

टूटकर बिखरते हैं ख़्वाब आशियानें के ।
दिल लुटाके' गैरों पे घर कहाँ बनाना है ।।

आशिक़ी फरेबी है जान पर भी' आ जाये ।
अश्क़ से भरा रहता इसमे' आबदाना है ।।

राह मुश्किलों की है हरतरफ सवाली हैं ।
घूरती निगाहों का रोज ही फ़साना है ।।

जो तरुण मुनासिब हो इश्क़ में नही होता ।
डूबकर के' दरिया मे पार तुझको' जाना है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'