Tuesday 20 December 2016

अफीमो का नशा


गाना - अफ़ीमो का नशा

देखे तुझे पल पल दर्पण
हलचल ,सी करे दिल रह रह कर
जाने हुआ क्या मुझे बावरी
बाँस बिन ही बजे बाँसुरी
मै तो झूमने लगा
फर्श चूमने लगा
प्यार तेरा क्यों लगे
अफीमो का नशा
नशा नशा
अफ़ीमो का नशा

***slow rap***
*****************
Love के कॉकपिट पे बैठा
दिल की feeling high
ये भी एक नशा है baby
No beer no wine
Just Perfect and fine
I am yours you are mine
Mine mine mine mine
I am yours you are mine

*****fast rap*****
********************
ज़रा शर्म को रखो side में
और बैठो मेरी bike पे
कमर पकड़ के love you love you
मेरे कानों में सुनाई दे
उड़ता है दुपट्टा तेरा
छोड़ो उसको उड़ने दो
हंसो का जोड़ा बनो तुम
मुझको मोती चुगने दो
है Turn ...वो देखो
गाड़ी full speed में
चीपक के बैठो डरो न
इस भीड़ से
कभी left तो right
झम से ये निकल जाती है
Baby long drive तेरे संग
ये करने को ललचाती है
Go zoom
Go vroom
Zoom zoom zoom zoom

(Rap end and pause)

मै तो झूमने लगा
फर्श चूमने लगा
प्यार तेरा क्यों लगे
अफीमो का नशा
नशा नशा
अफ़ीमो का नशा

बावरी
बाँस बिना ही बजे बाँसुरी
बावरी ,,,,बावरी

कविराज तरुण
9451348935

Monday 21 November 2016

अच्छे दिन आयेंगे

सब्र करो
और थोड़ा करो
इंतज़ार
फल मीठा मिलेगा
कड़वे दर्द
मिट जायेंगे
अच्छे दिन फिर आयेंगे

जैसे अमावस के बाद
होता है सुप्रभात
जैसे बादलो के बाद
होती है बरसात

जैसे पतझड़ के बाद
आता है सावन
जैसे सोमवार के उपवास से
मिलता है साजन

ठीक वैसे ही
बुरे दिन
कट कट के
कट जायेंगे
अच्छे दिन फिर आयेंगे ।

*कविराज तरुण*

Thursday 17 November 2016

अपना cash

बंद iPhone बंद है nexus
कभी short कभी excess
अपना cash
कैसे करेंगे हम ऐश ।

न oaac न ही laps
बस tm और noteex
Tally होता नहीं क्यों cash
कैसे करेंगे हम ऐश ।

कभी दस कभी ग्यारह
लटका day end बेचारा
नोटों का bundle है missmatch
कैसे करेंगे हम ऐश ।

*कविराज तरुण*

Wednesday 16 November 2016

सोनम गुप्ता

Atm की लाइन में क्या लगाया
सोनम गुप्ता बेवफा हो गई ।
आधी रात को हज़ार का नोट देकर
मेरी 100 की गड्डी ले गई ।
सोनम गुप्ता बेवफा हो गई ।।

भूल गई वो सारी कसमे
भूली वो पिज़्ज़ा बर्गर
मुझको भी भूली अब तो
दिल से हुआ मै बेघर

मालूम नहीं काला धन
पर काला दिल नजर तो आया
जिन नोटों की दीवानी थी वो
वो सब तो बस थी माया

पॉकेट का जबसे हाल बताया
सोनम गुप्ता बेवफा हो गई ।
आधी रात को हज़ार का नोट देकर
मेरी 100 की गड्डी ले गई ।
सोनम गुप्ता बेवफा हो गई ।।

कविराज तरुण
https://m.facebook.com/KavirajTarun/

उर में विराजो महाराज

उर में विराजो महाराज
तुमसे शुरू है हर काज
उर में विराजो महाराज

सूना लगे है दिन आज
सुने से ही पड़े सब साज
उर में विराजो महाराज

जीवन क्या है न जाना मैंने
खुद को भी न पहचाना मैंने
चलता रहा जाने किस धुन पे
तेरी बातो को न माना मैंने

तुमसे छुपा कब ये राज
मेरे छिन ही चुके हैं सब ताज
उर में विराजो महाराज

*सुप्रभात*
*कविराज तरुण*

Tuesday 15 November 2016

तांडव

आज के सामयिक हालातो पर लिखी एक रचना

जब शिव जी करते हैं तांडव
तब चीख सुनाई देती है ।
असुरों की सत्ता हिल जाती
रंगत झल्लाई रहती है ।।

कलयुग के काले कौवों का
काले धन का अंबार लगा ।
नष्ट हुआ सब भ्रान्तिमान
जब हंसो का दरबार लगा ।।

जब हो जाती अति अमावस की
सूरज तब और चमकते हैं ।
जो इतराते थे नोटों की गड्डी पर
अब ठिठक ठिठक कर चलते हैं ।।

अब फिर से मोती चुन चुनकर
हंसो के हिस्से आयेगा ।
भारत से कलयुग दूर हटेगा
सतयुग अब फिरसे छायेगा ।।

कविराज तरुण

Friday 4 November 2016

शुक्रिया जवान

*शुक्रिया जवान*

इन करों के बंद मुख से शुक्रिया तुझको अदा है ।
माँ भारती तू धन्य है जो वीर ऐसा तुमने जना है ।

बर्फ की चादर मे लिपटा सो गया तूफ़ान मे ।
आँख निगरानी में थी कुछ बात थी उस जान मे ।

कर्मबेदी पर चढ़ा के जान की वो बोलियाँ ।
दिवाली तीज होली पर भी खाई गोलियाँ ।

फिर भी टस से मस हुआ न वीर फौलादी जवां ।
कर-नमन आँख-नम उस माँ को जिसने पुत्र जना।

राजनेता बात करते शहीदों का कितना मोल है ।
जो कोख सूनी हो गई उसका भी क्या कोई तोल है ।

दूर रखो है निवेदन शहादत को सियासत की दौड़ से ।
और ये सुन लो बात मीडियाकर्मियों भी गौर से ।

सैनिक जीवन ज़रा भी प्रश्नों का है विषय नहीं ।
बस नमन और नमन और नमन ही विकल्प सही ।

*कविराज तरुण*

Tuesday 25 October 2016

प्यार की मौन व्याख्या

प्यार की मौन व्याख्या 

ये कैसा शीर्षक हुआ ? अभी बस लिखने ही बैठा था कि मेरे एक परम मित्र ने एकाएक मुझसे पूछ लिया |
फिर मेरे मन में भी यही प्रश्न घूमने लगा कि किसी विषय की व्याख्या मौन रहकर भी क्या संभव है ?

पर बात जब प्रेम की हो तो यह बताना आवश्यक है कि प्यार एक अहसास है... एक अनुभूति जिसके लिए शब्दों के तंतु पर भावनाओ कि सारंगी बजाने कि तनिक भी आवश्यकता नहीं अपितु ये तो वह ओस की बूँद है जिसमे ह्रदय के ओर - छोर स्वतः ही भीग जाते हैं |

मौन स्पर्श ,  मौन स्वीकृति और मौन समर्पण ही सच्चे प्रेम की पृष्ठिभूमि हैं ।अपनी पद्यावली से कुछ पंक्ति यहाँ पर समर्पित करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ :

" जो भाव असीमित दृश्यपटल पर , व्याकुल हैं बाहर आने को...
  दस्तक देते हैं अधरों पर अक्सर , कितना कुछ है बताने को...
  पर अधरों की दशा तो देखो , किस भांति परस्पर सिले जा रहे हैं ।
  मानो शब्द मूर्छित हुए हैं ... और चेतन अचेतन की दशा पा रहे हैं || "

वास्विकता भी यही है ...शब्दों को निमंत्रण देने से पहले प्रेम आँखों के माध्यम से अपनी बात कह चुका होता है । और यकीन मानिये प्रेम अगर सच्चा है तो कुछ कहने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी । इस अनुभूति का असल स्वाद मौन रहकर ही प्राप्त किया जा सकता है । शायद गीतकारो ने यही भांपकर ये गीत लिखे -
' ना बोले तुम ना मैने कुछ कहा ...'

' कुछ ना कहो कुछ भी ना कहो....' आदि ।

वैसे भी "मौनं स्वीकृतिम लक्षणं " ...

तो दोस्तों मौन रहकर प्रेम की तलहटी में छुपे आनंद की प्राप्ति कीजिये... बहुत अच्छा लगेगा ।

धन्यवाद ।

आपका ...
कविराज तरुण

दम्भ

न्यायोचित है दम्भ अगर तो
मै कौशल दिखलाता हूँ ।
तोड़ भुजाओं का साहस
तुमको परलोक सिधाता हूँ ।।

पर विवेक मेरा कहता है
क्यों असुरों से संग्राम करूँ ।
कर दूं अलग थलग दुनियाँ से
बस इतना ही काम करूँ ।।

तुम आग जलाये बैठे दिल में
मुझे सौहार्द का दीप जलाने दो ।
मत छेड़ो कालदर्प को मेरे
मुझे विकास का रथ चलाने दो ।।

इस अश्वमेध के यज्ञ में मेरे
व्यवधान कोई मत कर देना ।
गलती से भी मित्र पड़ोसी
मेरे विवेक को मत हर लेना ।।

वर्ना रण का बिगुल बजा
बलिवेदी पर शीश उतारूंगा ।
घर के भीतर घुसकर तेरे
चुन चुनकर दानव मारूँगा ।।

*कविराज तरुण*

Thursday 29 September 2016

कबर खोद ली तुमने खुद

*कबर खोद ली तुमने खुद*

कबर खोद ली तुमने खुद
जाने और अनजाने में
कौन बचायेगा तुमको अब
जाओ यूएन के थाने में
दुत्कार दिए जाओगे और
ये भूल नहीं पाओगे तुम
गाली और गोली मिलेगी दोनो
सुबह शाम अब खाने में
*कबर खोद ली तुमने खुद*
*जाने और अनजाने में*

तेरे एके 47 का जवाब
अब छप्पन इंची सीना है
मूक नहीं अब नेता अपना
वो शमशीर नगीना है
मारेंगे तुमको घर में घुसकर
बचोगे नहीं किसी ठिकाने में
छोड़ी नहीं कसर ही तुमने
हम जाबांजो को उसकाने में
*कबर खोद ली तुमने खुद*
*जाने और अनजाने में*

✍🏻कविराज तरुण
तरुण कुमार सिंह
यूको बैंक , सोमलवाड़ा
9451348935

Friday 23 September 2016

आतंक का कुनबा

*आतंक का कुनबा*

है लाज अगर इस्लाम की
गर पढ़ा  है तुमने कुरान को ।
आतंक का कुनबा कह दो तुम
इस समूचे पाकिस्तान को ।

डरते यहाँ आका सेना से
कहीं तख्तापलट न हो जाये ।
पनाह न दे जो आतंकी को
सर धड़ से अलग न हो जाये ।

इंसानियत के खून की ट्रेनिंग
भले क्यों देता है ये इंसान को ।
आतंक का कुनबा कह दो तुम
इस समूचे पाकिस्तान को ।

कलम छोड़ कर हाथों से ये
बम बनाना सीख गये ।
घर की जिम्मेदारी को भूल फरेबी
हथियार उठाना सीख गये ।

लानत है दोजख की तुमको
बच्चों मे न देखा भगवान को ।
आतंक का कुनबा कह दो तुम
इस समूचे पाकिस्तान को ।

तुम इतराते हो जिसके दम पर
उनका भी हाल वही होगा ।
जिद पर आ जायेंगे तो
फिर कोई सवाल नही होगा ।

कम पड़ जायेगी मिट्टी भी
तरसेगा तू खाली शमशान को ।
आतंक का कुनबा कह दो तुम
इस समूचे पाकिस्तान को ।

बलूच - सिंध को दूर किया है
नित अपने दूषित संवादों से ।
अजमल सईद ओसामा को
पाला है नापाक इरादों से ।

हैवानियत की रूह तेरी ये
समझेगी भला क्या इंसान को ।
आतंक का कुनबा कह दो तुम
इस समूचे पाकिस्तान को ।

तुम आतंकी को नेता कहते हो
हाँ ये सच है हमें गुरेज नही ।
और तुम जैसा नेता आतंकी है
ये कहने में हमें परहेज नही ।

*शरीफ* शराफत का इल्म हो तो
नष्ट करो इन आतंकी फरमान को ।
या आतंक का कुनबा कह दो तुम
इस समूचे पाकिस्तान को ।

✍🏻कविराज तरुण

Friday 29 July 2016

अभिनन्दन देश का

🙏🏻🙏🏻🙏🏻सुप्रभात🙏🏻🙏🏻🙏🏻

चाहे रोली चन्दन कर डालो
चाहे क्रीडा क्रंदन कर डालो
अतुलित भूमि पुराणों की है ये
तुम इसका अभिनंदन कर डालो
🌹🌸🌹🌸🌹🌸🌹🌸🌹
मत भूलो लोगों ने प्राण तजे
तब आजादी हमने पाई है
हर एक मत को साथ लिया साथी
तब भारत की रीति बनायी है
🌹🌸🌹🌸🌹🌸🌹🌸🌹
यूँ बाँटो न इसे जात धरम में
चाहे कितनी अनबन कर डालो
अतुलित भूमि पुराणों की है ये
तुम इसका अभिनंदन कर डालो

🙏🏻🙏🏻🙏🏻सुप्रभात🙏🏻🙏🏻🙏🏻
🙏🏻🙏🏻कविराज तरुण🙏🏻🙏🏻

छत्रपति शिवाजी

रचना - छत्रपति शिवाजी महाराज
🛡⚔🛡⚔🛡⚔🛡⚔🛡

लिख डाले कई गीत ग़ज़ल पर ,
इतना सम्मान नहीं आया ।
वीर शिवाजी छत्रपति सा अबतक,
कोई इंसान नहीं आया ।।

मुगलों को विस्मित करते थे वो
रणकौशल चालाकी से ।
छापामार के निर्माता थे वो
लड़ते थे बेबाकी से ।।

धर्म का संबल साथ में लेकर
हिंदुत्व का सच्चा प्रमाण दिया ।
मुगलों को कई बार हराया
मराठ वंश का निर्माण किया ।।

कल्याण से लेकर पोंडा तक
दुर्ग चालीस का विस्तार हुआ ।
हिन्दू स्वराज की नींव पड़ी
छत्रपति का अधिकार हुआ ।।

युद्ध के ज्ञानी कुशल प्रशासक सा
दूजा यजमान नही आया ।
वीर शिवाजी छत्रपति सा अबतक
कोई इंसान नही आया ।।

🛡⚔🛡⚔🛡⚔🛡⚔🛡

✍🏻कविराज तरुण
9451348935
https://m.facebook.com/KavirajTarun/

Wednesday 27 July 2016

मेरा प्यार

मेरा प्यार
🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹
रेशमी धागे से महीन था
मेरा प्यार
मेरे लिए आसमाँ-जमीन था
मेरा प्यार
उसकी चेहरे की यासमीन था
मेरा प्यार
दुनिया में सबसे बेहतरीन था
मेरा प्यार

पर नज़र लग गई ... आया तूफ़ान
टूटा दिल में छुपा ... सारा अरमान
बेरहम सा दिखा ... मेरा भगवान
आग उगलने लगा ... काला आसमान

रेशम का धागा जला
रुक गया सिलसिला
छोड़ के वो चले
सितम जमकर मिला

फिरभी वो मेरे लिए एक यकीन था
मेरा प्यार
मेरी कविताओं में शब्दों में विलीन था
मेरा प्यार
सावन की बूँदों से भी हसीन था
मेरा प्यार
दुनिया में सबसे बेहतरीन था
मेरा प्यार
🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹

✍🏻कविराज तरुण

Tuesday 26 July 2016

महाराणा प्रताप

रचना 01
महाराणा प्रताप
⚔🛡⚔🛡⚔🛡⚔🛡⚔

एक ही ऐसा वीर है जिसने
घास की रोटी खाई है ।
एक ही ऐसा वीर है जिसने
मुगलों को धूल चटाई है ।

मेवाड़ की धरती ने मिट्टी में
कितने शेरों को है पाला ।
जिनका आभूषण बनता है
खड्ग चमकता और भाला ।

महावीर महाराणा प्रताप
रुधिर नही ..था अग्निचाप ।
थर थर काँप उठे दुश्मन
जब पड़ता था दृष्टिपात ।

इनकी गाथा का वर्णन करती
धन्य हर एक चौपाई है ।
एक ही ऐसा वीर है जिसने
घास की रोटी खाई है ।

🙏🏻जय महाराणा🙏🏻

⚔🛡⚔🛡⚔🛡⚔🛡⚔

✍🏻कविराज तरुण

लिखना छोड़ दूँ

लिखना छोड़ दूँ

कहो जो तुम तो मै लिखना छोड़ दूँ
या यूँ सरेआम बिकना छोड़ दूँ
पहले जब कुछ चुभता था तो कलम उठती थी
अब जब कलम उठती है तो कुछ चुभता है
तेरे ख्वाबो में बेवजह यूँ मै दिखना छोड़ दूँ
कहो जो तुम तो मै लिखना छोड़ दूँ
असर होता नही जब भी सुनाता गीत मै प्यारा
न कश्ती ही मिली न मिल पाया ही किनारा
तुम क्या समझ पाओगे मेरी चाहत का ईशारा
कल भी आवारा था आज भी हूँ मै आवारा
तेरी गलियों से कहो तो गुजरना छोड़ दूँ
कहो जो तुम तो मै लिखना छोड़ दूँ

✍🏻कविराज तरुण
https://m.facebook.com/KavirajTarun/

हिंदी

रचना 01

भाल मस्तक पर सजे ज्यों बिंदी
माँ भारती के लिए स्थान है वह हिंदी

रोली चन्दन का जांच ज्यों टीका
बस वही अभिप्राय है हिंदी का

अब ये अस्मत ये ही इज्जत मान दो
संभव जितना हो सके हिंदी का ज्ञान दो

भाषा है ये वेद की पुराण की
भाषा है ये नवभारत निर्माण की

हिंदी जननी है समस्त संस्कार की
द्योतक है यह सभ्यता व्यवहार की

उर में बसा के सन्मुख विस्तार दो
अपने हर कार्य में हिंदी उदगार दो

✍🏻 कविराज तरुण

Friday 22 July 2016

सुप्रभात 230716

🙏🏻😊🌹सुप्रभात🌹😊🙏🏻

भोर भई खग कुल विस्मित है
सोया अबतक क्यों है इंसान
क्यों न जाने मर्म प्रकृति का
क्यों बनता है धर्म से अन्जान

सब ग्रन्थ कहें उठो सुबह ही
हो मात-पिता-गुरु-धरा प्रणाम
सब है अल्लाह-ईश्वर के बंदे
हर जीव जंतु का करो सम्मान
मीठी वाणी मुख पर रखकर
पूरे दिल से करो सब काम
दुःख में आस लगाओ प्रभु की
पर सुख में भी मन में लो हरिनाम

हर्षित मन में दया के भाव लिए
हर कार्य का रखो हिय से ध्यान
भोर भई खग कुल विस्मित है
सोया अबतक क्यों है इंसान

🙏🏻😊🌹सुप्रभात🌹😊🙏🏻

कविराज तरुण
9451348935
https://m.facebook.com/KavirajTarun/

Saturday 16 July 2016

दायित्व

रचना 01
दायित्व
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

दायित्व का निर्वाह जरुरी है
जरुरी है कर्म का बोध ।
मन कुण्ठित हो जाता है अक्सर
जब आता अहम् व लोभ ।
चाहे जीवन ब्रह्मचर्य हो गृहस्थ हो
या हो सन्यास ।
चाहे राह कठिन हो सख्त हो
या हो बिंदास ।
अनुशासन के बिन संभव कुछ नहीं
बस इतना कर पाया शोध ।
दायित्व का निर्वाह जरुरी है
जरुरी है कर्म का बोध ।

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

✍🏻क. तरुण

Thursday 14 July 2016

आतंकवाद

त्वरित रचना 01
विषय आतंकवाद
💣🇮🇳💣🇮🇳💣🇮🇳💣🇮🇳💣
आतंकी के मौन समर्थक अब आवाज उठाकर आये ।
देशप्रेम तज इस माटी की फिरसे लाज गिराकर आये ।

जो मरा बता वो किसी सूरत में मानव जैसा था ।
आतंकी था हत्यारा केवल वो दानव जैसा था ।

उसके मरने पर भी तुम आँखों में गाज बहाकर आये ।
आतंकी के मौन समर्थक अब आवाज उठाकर आये ।

गम तुम्हे नही उन शहीदों का जो नित  कुर्बानी देते हैं ।
हम खिले फूल जैसे इसलिए जो खून का पानी देते हैं ।

ऐसे ही गद्दारों के कारण हम सिर से ताज लुटाकर आये ।
आतंकी के मौन समर्थक अब आवाज उठाकर आये ।

तुमने जंग करी है चारो बारी हुए चौखाने चित्त ।
भूल हुई तो कोशिश की और तुमको माना मित्र ।

घर में आग लगाने का बेशक तुम राज दबाकर आये ।
आतंकी के मौन समर्थक अब आवाज उठाकर आये ।

पर नर्क पहुंचना है तुम सबको यूँ हथियार उठाने वालो ।
माँ भारत के बेटो से अब करो पुकार बचाने वालो ।

ऐसे आतंकी तेवर को धूल जाबाज़ चटाकर आये ।
आतंकी के मौन समर्थक अब आवाज उठाकर आये ।
💣🇮🇳💣🇮🇳💣🇮🇳💣🇮🇳💣

✍🏻कविराज तरुण
9451348935
https://m.facebook.com/KavirajTarun/

Monday 11 July 2016

दोहा - रिश्ता

दोहा -

रिश्ते सरल बनाइये , हिय में तनिक न लोभ ।
मन का दर्पण साफ़ तो , मिट जायेंगे दोष ।
🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻
बिना प्रेम के भाव से , संभव तरुण विक्षोभ ।
एक दूजे को समझिये , होगा मन का बोध ।
🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻
रिश्तों की उपमा नही , रिश्तों का नहि मोल ।
माला सहज बनाइये , इक इक दाना तोल ।।

🙏🏻🌹क. तरुण🌹🙏🏻

Monday 27 June 2016

उत्थान

रचना - उत्थान

हो संस्कृति का उत्थान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻
देशप्रेम का गान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻

क्यों निजहित की छंद चौपाई तुझको भाय रही है ।
पुरुषार्थ की पाई पाई तुझे खटाय गई है ।

हो मानवता का संज्ञान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻
सभ्य आचरण ज्ञान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻

क्यों धर्म-द्वेष की खाई तुझको लुभाय रही है ।
सब जीव हैं भाई भाई तुझे भुलाय गई है ।

हो स्नेहमिलन का प्रावधान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻
हर धर्म का हो सम्मान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻

✍🏻कविराज तरुण

जन्नत की तस्वीर

रचना
जन्नत की तस्वीर
💜🌸❤🌸💚🌸💛🌸❤
उसकी आँखों में जन्नत की तस्वीर देख ली
बंद हथेली में छुपी अपनी तकदीर देख ली

वो बोलती रही ... इश्क़ मुनासिब नही
इसतरह छुप के मिलना भी ... वाजिब नही
छोड़ कर वो गई ... अब मिलेंगे नही
गुल मोहब्बत के यक़ीनन ... खिलेंगे नही

पर जाते जाते उसके लफ़्ज़ों में पीर देख ली
उसके चेहरे पर उदासी की लकीर देख ली

उसकी आँखों में जन्नत की तस्वीर देख ली
बंद हथेली में छुपी अपनी तकदीर देख ली

✍🏻कविराज तरुण

Friday 24 June 2016

रूप घनाक्षरी मानसून

रचना क्रमांक 🅾2⃣
रूप घनाक्षरी का प्रयास
16-16 पर यति , अंत में गुरु-लघु

विषय - मानसून

गर्मी से झुलस गये नही कटे अब जून ।
हरदिल करे पुकार आ जाओ मानसून ।।
रात सुहानी ओझल है सूरज देता भून ।
देरी करके मत कर अरमानों का खून ।।
आँखें मेघा राह निहारे आसमान है सून ।
वर्षा बूँदों को तरसे मुरझाये से प्रसून ।।
गर्मी से झुलस गये नही कटे अब जून ।
हरदिल करे पुकार आ जाओ मानसून ।।

✍🏻कविराज तरुण

Thursday 23 June 2016

कुंडलियां - पलायन

कुंडलियां

गीत विरह के बंद कर , गा खुशियों के गान ।
फूल सोहते शाख पर , मत तोड़ो श्रीमान ।
मत तोड़ो श्रीमान , अर्ज है इतनी मोरी ।
प्रेम डोर रे बाँध , सभी को एकहै डोरी ।
कहै तरुण कविराज , सीख फूलों सँग रह के ।
खुशियों की दो तान , छोड़ के गीत विरह के ।

✍🏻 कविराज तरुण

ग़ज़ल -ओ रे शहज़ादी

ग़ज़ल - ओ रे शहज़ादी

अपने शीश महल में मुझको इतनी सलामी दे ।
शहज़ादी बन जाओ तुम बेशक मुझे अपनी गुलामी दे ।
मिलना और बिछुड़ना खुदा के रहमोकरम पर है...
मै तुझको याद आऊँ बस इतनी सी कहानी दे ।

अपने शीश महल में मुझको इतनी सलामी दे ।
शहज़ादी बन जाओ तुम बेशक मुझे अपनी गुलामी दे ।।

नही मुमकिन है तुमसे दूर रहना ओ रे शहज़ादी ।
तड़पते दिल की है तूही राहत ओ रे शहज़ादी ।
मै तुझको प्यार करता हूँ खुद से भी कहीं ज्यादा ।
नमाज-ए-अर्ज़ मेरी तू इबादत ओ रे शहज़ादी ।

तू मुझको रूह-ए-अज़मत की ज़रा कोई निशानी दे ।
दिल गुलज़ार हो जाए जो तू वादा ज़ुबानी दे ।
नज़र भर के निगाहें मोड़ दे मेरी निगाहों को ...
ख़ार से चाँद बन जाऊँ जो रहमत बे-नियामी दे ।

अपने शीशमहल में मुझको इतनी सलामी दे ।
शहज़ादी बन जाओ तुम बेशक मुझे अपनी गुलामी दे ।।

✍🏻कविराज तरुण

Tuesday 21 June 2016

कुंडलिया - काया

विषय-काया
छंद- कुंडलियां
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
काया मायामोह है , मन का रूप अपार ।
दीनन की पीड़ा मिटे , ऐसा कर उपकार ।।
ऐसा कर उपकार , कि ये दुनिया याद करे ।
नाम तेरा जीवित , ये मरण के बाद करे ।
कहे तरुण कविराज , यही है जग की माया ।
बाहर से न देखो , भीतर बेहतर काया ।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

✍🏻कविराज तरुण

योग कलाधर छंद

बड़े प्रयास के बाद कलाधर छंद में लिखी रचना 🙏🏻
वर्ण गणना व मात्रा भार

2121212121212121= 16 वर्ण व 24 मात्रा
212121212121212 = 15 वर्ण व 23 मात्रा

रचना विषय - योग🏃🏻🏃🏻🏃🏻

पीड़िता पुकारती शरीर शोध कामनाय ।
जिंदगी बिगाड़ती उपासना सही नही ।।

भोर को उठो निरा समाज बोध भावनाय ।
योग के समान कोई साधना बनी नही ।।

छोड़ नींद खाब प्रीत योग ही सही उपाय ।
योग हो विचार भोग वासना सही नही ।।

रोग वामपंथ है नही कभी सुखी हिताय ।
योग भागवंत सी अराधना बनी नही ।।

✍🏻 कविराज तरुण

योगाहास्य

रचना 02 विषय योग
हास्य

योग का बुखार चढ़ा जबसे अर्धांगिनी को
कान्हा की जगह घर मे रामदेव हो गए ।
सुबह सुबह सिंह आसन का ऐसा रूप धरा
जिह्वा - आँख देखकर मेरे प्राण खो गए ।
जल्दी उठाकर मुझे आसन कराने लगी
स्वप्न लोक के दर्शन अब दुर्लभ हो गए ।
जोर जोर हँसती है मुझे हँसने को कहे
लबालब आँसुओं मे मेरे नैन रो गए ।
धनुर् मृग मयूर कपाल भारती अनुलोम विलोम
शवासन करते करते हम फिर से सो गए ।
योग का बुखार चढ़ा जबसे अर्धांगिनी को
कान्हा की जगह घर मे रामदेव हो गए ।

✍🏻कविराज तरुण

Monday 20 June 2016

लुप्त होता वेद

रचना 01

तरुण एक यही खेद है
विचारो से लुप्त होता वेद है ।

वेदों ने दिए हमें संस्कार
सिखाया जनमानस का सत्कार
खोल दिए सत्य के द्वार
दिखाया प्रकृति का उपकार

तरुण कलुषित मन के मेघ हैं
विचारों से लुप्त होता वेद है ।

वेदों में ज्ञान के कोष अपार
जीवन का अतुलित संसार
कर्म काण्ड का विस्तार
मुक्ति मार्ग भव सागर पार

तरुण बाधित परहित के वेग हैं
विचारों से लुप्त होता वेद है ।

✍🏻कविराज तरुण

कौमी एकता

रचना 02 विषय- कौमी एकता

समस्या का जड़ से , निदान होना चाहिये।
सर्व धर्म सम्भाव , भान होना चाहिये ।।

धरती को माता बोलो , चाहे तो अम्मी कहो ।
पर अपनी माता का , मान होना चाहिये ।।

हाथ इक गीता दूजी , कुरान होना चाहिये ।
छल द्वेष ईर्ष्या का , दान होना चाहिये ।।

बँट बँट गया क्यों , अपना समाज आज ।
एक सुर में देश का , गान होना चाहिये ।।

भावना संस्कृति की , उदार है माना मैंने ।
देशहित का मगर , ज्ञान होना चाहिये ।।

जब कोई आँख लिए , घूरने लगे है माँ को ।
पग में गिरा उसका , प्रान होना चाहिये ।।

भान होना चाहिये ।
मान होना चाहिये ।
गान होना चाहिये ।
प्रान होना चाहिये ।

✍🏻कविराज तरुण

Saturday 18 June 2016

मनहरण घनाक्षरी शासन

मनहरण घनाक्षरी 🙏 शासन

चाल यहाँ शासन की , नीतियां प्रशासन की ।
ओजवाले भाषण की , ताल ठोकने लगे ।।
खाली पड़े राशन की , भूखे पेट आसन की ।
ख़ुशी वाले भोजन की , राह खोजने लगे ।।
टीन गिरे आँगन की , पानी भरे नालन की ।
मेघ देख सावन की , छत जोड़ने लगे ।।
आस मन भावन की , दुख के पलायन की ।
सुख क्षण आवन की , बाँट जोहने लगे ।।

✍🏻कविराज तरुण

मनहरण घनाक्षरी - तपन

तपन

आस लिए सावन की , पीड़ा में तन मन की ,
आग सुलगने लगी , मृदुवात पीजिये ।।
प्रीत इन नैनन की , जा रही चिलबन की ,
रात सिमटने लगी , सुप्रभात लीजिये।।
लय मन भावन की , बिखरी है जीवन की ,
राग सिसकने लगी , मीठीबात दीजिये ।।
रीति हटी गायन की , सुर के पलायन की ।
ताल बिदकने लगी , दृगपात  कीजिये।।

✍🏻कविराज तरुण

Monday 13 June 2016

हेरा फेरी

रचना - हेरा फेरी

हेरा फेरी क्यों करता है
जहाँ देश धर्म की बात
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सब हैं एक ही जात
क्यों कलम से नही अपनी तू
मानवता का पाठ पढ़ाये
हेर फेर करके खबरों को
असहिष्णुता का राग दोहराये
देश की साख वतन की इज्जत
को मत कर यूँ मैला
भारतेंदु ने देश बचाने को था
भरा लेख से थैला
उनका अनुकरण करने में
मत कर तनिक भी देरी
एक बना ये भारत धरती
छोड़ दे हेरा फेरी

✍🏻 कविराज तरुण

Sunday 29 May 2016

व्यथा

व्यथा - व्याकुल मन

कितनी पीड़ा सहता हूँ
तुम क्या जानो पीर है क्यों
अपनी साँसों से खुद लड़ना
इतना लगता गंभीर है क्यों

न कहूँ जो कुछ तो मन व्याकुल
जो कह दूँ तो जीवन व्याकुल
सिसक रही है किसी कोने में
मेरे आँसूं की कतरन व्याकुल

घुट घुट के जीना पड़ता है
दिल हो जाता अधीर है क्यों
तुम शायद जान नही पाओगी
इन आँखों में इतना नीर है क्यों

कविराज तरुण